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Ground Report: मुर्शिदाबाद दंगे की असली कहानी खुल गई!

Murshidabad Ground Report: लोकसभा से वक्फ बिल पास हुआ. इसके बाद देश के अलग-अलग हिस्सों में मुस्लिम समुदाय के लोग सड़कों पर निकलना शुरू हुए. मुर्शिदाबाद भी इनसे अछूता नहीं था. जनसभाएं हुईं. मस्जिदों में भी तकरीरें हुईं. मकसद सिर्फ एक- वक्फ बिल का विरोध.

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मुर्शिदाबाद हिंसा में कई लोगों की जान चली गई. (तस्वीर: PTI)

पश्चिम बंगाल का मुर्शिदाबाद (Murshidabad Violence). ये इलाका बीते जुमे यानी 11 अप्रैल से अपने हिस्से की बदनामी बटोर चुका है. यहां के सूती, धुलियान, घोषपाड़ा, बेदबना, शमशेरगंज, जाफराबाद, डिगरी में हिंसा हुई है. सैकड़ों लोग अपने घरों को छोड़ गए. उन्होंने पास ही बहने वाली पद्मा नदी पार की और चले गए एक अन्य जिले मालदा में. कुछ और लोग थे, जिन्हें पड़ोस के राज्य झारखंड के पाकुड़ में पनाह मिली.

लेकिन इस हिंसा का असली कारण था क्या? इसको समझने के लिए आपको इस इलाके से सटे हुए बहरामपुर के पूर्व सांसद और कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी से मिलना होगा. अधीर रंजन चौधरी आज भी कांग्रेस ऑफिस में नियमतः पत्रकार वार्ता आयोजित करते हैं. और नियमतः किसी सवाल पर खफा हो जाते हैं, और गुस्साकर चले जाते हैं.

जब इस पत्रकार का अधीर रंजन चौधरी से मिलना हुआ, तो सूबे की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर हमले करने के अलावा कांग्रेस सांसद ने एक जरूरी बात कही,

आजादी और बंटवारे के बाद देश के दो ही इलाके हैं जो मुस्लिमबहुल हैं. एक है अनंतनाग, और दूजा है मुर्शिदाबाद. जो भी लोग यहां अचानक से मुस्लिम आबादी बढ़ने की बात कर रहे हैं, वो गलत कह रहे हैं.

ये मुस्लिम आबादी कैसे एक हिंसक एपिसोड के केंद्र में आई? ये समझते हैं. मुर्शिदाबाद का एक बड़ा हिस्सा, कोलकाता, दिल्ली और उड़ीसा में रहकर नौकरी करता है. और सालभर में ईद के मौके पर एक लंबी छुट्टी पर घर आया करता है. 31 मार्च 2025 का दिन, पूरे देश में ईद मनाई जा रही थी. ये हिस्सा भी इस समय अपने घर आया हुआ था.

2 अप्रैल, 2025. दिन भर चली बहस के बाद लोकसभा ने वक्फ संशोधन विधेयक को पास कर दिया. और संशोधन पास होने के बाद मुस्लिम समुदाय की ओर से स्वाभाविक विरोध शुरू हुआ. कुछ संगठनों ने देशव्यापी विरोध की कॉल भी दी हुई थी.

देश के अलग-अलग हिस्सों में मुस्लिम समुदाय के लोग सड़कों पर निकलना शुरू हुए. मुर्शिदाबाद भी इनसे अछूता नहीं था. जनसभाएं हुईं. मस्जिदों में भी तकरीरें हुईं. मकसद सिर्फ एक- वक्फ बिल का विरोध.

चूंकि 6 अप्रैल को रामनवमी मनाई जानी थी, इसलिए पश्चिम बंगाल पुलिस अतिरिक्त सतर्कता बरत रही थी. क्योंकि मार्च के महीने में रामनवमी के एक रिहर्सल जुलूस के बाद मुर्शिदाबाद में पथराव हुआ था. लिहाजा अब जुलूस वगैरह को परमिशन नहीं दी जा रही थी. फिर भी सड़कों से वक्फ बिल के विरोध के दृश्य टीवी स्क्रीन्स पर तैर रहे थे.

लेकिन इस समय कुछ और भी घट रहा था, जिसकी भनक मीडिया को नहीं लगी. इस समय पश्चिम बंगाल के अलग-अलग हिस्सों में वॉट्सऐप मैसेज तैरने लगे थे. ये मैसेज मुस्लिम समुदाय को वक्फ कानून की खामी बताने की नीयत से भेजे जा रहे थे. खामी तक तो बात ठीक है, लेकिन इन मैसेजेस में कुछ भ्रांतियां भी लिखी हुई थीं. सूत्र बताते हैं कि लोगों को ये तक कहा गया कि नये कानून के बाद केंद्र सरकार कब्रों और कब्रिस्तान तक पर कब्जा कर लेगी.

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इस बात की पुष्टि तब कुछ और हुई, जब सूबे के ADG (law and order) जावेद शमीम ने पत्रकारों को बयान दिया कि उन्होंने कई सोशल मीडिया हैंडल्स को ब्लॉक किया है. और इस भ्रामक सूचना फैलाने वाले एंगल की गहनता से जांच कर रहे हैं.

पुष्टि धुलियान बाजार के बिधान सरणी में मिले कुछ मुस्लिम युवाओं ने भी की. जब एक जली हुई पूजा सामग्री की दुकान के सामने इस पत्रकार ने मुस्लिम युवाओं से वक्फ पर सवाल किया, तो अधिकतर युवाओं ने कहा कि उनके पास वक्फ कानून से जुड़ी कोई जानकारी नहीं है. कुछेक ने कहा, “ये कानून हम मुसलमानों की संपत्तियों पर कब्जा करने के लिए लाया गया है.”

