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'पूर्व विधानसभा स्पीकर की मौत, फोटोशॉप, नकली डिग्री, Tweet...' 7 लोगों की हत्या के आरोपी फर्जी डॉक्टर की पोल खुली

Madhya Pradesh के Damoh जिले के एक अस्पताल में मरीजों की संदिग्ध मौतों का मामला बढ़ने लगा. कुछ लोगों ने ये भी दावा किया कि उन्होंने सर्जरी करने वाले एक डॉक्टर को ऑपरेशन से पहले नर्वस होते देखा. इसके बाद की जांच में पता चला कि वो डॉक्टर, असली डॉक्टर था ही नहीं.

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डॉक्टर को गिरफ्तार कर लिया गया है. (फाइल फोटो: इंडिया टुडे)

मध्य प्रदेश के दमोह जिले में दिल की सर्जरी के दौरान सात मरीजों की मौत हो गई. ऑपरेशन करने वाले डॉक्टर पर सवाल उठे. क्योंकि जिस डॉक्टर ने इलाज किया, वो खुद को एक ‘मशहूर ब्रिटिश कार्डियोलॉजिस्ट’ बताता था. उसने सबको अपना नाम 'डॉक्टर एन जॉन केम’ बता रखा था. जांच हुई तो पता चला कि ये डॉक्टर साहेब, असली डॉक्टर हैं ही नहीं. आरोपी ने नकली नाम और पहचान (Damoh Fake Doctor) के जरिए अपना काम जमा लिया था. नौकरी भी पा ली थी. पता चला कि उसका असली नाम नरेंद्र विक्रमादित्य यादव है.

अब इस फर्जी डॉक्टर के बारे में और भी चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं. इंडियन एक्सप्रेस ने इस मामले को रिपोर्ट किया है. आरोप है कि नरेंद्र ने 1990 के दशक में अपना नाम बदलने की कोशिश की थी. यहां तक कि उसने कागजों पर एक नकली परिवार भी दिखाया. आरोपी को लेकर एक और दावा किया गया है कि उसने 2006 में छत्तीसगढ़ के एक पूर्व विधानसभा स्पीकर का इलाज किया था. सर्जरी के बाद उनकी मौत हो गई थी. जांच अधिकारी इस दावे की सच्चाई का पता लगा रहे हैं.

पुलिस का कहना है कि आरोपी ने पूछताछ में बताया है कि उसने पश्चिम बंगाल के एक विश्वविद्यालय से एमबीबीएस की डिग्री ली है. उसने ये भी स्वीकार किया है कि उसने पुडुचेरी की एक यूनिवर्सिटी के नाम पर एमडी की जाली डिग्री बनाई है. 

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आरोपी डॉक्टर. (फाइल फोटो: इंडिया टुडे)
नाम बदलने की कोशिश क्यों?

नरेंद्र पर ये आरोप भी है कि उसने दामोह के मिशनरी अस्पताल में जालसाजी के जरिए नौकरी प्राप्त की. आरोपी पर संदेह तब हुआ जब इस अस्पताल में संदिग्ध मौतों की संख्या बढ़ने लगी. कुछ अभिभावकों ने ये भी दावा किया कि उन्होंने ऑपरेशन के पहले इस डॉक्टर को नर्वस होते देखा था. दमोह जिले की जांच टीम ने अस्पताल से सभी दस्तावेज जब्त कर लिए. जांच हुई तो पता चला कि डॉक्टर का क्रिमिनल बैकग्राउंड है. हैदराबाद में उसके खिलाफ एक क्रिमिनल केस दर्ज है. 

स्थानीय पुलिस अधीक्षक श्रुत कीर्ति सोमवंशी ने बताया है- आरोपी ने दावा किया है कि वो 1999 में लंदन गया था. वहां से एक मेडिकल कोर्स किया. लेकिन उसके जरिए वो भारत में प्रैक्टिस नहीं कर सकता था. इसलिए उसने एमडी की जाली डिग्री बनाई. आजतक की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कोर्ट से मिली पांच दिनों की रिमांड पर पुलिस ने आरोपी के मोबाइल की जांच की. मोबाइल में कई फोटोशॉप और फर्जी दस्तावेज बनाने वाले ऐप्स मिले, इससे शक गहरा गया है. आशंका जताई जा रही है कि शायद इन ऐप्स के जरिए ही डॉक्टर ने फर्जी डिग्रियां तैयार की होंगी.

सोमवंशी ने बताया कि 1999 में ही उसने अपना नाम बदलकर ‘प्रोफेसर जॉन केम’ रखने की कोशिश की. इसके लिए उसने कुछ दस्तावेज भी सौंपे थे लेकिन किसी कारण से ऐसा नहीं हो सका. आरोपी भारतीय लोगों के बीच सम्मान और नौकरी के बेहतर मौके पाना चाहता था. इसीलिए उसने अपनी पहचान बदली और अंग्रेजी ईसाई नाम रखने की कोशिश की.

