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महिला कर्मचारी को मैटरनिटी लीव नहीं दी, प्रेग्नेंसी पर सवाल उठाए, HC ने मजिस्ट्रेट को कायदा पढ़ा दिया

याचिकाकर्ता महिला ने अदालत को बताया कि साल 2020 में उसके पहले पति का निधन हो गया था. इसके बाद, साल 2024 में उसने दूसरी शादी की. इसके बाद महिला ने 18 अक्टूबर, 2024 को मैटरनिटी लीव के लिए अप्लाई किया था, लेकिन ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट ने याचिका खारिज कर दी.

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मैटरनिटी लीव न देने पर मजिस्ट्रेट को हाईकोर्ट की फटकार. (तस्वीर : unsplash)

महिला कर्मचारी को मैटरनिटी लीव ना देना एक ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट को अदालत में बहुत भारी पड़ गया. मद्रास हाई कोर्ट ने ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट के फैसले को ‘अमानवीय’ बताते हुए उन्हें कड़ी फटकार लगाई. मजिस्ट्रेट ने तर्क दिए कि महिला ने अपनी दूसरी शादी का कोई सर्टिफिकेट नहीं दिया था. उन्होंने महिला की प्रेग्नेंसी पर भी संदेह जताया. कहा कि ऐसा लगता है कि महिला की प्रेग्नेंसी शादी के पहले हुई है. लेकिन उच्च न्यायालय के आगे ये दलीलें काम नहीं आईं.

टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर के मुताबिक, मामला तमिलनाडु के थिरुवरूर जिले के कोडावासल का है. जस्टिस आर सुब्रमण्यम और जस्टिस जी अरुल मुरुगन की डिवीजन बेंच ने यहीं के ‘डिस्ट्रिक्ट मुंसिफ-कम-ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट’ के आदेश को रद्द कर दिया.

याचिकाकर्ता महिला ने अदालत को बताया कि साल 2020 में उसके पहले पति का निधन हो गया था. इसके बाद, साल 2024 में उसने दूसरी शादी की. इसके बाद महिला ने 18 अक्टूबर, 2024 को मैटरनिटी लीव के लिए अप्लाई किया था, लेकिन उसकी याचिका खारिज हो गई.

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महिला के वकील ने कोर्ट को बताया कि उनकी मुवक्किल ने मंदिर में शादी की थी. वकील ने कोर्ट को बताया कि एक ‘युवा विधवा’ होने के कारण उन्होंने शादी का रजिस्ट्रेशन नहीं कराया था. इसके अलावा महिला की तरफ से कोर्ट में शादी की तस्वीरें और वेडिंग इनविटेशन सबूत के तौर पर पेश किए गए. महिला ने यह भी बताया कि उसने अपने पति के खिलाफ एक FIR दर्ज करवाई थी. आरोप थे कि व्यक्ति ने शादी का वादा करके उन्हें धोखा दिया.

रिपोर्ट के मुताबिक ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट ने बताया कि उन्होंने तीन आधारों पर महिला की याचिका खारिज की थी. पहला, मैरिज सर्टिफिकेट न होना. दूसरा, FIR को विवाह का प्रमाण न माना जाना और तीसरा, महिला की प्रेग्नेंसी पर संदेह. 

हाई कोर्ट ने फैसले में क्या कहा?

लेकिन हाई कोर्ट ने मजिस्ट्रेट के फैसले को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि मैटरनिटी लीव शादीशुदा महिलाओं को दिया जाता है, लेकिन इसके लिए शादी का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य नहीं है. कोर्ट ने कहा कि एम्प्लॉयर को महिला से मैरिज सर्टिफिकेट मांगने का अधिकार नहीं है, जब तक कि शादी को लेकर कोई विवाद न हो.

एक लाख रुपये का मुआवजा

कोर्ट ने महिला को हुई मानसिक पीड़ा को लेकर हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को महिला को एक लाख रुपये का मुआवजा देने के आदेश दिए हैं. कोर्ट ने कहा,

“आज के समय में, जब सुप्रीम कोर्ट ने भी लिव-इन रिलेशनशिप को मान्यता दी है, तब एक न्यायिक अधिकारी का इस तरह का संकीर्ण दृष्टिकोण रखना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है.”

कोर्ट ने कहा कि अब समय आ गया है कि न्यायिक अधिकारी ‘खुद को सुधारें’ और चीजों को ‘व्यावहारिक नजरिए’ से देखें.

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