मद्रास हाई कोर्ट ने कहा है कि प्यार करने वाले दो इंसानों के लिए एक-दूसरे को गले लगाना और चूमना स्वाभाविक है. ये कहते हुए कोर्ट ने एक लड़की के साथ कथित यौन उत्पीड़न मामले में आरोपी व्यक्ति के खिलाफ दर्ज किया गया मामला रद्द कर दिया (Madras High Court Quashes Sexual Harassment Case). मामला भारतीय दंड संहिता की धारा 354A के तहत दर्ज किया गया था.
‘प्यार में लड़का-लड़की का Kiss करना स्वाभाविक... ' ये कह कोर्ट ने पूरा केस ही खारिज कर दिया
मद्रास हाई कोर्ट ने कहा है कि प्यार करने वाले दो इंसानों के लिए एक-दूसरे को गले लगाना और चूमना स्वाभाविक है. ये कहते हुए कोर्ट ने एक लड़की के साथ कथित यौन उत्पीड़न मामले में आरोपी व्यक्ति के खिलाफ दर्ज किया गया मामला रद्द कर दिया. लेकिन ये मामला था क्या?
कोर्ट संथानगणेश नाम के शख्स द्वारा दायर की गई याचिका पर सुनवाई कर रहा था. लाइव लॉ में छपी उपासना संजीव की रिपोर्ट के मुताबिक संथानगणेश के खिलाफ श्रीवैगुंडम के महिला पुलिस स्टेशन द्वारा आईपीसी की धारा 354-A (1)(i) के तहत अपराध का मामला दर्ज किया गया था.
जस्टिस आनंद वेंकटेश ने मामले की सुनवाई की. रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस वेंकटेश ने कहा कि यौन उत्पीड़न का अपराध बनने के लिए, किसी पुरुष को शारीरिक संपर्क बनाना होगा और स्पष्ट रूप से यौन उत्पीड़न करना होगा. इस मामले को लेकर कोर्ट ने कहा कि पुरुष और महिला के बीच प्रेम संबंध को स्वीकार किया गया था, और प्यार में पड़े दो व्यक्तियों के लिए एक-दूसरे को गले लगाना और चूमना बिल्कुल स्वाभाविक है. कोर्ट ने कहा कि ये मामला किसी भी तरह से धारा 354-A (1)(i) के तहत अपराध नहीं बन सकता है.
आरोप लगाया गया कि संथानगणेश साल 2020 से शिकायतकर्ता के साथ प्रेम संबंध में था. 13 नवंबर, 2022 को संथानगणेश ने शिकायतकर्ता को एक स्थान पर बुलाया था. आरोप लगाया गया कि जब वो दोनों बात कर रहे थे, तो संथानगणेश ने शिकायतकर्ता को गले लगाया और उसे kiss किया. जिसके बाद शिकायतकर्ता ने अपने माता-पिता को इसके बारे में बताया और उससे शादी करने के लिए कहा. जब संथानगणेश ने उससे शादी करने से इनकार कर दिया और उसे इग्नोर करना शुरू कर दिया, तो उसने शिकायत दर्ज कराई.
मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि यदि FIR में लगाए गए आरोपों को सही मान भी लिया जाए तो भी याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई अपराध नहीं बनता है. ऐसी परिस्थिति में उसके खिलाफ आपराधिक कार्यवाही जारी रखना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा.
कोर्ट ने ये भी कहा कि उसने पुलिस को अंतिम रिपोर्ट दाखिल न करने के लिए कहा था, लेकिन पुलिस ने ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट के समक्ष अंतिम रिपोर्ट दाखिल कर दी थी, जिसे फाइल पर ले लिया गया था. पर कोर्ट ने आगे कहा कि भले ही एफआईआर को रद्द करने के लिए याचिका दायर की गई हो, लेकिन अदालत CrPC की धारा 482 के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग कर सकती है और पूरी कार्यवाही को खुद ही रद्द कर सकती है.
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