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असली डॉक्टर केम ने क्या बताया?

9 अप्रैल को असली 'डॉ केम' ने एक्सप्रेस को बताया कि करीब पांच साल पहले उन्हें अपनी पहचान चोरी होने का पता चला था. इससे वो बहुत परेशान हुए. 

पुलिस ने आरोपी के हवाले से बताया कि 2004 में लंदन से लौटने के बाद, उसने दिल्ली के कई अस्पतालों में काम किया. फिर एक कोर्स के लिए शिकागो गया. वापस आकर हैदराबाद में प्रैक्टिस करने लगा. 2010 के आसपास, एक और कोर्स के लिए वो जर्मनी के नूर्नबर्ग में गया. इसके बाद वो 2013 के आसपास भारत लौटा. 

बैन हुआ तो नाम बदला

पुलिस ने ये भी बताया कि इसी समय ‘भारतीय चिकित्सा संघ’ ने आरोपी पर प्रतिबंध लगा दिया था. नोएडा में उसके खिलाफ आईटी एक्ट के तहत एक मामला दर्ज हुआ था. बैन होने के बाद उसने खुद की एक कंपनी शुरू की लेकिन सफलता नहीं मिली. इसके बाद उसने अपना नाम बदलने का फैसला किया.

ट्विटर पर पोस्ट करने के लिए चर्चा में आया

लेकिन इसके बाद उसने ‘एन जॉन केम’ नाम से एक ट्विटर (एक्स) अकाउंट बना लिया. और पोस्ट करना शुरू किया. 2023 के एक पोस्ट में उसने लिखा कि फ्रांस में हो रहे दंगों को कंट्रोल करने के लिए यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को भेजा जाना चाहिए. इस पोस्ट के सीएम के अकाउंट से रीट्वीट कर दिया गया. फिर तो इसकी खूब चर्चा होने लगी.

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आरोपी डॉक्टर का पुराना पोस्ट.

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गिरफ्तारी भी हुई थी

पुलिस ने बताया कि आरोपी कुछ महीनों तक अस्पतालों में काम करता था और फिर नौकरी छोड़कर दूसरे शहर चला जाता था. 2019 में, यादव को चेन्नई के पास से गिरफ्तार किया गया था. एक निजी अस्पताल के 100 से ज्यादा कर्मचारियों ने आरोप लगाया था कि उसने उनका वेतन रोक रखा है. इस मामले में एक महिला को भी सह आरोपी बनाया गया था. आरोपी ने उस महिला को अपनी पत्नी बताया था. उस महिला की भी खोज की जा रही है. फिलहाल वो फरार है. 

एसपी सोमवंशी ने कहा कि उस महिला ने कभी नरेंद्र से शादी नहीं की. फिलहाल वो यूके में है. नरेंद्र की कोई पत्नी या बच्चा नहीं है. ये सभी दावे जाली दस्तावेजों पर आधारित हैं.

पूर्व स्पीकर की मौत का क्या मामला है?

आरोपी डॉक्टर ने छत्तीसगढ़ में भी प्रैक्टिस की थी. यहीं उसने राज्य के पहले विधानसभा अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद शुक्ला का भी इलाज किया था. उनके परिवार के अनुसार, छत्तीसगढ़ के कोटा विधानसभा से तत्कालीन विधायक शुक्ला का 2006 में बिलासपुर के अपोलो अस्पताल में इलाज हुआ था. उन्हें दिल का दौरा पड़ा था. डॉक्टर ने दो घंटों तक सर्जरी की. लेकिन वो बेहोश हो गए. इसके बाद उनको वेंटिलेटर पर रखा गया. 18 दिनों तक वेंटिलेटर पर रहने के बाद उनकी मौत हो गई. 

उनके परिवार ने दावा किया कि उन्हें उस वक्त ही पता चल गया था कि गलत सर्जरी की गई थी. लेकिन उन्हें अस्पताल पर पूरा भरोसा था. शुक्ला के सबसे छोटे बेटे प्रदीप (63) बताया कि उनके परिवार ने अब जिला प्रशासन को कार्रवाई के लिए पत्र लिखा है. बिलासपुर के मुख्य चिकित्सा स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO) डॉ प्रमोद तिवारी ने इसकी पुष्टि की है. उन्होंने कहा है कि अस्पताल को इस संबंध में नोटिस जारी किया गया है. जवाब देने के लिए उन्हें तीन दिनों का समय दिया गया है. अस्पताल ने भी कहा है कि उन्हें नोटिस मिला है और वो इस पर अपना जवाब देंगे. इस अस्पताल में आरोपी नरेंद्र ने कई और लोगों का भी इलाज किया था. 

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