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Om Prakash Chautala: हरियाणा के पूर्व CM ओमप्रकाश चौटाला का निधन

Om Prakash Chautala Death: हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला का निधन हो गया है. इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) प्रमुख ने 89 साल के उम्र में गुरुग्राम स्थित अपने आवास पर अंतिम सांसें लीं.

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ओमप्रकाश चौटाला का निधन हो गया. (फाइल फोटो: एजेंसी)

हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला (OM Prakash Chautala) का निधन हो गया है. इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के प्रमुख ने 89 साल के उम्र में गुरुग्राम स्थित अपने आवास पर अंतिम सांसें लीं.

चौटाला, देश के पूर्व उपप्रधानमंत्री चौधरी देवी लाल के बेटे थे. 1989 में वो पहली बार हरियाणा के CM बनें. इसके बाद 1990 और 1991 में भी उन्होंने CM पद की शपथ ली. हालांकि, ये तीनों कार्यकाल बहुत कम दिनों के लिए थे. इसके बाद 1999 से 2005 तक वो CM पद पर बने रहें.

CM बनने की दिलचस्प कहानी

दिसंबर 1989 में वीपी सिंह ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. उन दिनों देवीलाल हरियाणा की जनता दल सरकार के मुख्यमंत्री होते थे. दिल्ली जाने के लिए उन्होंने हरियाणा विधानसभा से इस्तीफा दे दिया. और तब जरूरत पड़ी उनकी विधानसभा सीट के लिए उपचुनाव कराने की. ये सीट ‘महम’ थी. 

देवीलाल ने अपना राज-पाट अपने बेटे ओम प्रकाश चौटाला को सौंपा. 2 दिसंबर 1989 को ही ओम प्रकाश चौटाला हरियाणा के मुख्यमंत्री बनें. लेकिन वो तब हरियाणा विधानसभा में विधायक नहीं थे. इसलिए तय हुआ कि वो महम सीट से उपचुनाव लड़ेंगे. इस सीट पर उनके पिता को तीन बार से लगातार जीत मिल रही थी. चौटाला के लिए इसे एक सेफ सीट माना गया.

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ताकतवर महापंचायत (महम चौबीसी) ने उनका विरोध किया लेकिन वो अपने पिता की सीट से ही चुनाव लड़ने पर अड़ गए. 27 फरवरी 1990 को महम में वोट पड़े और जम कर बवाल हुआ. बूथ कैपचरिंग हुई. पत्रकारों से भी झूमाझटकी हुई. इस सब में पुलिस ने अभय सिंह का साथ दिया.
नतीजे में केंद्र से आए चुनाव आयोग के सूपरवाईजर ने 8 बूथों पर दोबारा वोटिंग का आदेश दे दिया. अभय सिंह इस दिन भी अपने साथ लोक दल काडर और पुलिस को लेकर निकले. डांगी के समर्थकों को वोट डालने से रोका गया. डांगी के समर्थकों ने ज़ोर आज़माया तो पुलिस ने उन पर गोली चला दी. 8 लोगों की जान गई. इस सब के बाद उपचुनाव रद्द कर दिए गए. 

इसी साल मई की 21 तारीख को महम में दोबार उपचुनाव कराना तय हुआ. महम में हालात नहीं सुधरे तो चौटाला के लिए एक दूसरी सीट दरबान कलां खाली कराई गई. लेकिन चौटाला महम से लड़ने के पर अड़े रहे. फिर लोक दल से बागी होकर अमीर सिंह ने यहां से निर्दलीय कैंडिडेट के तौर पर पर्चा भर दिया. ये भी कहा गया कि अमीर सिंह को चौटाला ने ही खड़ा किया था. माहौल में तनाव था. हर किसी को डर था कि कोई अनहोनी न हो जाए.

और ये डर सच निकला जब 16 मई 1990 को भिवानी में अमीर सिंह की लाश मिली. अमीर सिंह का मर्डर हुआ था. एक कैंडिडेट की हत्या हो जाने से चुनाव रद्द हो गए. पुलिस ने अमीर सिंह मर्डर का इल्ज़ाम लगाया डांगी पर. डीआईजी वाय.एस नाकई ढेर सारी पुलिस फोर्स लेकर डांगी को गिरफ्तार करने मदीना गए. लेकिन डांगी के समर्थक आड़े आए और पुलिस ने गोली चला दी. तीन और लोगों की जान गई. इसे मदीना कांड कहा गया.
बाद में डांगी सुप्रीम कोर्ट अपने खिलाफ जांच पर स्टे ले आए. अगस्त में केंद्र की वीपी सरकार के कहने पर सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज डीपी मैदोन ने अमीर सिंह मर्डर और मदीना में हुई फाइरिंग की जांच शुरू की. मैदोन ने दिसंबर में इस्तीफा दे दिया. ये कहकर कि हरियाणा सरकार सहयोग नहीं कर रही.

