कर्नाटक पुलिस के पूर्व पुलिस महानिदेशक (DGP) ओम प्रकाश की रविवार, 20 अप्रैल को मौत हो गई. मर्डर के एंगल पर पुलिस इस मामले की जांच कर रही है. हत्या का शक उनकी पत्नी पल्लवी पर है. बताया जा रहा है कि पल्लवी स्कित्जोफ्रेनिया (Schizophrenia) नाम की मानसिक बीमारी से जूझ रही हैं. आरोप है कि उन्होंने पूर्व DGP पर मिर्च पाउडर डाला और फिर चाकू से हमला कर मार दिया. इस केस के बाद ये सवाल उठ रहा है कि क्या स्कित्जोफ्रेनिया जैसी बीमारी इंसान को कातिल बना सकती है?
पूर्व DGP की हत्या की वजह Schizophrenia? आरोपी पत्नी को है ये बीमारी
Karnataka ex DGP Om Prakash: Schizophrenia एक मानसिक बीमारी है जिसमें वहम, शक और अजीब बर्ताव हो सकता है. इसके सभी मरीज खतरनाक नहीं होते, लेकिन बिना इलाज और ड्रग्स के असर से कुछ मामलों में हिंसा मुमकिन है. क्या ऐसा मरीज किसी की जान ले सकता है? यहां जानिए.

स्कित्जोफ्रेनिया एक दिमागी बीमारी है जिसमें इंसान को चीजें वैसी नजर नहीं आतीं जैसी वो असल में होती हैं. उसे शक होने लगता है कि लोग उसके खिलाफ हैं, उसे अजीब-अजीब आवाजें सुनाई देती हैं, और वो अकेले में अजीब तरह का बर्ताव करने लगता है. कई बार उसे लगता है कि उसके खाने या कपड़ों में स्मेल आ रही है या कोई उसे नुकसान पहुंचाना चाहता है.
ये बीमारी जेनेटिक (परिवार से), दिमाग के अलग-अलग हिस्से या दिमाग में एक जगह से दूसरी जगह सिग्नल पहुंचाने (न्यूरोट्रांसमीटर) में खराबी, बचपन की दिक्कतें और बहुत ज्यादा तनाव या ड्रग्स की वजह से हो सकती है.
सीधी बात ये है कि हर स्कित्जोफ्रेनिया का मरीज खतरनाक नहीं होता. ज्यादातर लोग इलाज करवाते हैं और शांत जीवन जीते हैं. लेकिन जब बीमारी बहुत बढ़ जाती है, मरीज दवाइयां लेना बंद कर देता है, या ड्रग्स लेने लगता है, तब कुछ मामलों में हिंसक व्यवहार हो सकता है. यह कंडीशन इतनी बुरी हो सकती है कि स्कित्जोफ्रेनिया से पीड़ित मरीज ना केवल अपनी जान ले सकता है, बल्कि वो दूसरों की जान भी ले सकता है.
कैंब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस में छपे जर्नल के मुताबिक, ज्यादातर स्टडी में सामने आया कि स्कित्जोफ्रेनिया और हिंसा के बीच थोड़ा बहुत रिश्ता जरूर है. लेकिन ये रिश्ता बहुत बड़ा नहीं है. समाज में जो भी हिंसक अपराध होते हैं, उनमें से स्कित्जोफ्रेनिया से जुड़े केस 10 फीसदी से भी कम होते हैं. लेकिन अगर स्कित्जोफ्रेनिया का मरीज शराब या ड्रग्स का इस्तेमाल भी कर रहा हो, तब हिंसा की संभावना बढ़ जाती है.
किसी शख्स को जिंदगी में कोई बात ट्रिगर कर जाए, तो भी स्कित्जोफ्रेनिया हो सकता है. स्कित्जोफ्रेनिया को एक बीमारी की तरह ही देखना चाहिए. फर्क बस इतना है कि ये बीमारी दिमाग से जुड़ी होती है. इलाज सही हो, परिवार का साथ मिले, और मरीज दवाएं लेता रहे, तो स्कित्जोफ्रेनिया से पीड़ित लोग आम जिंदगी जी सकते हैं.
दी लल्लनटॉप ने स्कित्जोफ्रेनिया के बारे में एक डिटेल्ड आर्टिकल लिखा है, जिसमें आप इसके लक्षण समेत और बेहतर जानकारी हासिल कर सकते हैं. इसके अलावा मराठी मूवी 'देवराई' के जरिए भी आप स्कित्जोफ्रेनिया को अच्छी तरह समझ सकते हैं.
एक जरूरी बात, स्कित्जोफ्रेनिया में दवाई लेना जरूरी है, साइकोथैरेपी यानी साइकोलॉजिस्ट की सलाह देने वाली थैरेपी से इस बीमारी का पूरा इलाज नहीं होता है.
वीडियो: पूर्व DGP की पत्नी ने पति की हत्या पर क्या बताया?