अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे आ चुके हैं. कड़ी टक्कर के बाद रिपब्लिकन पार्टी के डॉनल्ड ट्रंप ने चुनाव जीत लिया. वो अमेरिका के राष्ट्रपति कार्यालय पहुंचने वाले ऐसे पहले राष्ट्रपति होंगे, जिनके खिलाफ कई आपराधिक मामलों में फैसला आना अभी बाकी है. लेकिन अमेरिका के जस्टिस डिपार्टमेंट की एक पॉलिसी कहती है कि मौजूदा राष्ट्रपति के खिलाफ आपराधिक मुकदमा नहीं चलाया जा सकता. इसके तहत राष्ट्रपति के कार्यकाल के अंत तक उनके खिलाफ चल रहे सभी क्रिमिनल केस प्रभावी ढंग से निलंबित कर दिए जाएंगे. यानी बुधवार, 6 नवंबर को जैसे ही डॉनल्ड ट्रंप राष्ट्रपति का चुनाव जीते, आपराधिक मुकदमों से जुड़ी उनकी समस्याएं दूर हो गईं. चलिए अमेरिका से अब भारत आते हैं. क्या आपको पता है कि भारत में भी एक ऐसा ही प्रावधान है? लेकिन प्रधानमंत्री के लिए नहीं, बल्कि राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए. ये प्रावधान है संविधान के आर्टिकल 361 में.
डॉनल्ड ट्रंप के खिलाफ दर्ज सारे केस ठंडे बस्ते में, भारत में भी ये होता है, लेकिन कैसे?
डॉनल्ड ट्रंप के चुनाव जीतते ही, आपराधिक मुकदमों से जुड़ी उनकी समस्याएं दूर हो गईं. लेकिन क्या आपको पता है कि भारत में भी एक ऐसा ही प्रावधान है? भारतीय संविधान के आर्टिकल 361 में इस प्रावधान को लेकर बहुत कुछ बताया गया है. सब कुछ जानिए.
संविधान सभा ने 8 सितंबर, 1949 को आर्टिकल 361 पर बहस की थी. हालांकि, इस पर बहुत ज्यादा बहस नहीं हुई और संविधान में इसे शामिल कर लिया गया. इस आर्टिकल के तहत भारत में राष्ट्रपति और राज्यपालों को छूट दी गई है. आर्टिकल 361(2) के तहत, राष्ट्रपति या राज्यपाल के खिलाफ अदालत कोई कार्रवाई शुरू नहीं कर सकती. पद पर रहते हुए किसी राष्ट्रपति या राज्यपाल को न तो गिरफ्तार किया जा सकता है और न ही हिरासत में लिया जा सकता है. कोई भी अदालत उनके खिलाफ कोई आदेश भी जारी नहीं कर सकती. इस आर्टिकल के तहत राष्ट्रपति और राज्यपाल को सिविल और क्रिमिनल, दोनों ही मामलों में छूट मिली हुई है. हालांकि, आर्टिकल 361(2) में ये भी कहा गया है कि इन लोगों को पद से हटने के बाद गिरफ्तार या हिरासत में लिया जा सकता है.
आर्टिकल 361 को कई बार मिली चुनौतीपिछले कुछ सालों के दौरान आर्टिकल 361(2) को चुनौती देने वाले भी कई मामले अदालतों के सामने आए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 361 के तहत 2006 में एक फैसला दिया था. कोर्ट ने रामेश्वर प्रसाद बनाम भारत संघ के मामले में कहा था कि राज्यपाल किसी भी कानूनी कार्रवाई से पूरी तरह सुरक्षित हैं. राज्यपाल पर भले ही कुछ गलत करने का आरोप लगे हों, मगर जब तक वो पद पर हैं, उन पर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा था कि इस कानून में राज्यपाल को व्यक्तिगत दुर्भावना के आरोपों से भी पूर्ण छूट प्राप्त है.
ऐसा ही एक मामला 2015 में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के सामने आया था. तब मध्य प्रदेश में व्यापमं घोटाला काफी चर्चा में था. और इसके आरोपियों में एक नाम राज्य के तत्कालीन गवर्नर राम नरेश यादव का भी था. मामल हाई कोर्ट पहुंचा, मांग हुई कि राज्यपाल के खिलाफ भी केस चल और जांच हो. तब हाई कोर्ट ने माना था कि आर्टिकल 361(2) किसी राज्यपाल को पूरी सुरक्षा की गारंटी देता है, ताकि उस पद की गंभीरता को कमजोर न किया जा सके. अपने फैसले में हाई कोर्ट ने FIR में बताए गए सभी आरोपियों के खिलाफ जांच करने की इजाजत दे दी. जबकि राज्यपाल नरेश यादव का नाम तब तक के लिए FIR से हटाने को कहा, जब तक वे राज्यपाल के पद पर रहें. फिर ये मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा. हालांकि, नवंबर 2016 में राम नरेश यादव की मृत्यु हो गई, और फिर सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई अपील पर फैसला नहीं सुनाया गया.
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कल्याण सिंह को भी मिली थी छूट2017 में बीजेपी नेता और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह राजस्थान के राज्यपाल थे. कल्याण सिंह 1992 के बाबरी विध्वंस मामले में आरोपी थे. लेकिन उस वक्त उन्हें इस मामले में मुकदमे का सामना करने की छूट मिल गई थी. इस पर फैसला सुनते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ये साफ़ किया था कि आर्टिकल 361 के तहत राज्यपाल को तब तक ही छूट मिल सकती है, जब तक वो पद पर रहते हैं. जैसे ही वो पद से हटेंगे, उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू की जा सकती है. उस समय लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती को इस मामले में मुकदमे का सामना करना पड़ा था.
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