महौल इतना खराब हुआ कि केंद्र में वीपी सिंह पर कार्रवाई का दबाव बनने लगा. वो जनता दल सरकार के प्रधानमंत्री थे और हरियाणा की सरकार जनता दल सरकार ही कहलाती थी. (वैसे देवीलाल ने चुनाव लोक दल नाम से लड़ा था.) उन्होंने ओम प्रकाश चौटाला से इस्तीफा देने को कहा. केंद्र की सरकार को समर्थन दे रही भाजपा भी इसी के लिए दबाव बना रही थी. लेकिन देवीलाल इसके खिलाफ थे. इस्तीफा दने की धमकी तक दी. पर वीपी सिंह अड़ गए. ओमप्रकाश का इस्तीफा लेकर ही माने. 22 मई 1990 को बनारसी दास गुप्ता को हरियणा के मुख्यमंत्री की शपथ दिला दी गई. 

इसके बाद 1990 में वो 5 दिनों के लिए और 1991 में 15 दिनों के लिए मुख्यमंत्री बनें.

कंडेला कांड

साल 2000 में मुफ्त बिजली का वादा कर चौटाला की सत्ता में वापसी हुई. लेकिन यह वादा उनके गले की फांस बन गया. दरअसल उन्होंने सत्ता संभालने के बाद गांव-गांव बिजली भी पहुंचाई. लेकिन नया मीटर लगने से बिजली बिल अचानक बढ़ गया. बिजली बिल बढ़ने से किसान ठगा महसूस करने लगे. उन्होंने यह कहते हुए बिजली बिल भरने से इनकार कर दिया कि सरकार ने मुफ्त बिजली का वादा किया था. इधर सरकार ने कई गांवों की बिजली काट दी. नतीजन किसान सड़कों पर आ गए. और सरकार के खिलाफ प्रोटेस्ट करने लगे. जींद हाइवे जाम कर दिया. उसी दौरान जींद के एक गांव कंडेला में किसानों की उग्र भीड़ पर पुलिस ने गोलियां चला दीं. इस गोलीबारी में 9 किसानों की मौत हो गई. कंडेला कांड की गूंज पूरे हरियाणा में सुनाई पड़ी. इसकी धमक तीन साल बाद हुए हरियाणा चुनाव में भी दिखी. चौटाला की पार्टी महज 9 सीटों पर सिमट गई. चौटाला दो सीटों से चुनाव लड़े थे. एक सीट पर हार गए. उनके 10 मंत्री चुनाव हारे. और तब से इनेलो वापस कभी राज्य की सत्ता में वापसी नहीं कर पाई.

टीचर घोटाला में जेल गए ओमप्रकाश चौटाला

1999-2000 में हरियाणा के 18 जिलों में टीचर भर्ती घोटाला सामने आया. यहां मनमाने तरीके से 3,206 जूनियर बेसिक ट्रेनिंग टीचरों की भर्ती हुई थी. उस समय के प्राथमिक शिक्षा निदेशक संजीव कुमार ने इसे उजागर किया. उन्होंने घोटाले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. कोर्ट के आदेश पर 2003 में CBI ने घोटाले की जांच शुरु की. जांच आगे बढ़ी तो घोटाले की परतें खुलती चली गईं.

जनवरी 2004 में सीबीआई ने सीएम ओमप्रकाश चौटाला, उनके विधायक बेटे अजय चौटाला, सीएम के ओएसडी विद्याधर, सीएम के राजनीतिक सलाहकार शेर सिंह बड़शामी समेत 62 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया. जनवरी 2013 में दिल्ली में CBI की स्पेशल कोर्ट ने चौटाला और उनके बेटे अजय सिंह चौटाला को दस साल की सजा सुनाई. चौटाला इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट तक गए. लेकिन कोर्ट ने उनकी सजा बरकरार रखी.

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