बेहतर समाज के निर्माण के लिए ‘जुर्माना ’ एक प्रभावी हथियार माना गया है. अक्सर, जब ‘साम’ से बात न बने. और ‘दाम’ देने की सहूलियत न हो. तो फिर ‘दंड’ ही एक कारगर उपाय माना जाता है. महाराष्ट्र के एक गांव ने भी समाज सुधार के लिए आर्थिक दंड का सहारा लिया है. यहां के अहिल्यानगर जिले के सौंदाला गांव में अब बातचीत के दौरान अगर किसी ने भी मां-बहन की गाली दी, तो फिर उसे जुर्माना भी देना होगा. जुर्माने की रकम है 500 रुपये.
महिलाओं के लिए इससे अच्छा गांव नहीं, गाली देने पर लगता है जुर्माना, विधवाएं फहराती हैं तिरंगा
सौंदाला गांव में हुई ग्रामसभा में लोगों ने यह फैसला लिया है. और बाक़ायदा बोर्ड लगा कर गांव वालों को इस बात की चेतावनी दी है. गांव के सरपंच शरद अडागले ने बताया कि यह फैसला महिलाओं की गरिमा और आत्मसम्मान की रक्षा के लिए लिया गया है.
सौंदाला गांव में हुई ग्रामसभा में लोगों ने यह फैसला लिया है. और बाक़ायदा बोर्ड लगा कर गांव वालों को इस बात की चेतावनी दी है. गांव के सरपंच शरद अडागले ने बताया कि यह फैसला महिलाओं की गरिमा और आत्मसम्मान की रक्षा के लिए लिया गया है. उन्होंने कहा, “हमें उम्मीद है कि ऐसे फैसले के बाद कोई ऐसी भाषा का प्रयोग नहीं करेगा.”
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इंडिया टुडे से जुड़े रोहित वाल्के की रिपोर्ट के मुताबिक 28 नवंबर को गांव में एक प्रस्ताव पारित कर यह फैसला लिया गया. इस प्रस्ताव में कहा गया,
“महिलाओं को सम्मान देने के लिए गालियों पर पाबंदी लगाने की जरूरत है. गांव में अक्सर जब पुरुषों में झगड़ा होता है, तो वे चिल्लाकर महिलाओं के प्राइवेट पार्ट पर अभद्र टिप्पणी करते हैं. ये महिलाओं का घोर अपमान है. महिलाएं का इन झगड़ों से कोई लेना-देना नहीं होता. फिर भी उन्हें गलियां सुननी पड़ती हैं.”
वहीं गांव की व्यवस्था को लेकर शरद अडागले कहते हैं,
“महाराष्ट्र छत्रपति शिवाजी महाराज का घर है. यहां पर तो महिलाओं का सम्मान जरूर होना चाहिए. हमारी ग्राम पंचायत ने ये ठराव (प्रस्ताव) पारित किया है कि जो भी महिलाओं पर गाली देगा, उसे 500 रुपये जुर्माना भरना पड़ेगा.”
सरपंच के अलावा गांव के उप सरपंच गणेश अडागले ने कहा कि उन्होंने इससे पहले विधवा महिलाओं के सम्मान के लिए गांव में प्रस्ताव पारित कराया था. उन्होंने बताया, “15 अगस्त ओर 26 जनवरी को हमारे गांव में विधवा महिला के हाथों ही राष्ट्रध्वज फहराया जाता है. इतना ही नहीं, हमारे गांव में विधवा महिलाओं को भी सजने-संवरने, साड़ी, बिंदी और मंगलसूत्र पहनने की भी इजाजत है. जिससे उनमें कभी अपमान या लज्जा की भावना ना पनपे. वो भी सम्मान के साथ गांव में जी सकें.”
गांव की महिलाओं में इस नए प्रस्ताव से ख़ुशी का माहौल है. उनका कहना है कि ऐसा प्रस्ताव महाराष्ट्र के हर गांव में होना चाहिए. महाराष्ट्र सरकार को भी ऐसा क़ानून बनाना चाहिए. उनका मानना है कि इससे महिलाओं पर होने वाले अत्याचार और घरेलू हिंसा पर रोक लगाने में मदद मिलेगी.
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