केरल के कोच्चि की रहने वाली लावण्या कश्मीर घूमने गई थीं. कश्मीर में भी पहलगाम घूमने. दो दिन की ट्रिप तय थी. पहलगाम भी वो ठीक उसी वक्त जा रही थीं, जब वहां आतंकवादियों का आतंक मचा था. 4-5 आतंकवादी टूरिस्ट्स को गोली मार रहे थे. रास्ता सिर्फ 2 किमी बचा था. तभी कुछ ऐसा दिखा कि लावण्या और उनके परिवार ने मौत के मुंह में जाने का इरादा छोड़ दिया और वापस लौट गए. हालांकि उन्हें तब तक पता नहीं था कि वे जहां जा रहे थे वहां असल में गड़बड़ क्या हुई है?
पहलगाम आतंकी हमला: खाने में ज्यादा नमक ने बचा ली 11 सैलानियों की जान
Pahalgam Terror Attack: केरल का ये परिवार घूमने के लिए पहलगाम जा रहा था. ठीक उसी दिन और उसी वक्त जब आतंकियों ने वहां हमला किया. उस हमले का शिकार ये 11 लोग भी हो सकते थे. मगर रेस्टोरेंट के बावर्ची की एक लापरवाही ने इन सबकी ज़िंदगी बचा ली.

बाद में उन्होंने टीवी पर देखा तो उनकी सांस अटक गई. आतंकवादियों ने पहलगाम में 28 लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी थी. कई लोग घायल हैं. मरने वालों की लिस्ट में उनका परिवार भी शामिल हो सकता था, ये सोचकर ही रूह कांप गई. बार-बार वह उन 2 लोगों को शुक्रिया कहती रहीं, जिनकी वजह से आज जान बच गई. एक तो मटन रोगन जोश बनाने वाले उस बावर्ची को. दूसरा अपने पति को.
पूरी कहानी विस्तार से बताते हैं
लावण्या बताती हैं कि वह केरल से कश्मीर घूमने के लिए आई थीं. वह और उनके परिवार के अन्य 10 लोग ‘भारत का स्विट्जरलैंड’ कहे जाने वाले पहलगाम को ठीक से एक्सप्लोर करना चाहते थे. लिहाजा, दो दिन की ट्रिप यहां की रखी गई. लावण्या के साथ थे उनके पति एल्बी जॉर्ज और तीन बच्चे. मां-बाप. चचेरी बहन और उनका परिवार. वह बताती हैं,
पहलगाम जब सिर्फ 2 किमी बचा था, तभी हमने देखा कि कुछ घोड़े भागते हुए आ रहे हैं. लगा कुछ तो गड़बड़ है तभी जानवर पैनिक मोड में हैं. हमने सोचा लैंडस्लाइड हो सकता है लेकिन फिर लगा नहीं. कुछ और बात है. हमने फिर भी आगे बढ़ने का फैसला किया. तभी कुछ और गाड़ियां नीचे उतरती दिखाई दीं. उनमें बैठे लोग हमें हाथ से इशारा कर रहे थे कि मत जाओ.
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उन्होंने आगे बताया कि कुछ लोगों ने उनसे कहा कि सीआरपीएफ और टूरिस्ट्स के बीच किसी बात पर बहस हो गई है. तब भी वो लोग आगे जाने की सोच रह थे लेकिन आखिर में प्लान ड्रॉप कर दिया. उन्होंने बताया, 'हम फिर नीचे चले गए और तस्वीरें क्लिक करवाने लगे. हमें अब भी नहीं पता था कि वहां क्या हो रहा था?' तभी हमने एक महिला को रोते हुए सीआरपीएफ के जवान के साथ आते देखा. अब हम समझ गए थे कि कुछ बड़ी गड़बड़ हुई है. हमें ढेर सारे फोन आने लगे. दोस्त और परिवार के लोग हमारी सिक्योरिटी के बारे में पूछने लगे.' लावण्या ने आगे बताया,
बाद में जब हमने न्यूज देखा, तब समझ आया कि हम कितने भाग्यशाली हैं और किस चीज से बचकर आए हैं.
उन्होंने बताया कि इस जीवनदान के लिए वह सिर्फ दो लोगों की शुक्रगुजार हैं. एक तो उस रेस्टोरेंट के स्टाफ की, जिन्होंने मटन रोगन जोश दोबारा बनाने की जिद पकड़ ली थी. दूसरा उनके पति जिन्होंने फैसला किया कि सब पहले लंच करेंगे. फिर कहीं जाएंगे.

लावण्या ने कहा
हमने दो दिनों से दोपहर में खाना नहीं खाया था क्योंकि यह पीक टूरिस्ट सीजन था और बहुत भागदौड़ मची थी. उस दिन मेरे पति ने एक रेस्टोरेंट पर रुकने के लिए कहा और जिद की कि हम पहले लंच करेंगे. हमें वहां डेढ़ घंटे लग गए.
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रेस्टोरेंट में उन लोगों ने जो मटन रोगन जोश ऑर्डर किया था, उसमें नमक बहुत ज्यादा था. कई बोन पीसेज ऐसे थे, जो उनके बुजुर्ग मां-पिता के लिए खाने लायक नहीं थे. लावण्या ने बताया,
हमने रेस्टोरेंट के स्टाफ से इसकी शिकायत की. उन्हें ये बुरा लगा. उन्होंने हमारे लिए इसे फिर से बनाकर लाने की बात कही. हमने उन्हें मना किया और कहा कि हमें देर हो जाएगी लेकिन वो लोग नहीं माने. मुझे ये अच्छा लगा कि वह फिर से मटन बनाकर लाने की जिद पर अड़े रहे.
लावण्या याद करती हैं कि मटन रोगन जोश बनने में जो ज्यादा समय लगा, उसने उनकी और परिवार की जिंदगी बचा ली. इसकी वजह से ही वो लोग पहलगाम देर से पहुंचे और आतंकी हमले का शिकार होने से बाल-बाल बच गए. हमले की जानकारी होने के बाद वो तुरंत श्रीनगर रवाना हो गए. अब यहां से 25 अप्रैल को केरल लौट जाएंगे. कन्नूर में बूटीक चलाने वाली लावण्या ये बताना नहीं भूलतीं कि कश्मीर के स्थानीय लोग बहुत अच्छे हैं. उन्होंने कहा,
यहां के लोकल लोग इतने प्यारे हैं कि आप उनसे झट से जुड़ जाते हैं. जो घटना हुई, उसे लेकर वो लोग बहुत अपसेट थे. अपने इलाके में टूरिजम सेक्टर के भविष्य को लेकर वो काफी टेंशन में हैं.
उन्होंने कहा कि वह भगवान से प्रार्थना करती हैं कि घाटी में चीजें जल्दी से सामान्य हों और लोगों की रोजी-रोटी प्रभावित न हो.
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