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नारायण मूर्ति ने फिर दोहराई अपनी बात, भारतीयों के लिए क्यों जरूरी है 'हफ्ते में 70 घंटे काम'

Narayana Murthy 70 Hour Workweek: नारायण मूर्ति इंडियन चैंबर ऑफ़ कॉमर्स (ICC) के शताब्दी समारोह के उद्घाटन कार्यक्रम में पहुंचे थे. उनके साथ RPSG ग्रुप के चेयरमैन संजीव गोयनका भी मौजूद थे. इसी दौरान उन्होंने ये बातें कहीं.

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नारायण मूर्ति ने पूंजीवाद पर भी बात की है. (फ़ोटो - PTI)

इंफोसिस के को-फाउंडर ने एक बार फिर अपने ‘हफ़्ते में 70 घंटे काम’ वाले स्टेटमेंट का बचाव किया है (Narayana Murthy 70-Hour Workweek). उन्होंने कहा कि युवाओं को ये समझना होगा कि हमें कड़ी मेहनत करनी होगी और भारत को नंबर-1 बनाने की दिशा में काम करना होगा. नारायण मूर्ति ने ये भी कहा कि एक समय तक वो वामपंथी थे. उन्होंने भारत की गरीबी और पूंजीवाद पर भी बात की है.

15 दिसंबर को नारायण मूर्ति कोलकाता पहुंचे थे. इंडियन चैंबर ऑफ़ कॉमर्स (ICC) के शताब्दी समारोह के उद्घाटन कार्यक्रम में. इसी दौरान उन्होंने ये बातें कहीं. नारायण मूर्ति ने कोलकाता को संस्कृति का सबसे अच्छे से ध्यान रखने वाला शहर भी बताया. NDTV की ख़बर के मुताबिक़, नारायण मूर्ति आगे बोले,

एक बार जब हम अपनी तुलना बेस्ट ग्लोबल कंपनियों से करेंगे, तो मैं आपको बता सकता हूं कि हम भारतीयों के पास करने के लिए बहुत कुछ है. हमें अपनी आकांक्षाएं ऊंची रखनी होंगी, क्योंकि 800 मिलियन (80 करोड़) भारतीयों को मुफ्त राशन मिलता है. इसका मतलब है कि 800 मिलियन भारतीय गरीबी में हैं. अगर हम कड़ी मेहनत करने की स्थिति में नहीं हैं, तो कौन कड़ी मेहनत करेगा?

अरबपति नारायण मूर्ति का कहना था,

यहां एक सज्जन ने मुझे बताया कि एक चीनी कर्मचारी एक भारतीय से 3.5 गुना ज़्यादा प्रोडक्टिव है. हमारे लिए बकवास चीज़ें लिखना और दुखी, गंदे और गरीब बने रहना आसान है. इसलिए, मुझे नहीं लगता कि हमें ये कहना चाहिए कि हम सहज हैं और मैं ऑफ़िस नहीं जाऊंगा. यहां इकट्ठा हुए लोगों से मेरा अनुरोध है कि वो अपने जीवन को अपनी वैल्यू को समझने के लिए समर्पित करें.

इंडियन चैंबर ऑफ़ कॉमर्स (ICC) की बैठक में RPSG ग्रुप के चेयरमैन संजीव गोयनका भी मौजूद थे. उनसे बात करते हुए नारायण मूर्ति ने ख़ुद से जुड़ा एक क़िस्सा सुनाया. उन्होंने कहा,

एक समय मैं वामपंथी था, जब जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री थे और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) वास्तविकता बन चुकी थी. मेरे पिता उस समय देश में हो रही असाधारण प्रगति के बारे में बात करते थे और हम सभी नेहरू और समाजवाद के मुरीद थे. मुझे 70 के दशक की शुरुआत में पेरिस में काम करने का मौका मिला. मैंने फ्रांसीसी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता से मुलाक़ात की और उन्होंने मेरे सभी सवालों के जवाब दिए, लेकिन मेरी संतुष्टि के अनुसार नहीं.

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संजीव गोयनका के साथ नारायण मूर्ति. (फ़ोटो - PTI)

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उन्होंने आगे कहा,

मुझे एहसास हुआ कि एक देश गरीबी से तभी लड़ सकता है, जब वह रोजगार पैदा करे, जिससे खर्च करने लायक आय हो. उद्यमिता में सरकार की कोई भूमिका नहीं होती. मुझे ये भी एहसास हुआ कि उद्यमी राष्ट्र का निर्माण करते हैं, क्योंकि वे रोजगार पैदा करते हैं. वे अपने निवेशकों के लिए संपत्ति बनाते हैं और वे करों का भुगतान करते हैं. इसलिए, अगर कोई देश पूंजीवाद को अपनाता है, तो वो अच्छी सड़कें, अच्छी रेलगाड़ियां और अच्छा बुनियादी ढांचा तैयार करेगा.

नारायण मूर्ति ने बताया कि तब उन्हें लगा कि अगर उन्हें वापस जाना है और उद्यमिता में प्रयोग करना है, तो उन्हें ‘दयालु पूंजीवाद’ (Compassionate Capitalism) को अपनाना होगा.

‘70 घंटे काम’ वाले बयान पर विवाद

दरअसल, एक पॉडकास्ट में नारायण मूर्ति ने कहा था कि भारत की काम की प्रोडक्टिविटी दुनिया में सबसे कम है और देश के विकास को सुनिश्चित करने के लिए युवाओं को हफ़्ते में कम से कम 70 घंटे काम करने के लिए तैयार रहना चाहिए. हालांकि, बाद में उन्होंने साफ किया कि 70 घंटे वाला नंबर महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि कड़ी मेहनत को लेकर फोकस्ड होना है.

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