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'जाति पता न चले इसलिए वर्दी पर न लिखें सरनेम... ' क्या देखकर इस जिले के एसपी को देना पड़ा ये आदेश?

Maharashtra Police Surname: मराठा समुदाय ने पुलिस के इस निर्देश का स्वागत किया है. उन्होंने कहा है कि इसे पूरे महाराष्ट्र में लागू किया जाना चाहिए. वहीं OBC समुदाय ने कहा है कि इसके साथ-साथ पुलिस की मानसिकता में भी बदलाव आना चाहिए.

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बीड जिले के पुलिसकर्मी एक-दूसरे को सरनेम से नहीं बुलाएंगे. (सांकेतिक तस्वीर: PTI)

महाराष्ट्र के बीड जिले में पुलिसवालों को अपने सरनेम (Beed Police Surname) के इस्तेमाल से बचने का निर्देश दिया गया है. ताकि उनकी जाति का पता ना चले. ये पहली बार है जब राज्य में इस तरह का कोई फैसला लिया गया है. निर्देश है कि पुलिसवाले अपनी वर्दी पर पूरा नाम ना लिखें, और केवल पहला नाम लिखें. साथ ही पुलिस अधिकारियों की डेस्क पर बिना सरनेम वाली नेमप्लेट लगाई जाएगी. पुलिस का कहना है कि ये फैसला इसलिए लिया गया है, ताकि “जातिगत तनाव” (Caste Tension in Beed) से बचा जा सके.

बीड पुलिस अधीक्षक (SP) नवनीत कंवत ने ये आदेश जारी किया है. पिछले साल दिसंबर में मासाजोग के सरपंच संतोष देशमुख की हत्या हो गई थी. इसके कारण इलाके में भारी विरोध-प्रदर्शन हुए थे. इस घटना के बाद जनवरी महीने में कंवत ने कार्यभार संभाला था. 

Santosh Deshmukh मर्डर केस

संतोष देशमुख मराठा थे. उनकी हत्या के मामले में जिनको आरोपी बनाया गया, उनमें से अधिकतर OBC वंजारी समुदाय से हैं. इस घटना के बाद OBC और मराठा समुदाय के बीच कड़वाहट पैदा हो गई. दोनों समुदाय के बीच पहले से ही आरक्षण के मुद्दे लेकर तनाव की स्थिति बनी हुई थी. इस हत्या के बाद NCP (अजीत पवार) की पार्टी के नेता धनंजय मुंडे को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था.

बीड पुलिस के प्रवक्ता और सहायक पुलिस निरीक्षक सचिन इंगले ने इंडियन एक्सप्रेस से इस बारे में बातचीत की. उन्होंने बताया कि बीड के SP ने जिले के सभी पुलिसकर्मियों को निर्देश दिया है कि वो एक-दूसरे को उनके पहले नाम से बुलाएं. 

पुलिस को सरनेम से क्या दिक्कत?

इंगले पुलिस के सामने आने वाली दिक्कतों के बारे में कहते हैं,

अगर मराठा समुदाय का कोई व्यक्ति नियमों का उल्लंघन करता है और ट्रैफिक पुलिसकर्मी उन्हें पकड़ लेता है, तो सामने वाला पहले वर्दी पर पुलिसकर्मी का नाम देखता है. अगर पुलिसकर्मी OBC समुदाय से है, तो नियम तोड़ने वाला आरोप लगाता है कि मराठा होने के कारण उसे पकड़ा गया है. ऐसा ही तब भी होता है जब OBC समुदाय का कोई व्यक्त पकड़ा जाता है. सरनेम के कारण बेकार की बहस हो रही है. इसलिए ये निर्णय लिया गया है.

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लोगों का क्या कहना है?

मराठा समुदाय ने पुलिस के इस निर्देश का स्वागत किया है. उन्होंने कहा है कि इसे पूरे महाराष्ट्र में लागू किया जाना चाहिए. वहीं OBC समुदाय ने कहा है कि इसके साथ-साथ पुलिस की मानसिकता में भी बदलाव आना चाहिए.

विनोद पाटिल, ‘मराठा क्रांति मोर्चा’ के सदस्य हैं. वो अपने समुदाय के लिए आरक्षण की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में केस लड़ रहे हैं. उन्होंने कहा,

पुलिस विभाग एकमात्र ऐसा विभाग है जहां कोई संघ या गुटबाजी नहीं है. हम ये भी चाहते हैं कि पुलिस तटस्थ रहे और अपराधियों से अपराधियों की तरह ही निपटे, न कि किसी विशेष समुदाय से संबंधित हो. जब पुलिस बल स्वतंत्र हो जाएगा और उसकी पहचान उसकी जाति या धर्म से नहीं होगी, तो ये उचित निर्णय लेने और हमारे संविधान को बनाए रखने में मदद करेगा. हम बीड एसपी के फैसले का स्वागत करते हैं और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से (सभी) पुलिस अधिकारियों के नेमप्लेट और वर्दी से उनके उपनाम हटाने का आग्रह करते हैं.

OBC नेता हरिभाऊ राठौड़ ने भी इस मामले पर अपनी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा है,

बीड एसपी की मंशा अच्छी है, लेकिन ये आधे-अधूरे मन से उठाया गया कदम लगता है. पहले नाम का इस्तेमाल करना ठीक है, लेकिन पुलिस बल की मानसिकता बदलने के बारे में क्या ख्याल है. कुछ पुलिसकर्मी ऐसे हैं जो अपराधियों को जाति के चश्मे से देखते हैं. खाकी वर्दी पहनते समय पुलिस को अपनी जाति घर पर ही छोड़ देनी चाहिए. उन्हें थर्ड अंपायर की तरह व्यवहार करना चाहिए और पूरी तरह से स्वतंत्र निर्णय लेना चाहिए और किसी का पक्ष लेते हुए नहीं दिखना चाहिए.

राठौड़ ने सुझाव दिया कि इस मामले पर ट्रेनिंग सेशन के जरिए पुलिस को जागरूक करना चाहिए.

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