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अजमेर शरीफ दरगाह को हिंदू मंदिर बताने वाली याचिका कोर्ट ने मंजूर की, सुनवाई की तारीख भी बताई

कोर्ट ने याचिका को स्वीकार करते हुए दरगाह कमेटी, अल्पसंख्यक मंत्रालय, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण कार्यालय को नोटिस जारी करने का आदेश दिया है.

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याचिकाकर्ता के वकील शशि रंजन कुमार सिंह ने दावा किया था कि ये मुकदमा "प्रामाणिक स्रोतों से प्राप्त तथ्यों पर आधारित है". (फोटो- X)

राजस्थान के अजमेर स्थित ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती दरगाह (Ajmer dargah) को हिंदू मंदिर बताने वाली याचिका पर 27 नवंबर को कोर्ट में सुनवाई हुई. याचिका को निचली अदालत ने स्वीकार कर लिया है. साथ ही कोर्ट ने मामले से जुड़े सभी पक्षकारों को नोटिस जारी करते हुए 5 दिसंबर को अगली सुनवाई की तारीख दी है.

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक हिंदू सेना नाम के संगठन से जुड़े विष्णु गुप्ता ने ये याचिका दायर की थी. इसमें दरगाह के हिंदू पूजा स्थल होने का दावा किया गया है. मामले को लेकर 27 नवंबर को सिविल जज सीनियर डिवीजन मनमोहन चंदेल की बेंच ने सुनवाई की. कोर्ट ने याचिका को स्वीकार करते हुए दरगाह कमेटी, अल्पसंख्यक मंत्रालय, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण कार्यालय को नोटिस जारी करने का आदेश दिया है.

'भगवान श्री संकट मोचन महादेव विराजमान मंदिर' घोषित किया जाए

बता दें कि हिंदू सेना द्वारा अजमेर सिविल कोर्ट में दायर याचिका में मांग की गई है कि ऐतिहासिक ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती दरगाह को 'भगवान श्री संकट मोचन महादेव विराजमान मंदिर' घोषित किया जाए, क्योंकि ये शिव मंदिर के स्थल पर बनाया गया था. टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी रिपोर्ट के मुताबिक इसी साल 24 सितंबर को हिंदू सेना प्रमुख विष्णु गुप्ता द्वारा दायर याचिका की सुनवाई पहले 25 सितंबर को होनी थी, लेकिन अधिकार क्षेत्र के मुद्दों के चलते इसे 10 अक्टूबर तक के लिए टाल दिया गया था.

“मोहम्मद गौरी ने नष्ट किया”

याचिका में दावा किया गया है कि ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती मोहम्मद गौरी (12-13वीं सदी के अफगान शासक) के साथ अजमेर आए थे. उन्होंने पृथ्वीराज चौहान की हत्या के बाद संकट मोचन महादेव मंदिर सहित कई मंदिरों को नष्ट कर दिया था. हिंदू सेना ने किताबों और कथित ‘साक्ष्यों’ का हवाला देते हुए दावा किया कि अजमेर दरगाह के मुख्य प्रवेश द्वार की छत का डिजाइन हिंदू संरचना जैसा दिखता है और ऐतिहासिक अभिलेखों से पता चलता है कि इस जगह पर शिव मंदिर था.

रिपोर्ट के अनुसार मामला गलती से एडिशनल चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट नंबर-3 की अदालत के बजाय चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट की अदालत में दायर किया गया था. जिसके बाद याचिकाकर्ता ने एक आवेदन दायर कर अनुरोध किया कि था मुकदमे को उचित अदालत में ट्रांसफर किया जाए.

याचिकाकर्ता के वकील शशि रंजन कुमार सिंह ने दावा किया था कि ये मुकदमा "प्रामाणिक स्रोतों से प्राप्त तथ्यों पर आधारित है". याचिकाकर्ता ने मांग की थी कि परिसर से सूफी दरगाह को हटाया जाए और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को वाराणसी में ज्ञानवापी सर्वेक्षण की तर्ज पर इस स्थल पर सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया जाए.

वीडियो: तारीख: अजमेर शरीफ दरगाह की कहानी, अकबर की कौन सी मन्नत पूरी हुई?