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'अपने ही देश में शरणार्थी हैं हम', मुर्शिदाबाद हिंसा के पीड़ितों का दर्द सामने आया

बीती 11-12 अप्रैल को मुर्शिदाबाद के कुछ हिस्सों में वक्फ कानून को लेकर आयोजित विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा हुई थी. इस हिंसा में 72 साल के हर्गोबिंदो दास और उनके 40 साल के बेटे चंदन दास की मौत हो गई.इसके अलावा एक अन्य मृतक इजाज अहमद की गोली लगने से मौत हो गई.

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मुर्शिदाबाद हिंसा के बाद कैंप में लोगों के हालात. (तस्वीर : ANI)

पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में नए वक्फ कानून को लेकर भड़की हिंसा में अब तक तीन लोगों की मौत हुई है. हिंसा के चलते सैकड़ों परिवार अपने घर छोड़कर स्कूलों और अस्थायी कैंपों में शरण लेने को मजबूर हो गए हैं. इनमें से कई लोगों का कहना है कि वे अपने ही देश में 'शरणार्थी' बन गए हैं.

बीती 11-12 अप्रैल को मुर्शिदाबाद के कुछ हिस्सों में वक्फ कानून को लेकर आयोजित विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा हुई थी. इस हिंसा में 72 साल के हर्गोबिंदो दास और उनके 40 साल के बेटे चंदन दास की मौत हो गई. उनके परिवार का आरोप है कि भीड़ ने उन्हें घर से घसीटकर बाहर निकाला और बेरहमी से मार डाला. इसके अलावा एक अन्य मृतक इजाज अहमद की गोली लगने से मौत हो गई.

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक हिंसा के बाद करीब 400 पुरुष, महिलाएं और बच्चे अब परलालपुर के एक हाई स्कूल में शरण लिए हुए हैं. इस जगह को अस्थायी राहत शिविर में तब्दील कर दिया गया है. ज्यादातर लोग सुई, धूलियन और समाहरगंज इलाकों से आए हैं.

धूलियन इलाके की रहने वाली 24 साल की सप्तमी, अपने आठ दिन के बच्चे के साथ यहां मौजूद हैं. उनके पति मिस्त्री का काम करते हैं. उन्होंने बताया,

“हम अपने ही देश में शरणार्थी बन गए हैं. शायद हम कभी वापस न लौट सकें. अगर फिर से हमला हुआ तो?”

घटना पर बात करते हुए सप्तमी ने बताया कि शुक्रवार 11 अप्रैल की रात भीड़ ने उनके पड़ोसी के घर को आग लगा दी और उनके घर पर पत्थर बरसाए. उन्होंने बताया, “हम अपने माता-पिता के साथ छिप गए और जब भीड़ चली गई, तब बाहर निकले. BSF ने गश्त शुरू कर दी थी. हमारे पास सिर्फ वही कपड़े हैं जो हम पहन कर भागे. BSF की मदद से हम घाट तक पहुंचे.”

वहीं सप्तनी की मां महेश्वरी मंडल ने बताया, “रात में ही हमने नदी पार की. अंधेरे में नाव से दूसरी ओर पहुंचे, जहां एक परिवार ने हमें आश्रय दिया और कपड़े दिए. अगले दिन हम स्कूल में आ गए.” सप्तमी ने बताया कि नदी पार करते समय उनके बच्चे को बुखार हो गया. अब वे दूसरों की दया पर जी रहे हैं.

धूलियन की ही रहने वाली 56 साल की तुलोरानी मंडल ने बताया, “मेरा घर जला दिया गया है. हम तब तक वापस नहीं जाएंगे जब तक हमारे इलाके में कोई स्थायी BSF कैंप नहीं बनता.”

वहीं लालपुर की रहने वाली 30 साल की प्रतिमा मंडल ने हिंसक भीड़ द्वारा घर में तोड़फोड़ की आपबीती सुनाई. उन्होंने कहा, "मेरा बच्चा सिर्फ एक साल का है. हम सभी छत पर छिपे हुए थे, भीड़ ने घर में तोड़फोड़ की. हमने अगले दिन शाम को नाव से नदी पार की.

40 साल की नमिता मंडल ने चिंता जाहिर करते हुए कहा,

“हम कुछ भी साथ नहीं ला सके. पुलिस और BSF तो कुछ दिन में चले जाएंगे, फिर हमारी सुरक्षा कौन करेगा?”

रिपोर्ट के मुताबिक हिंसा के बाद से अब तक पुलिस ने 200 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया है. अधिकारियों का दावा है कि स्थिति अब सामान्य हो रही है, लेकिन शरणार्थियों को इस पर भरोसा नहीं है.

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