11 अप्रैल. इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोगों ने एक विरोध मार्च निकाला. मार्च नेशनल हाईवे नंबर 12 पर. जैसे ही ये मार्च जांगीपुर के सूती ब्लॉक के पास पहुंचा, बंगाल पुलिस ने रोकने की कोशिश की. लोग नहीं माने. पुलिस ने लाठी से भगाने की कोशिश की. फिर भी स्थिति नहीं संभली. लिहाजा पुलिस ने चार राउंड गोलियां फायर कीं. एक गोली सीधे 21 साल के एजाज अहमद को उस जगह लगी, जहां पैर और पेट का निचला हिस्सा जुड़ता है. पुलिस उसे जांगीपुर अस्पताल लेकर गई. फिर बहरामपुर. लेकिन कुछेक दिनों तक चले इलाज के बाद उसकी मौत हो गई.

लेकिन जिस समय जांगीपुर में ये सबकुछ हो रहा था, वहां से 35 किलोमीटर आगे धुलियान बाजार में हिंसा भड़क गई थी. वक्फ विरोध वास्ते निकले ‘मिचिल’ (रैली) में 11 से 21 साल तक के लड़के भरे हुए थे. दृश्य आए कि ये लड़के पत्थर चला रहे थे, पेट्रोल बम फेंक रहे थे. और हिंदू समुदाय की दुकानों, घरों पर पत्थर मार रहे थे, आगजनी कर रहे थे. वो मंदिरों को भी तोड़ रहे थे.

अब यहां पर स्टोरी में एक कैच है. धुलियान बाज़ार में मौजूद हिन्दू और मुस्लिम समुदाय के लोग एक स्वर में कहते हैं कि मुस्लिम समुदाय के लोगों ने हिंसा की. अधिकतर लोगों ने चेहरे ढंके हुए थे, तो उनकी पहचान मुश्किल थी. लेकिन वो ये भी कहते हैं कि ये तमाम लोग इस इलाके के नहीं थे. हालांकि, इसमें एक ट्रिविया ये भी है कि जब ये तमाम लोग यहां के नहीं थे, तो तेज उग्र भीड़ ने इस बात की शिनाख्त कैसे की, कि कौन सी संपत्ति किस धर्म की है? लोग एक बड़ी साजिश की ओर इशारा करते हैं. चूंकि पुलिस जांगीपुर नेशनल हाईवे पर ही फंस गई थी, तो इससे धुलियान बाजार में फसादियों को खुली छूट मिल गई थी. दो-तीन घंटों तक खुला उपद्रव चला, और आखिर में जाकर स्थिति शांत हो सकी.

लेकिन 12 अप्रैल की तारीख अभी बची थी. इस दिन धुलियान बाजार में शांति थी, लेकिन शमशेरगंज और आसपास के इलाके में सुबह 9 बजे से हिंसा शुरू हो गई. सबसे अधिक हिंसा बेदबना में हुई, यहां मंदिर को तोड़ा गया और आसपास के घरों में आगजनी की गई. लोगों ने दावा किया कि हमला करती भीड़ ने ‘अल्लाह हु अकबर’ का नारा लगवाने के लिए फोर्स किया.

इसके बाद भीड़ का एक हिस्सा डिगरी पहुंचा. यहां मौजूद दर्जन भर से ज्यादा हिन्दू घरों में तोड़फोड़ की गई. वहां मौजूद लोगों से कहा गया कि ये जगह छोड़ दो.

इस समय ही भीड़ का एक और हिस्सा यहां से एक किलोमीटर दूर मौजूद जाफराबाद गांव में उत्पात शुरू कर चुका था. नारेबाजी और तोड़फोड़ के बीच एक ऐसा मौका आया, जब स्थिति खराब हो गई. और भीड़ ने 70 वर्षीय हरगोबिंद दास और उनके 40 साल के बेटे चंदन दास को घर से निकाला, और परिजनों के सामने ही चापड़ से काट डाला. कुछ ही देर बाद तड़पड़ते हुए बाप-बेटे ने दम तोड़ दिया. बाद में पुलिस ने दोनों की हत्या के आरोपी कालू मादब और दिलदार मादब को बंगाल के अलग-अलग इलाकों से गिरफ्तार कर लिया.

ये घटनाक्रम जब घटित हो रहा था, तो पुलिस कहां थी? लोगों ने कहा कि पुलिस मौके पर मौजूद नहीं थी. वो फोन करते रहे, और पुलिस नहीं पहुंची. गोया निकम्मेपन की हद. और पुलिस पहुंची कब? दोपहर 2 बजे के बाद, जब हिंसा का गुबार थम गया. और कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश के बाद केंद्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती कर दी गई. फिर 12 अप्रैल की देर रात केंद्रीय वाहिनियों की मदद से कुछ हिंदू परिवारों ने इन इलाकों को छोड़ दिया. और पास के मालदा में मौजूद पाल्लमपुर स्कूल में पनाह ली, जिसका अधिकांश कामधाम स्थानीय भारतीय जनता पार्टी की यूनिट देख रही है.

कुछ परिवार अभी भी धुलियान में मौजूद हैं. वो डरे तो हुए हैं, लेकिन कहते हैं कि साथ वालों से नहीं, डर उनसे लगता है जो मुंह छुपाकर आते हैं और फिर कोई सवाल नहीं पूछते हैं.

वीडियो: तारीख: कहानी मुर्शिदाबाद की जो एक समय बंगाल की राजधानी था, और अब वहां 'वक़्फ़' को लेकर बवाल हो रहा है