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कर्नाटक में जाति जनगणना सिद्दारमैया और डीके शिवकुमार को लड़वा देगी?

कर्नाटक में जातीय सर्वे को लेकर रार मची है. विपक्षी दल भाजपा और जेडीएस ने कांग्रेस सरकार पर समाज को बांटने का आरोप लगाया है. इस बीच कहा जा रहा है कि रिपोर्ट का संबंध कांग्रेस के अंदरूनी कलह से भी है.

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सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार की 'लड़ाई' नए मोड़ पर पहुंच गई है (Photo: India Today)

गुजरात के अहमदाबाद में 8 और 9 अप्रैल को कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ. राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने यहां भाषण देते हुए तेलंगाना के कांग्रेस सरकार की जमकर तारीफ की. उन्होंने खासतौर पर जाति जनगणना को लेकर मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी की खूब पीठ थपथपाई. राहुल ने ये भी कहा कि जो तेलंगाना में किया गया, वो हम पूरे देश में लागू करेंगे. इस अधिवेशन के कुछ ही दिन बाद 13 अप्रैल को तेलंगाना के पड़ोसी राज्य कर्नाटक में एक रिपोर्ट सामने आ गई. बताया गया कि यह प्रदेश की 2015 की जाति जनगणना की रिपोर्ट है, जो 'लीक' हो गई है.

इसके बाद तो प्रदेश की सियासत में तूफान आ गया. सर्वे की रिपोर्ट पर विपक्ष ने राज्य सरकार को जमकर घेरा. भाजपा ने मुस्लिमों को ओबीसी कैटिगरी में 8 फीसदी आरक्षण की अनुशंसा को लेकर सिद्दारमैया सरकार पर हमले किए. वहीं, जेडीएस ने कहा कि यह विभाजनकारी रिपोर्ट है. 

रिपोर्ट पर विपक्ष की ऐसी प्रतिक्रिया तो स्वाभाविक है, लेकिन कहा ये भी गया कि इस रिपोर्ट का संबंध कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति से भी है.

हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से बताया गया कि कर्नाटक में जातीय सर्वे की रिपोर्ट अचानक सामने आने का संबंध राहुल गांधी के भाषणों में लगातार तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए रेवंत रेड्डी की तारीफ से हो सकता है. इसी रिपोर्ट में बताया गया कि 8 अप्रैल की कांग्रेस कार्यसमिति की मीटिंग में राहुल गांधी ने साफतौर पर कहा कि सामाजिक न्याय ही रास्ता है और इसे हासिल करने के लिए किसी भी सरकार के एजेंडे में जाति जनगणना होनी चाहिए. कहते हैं कि सिद्दारमैया के इस मीटिंग से लौटने के बाद ही कर्नाटक में जातिगत सर्वे का भूत सामने आया. 

जो रिपोर्ट लीक के नाम पर बाहर आई, वह सिद्दारमैया के पहले कार्यकाल के समय (2015) की है. ऐसे में इसे यह जताने की कोशिश के तौर पर भी देखा जा रहा है कि रेवंत रेड्डी या फिर बिहार की जाति जनगणना से पहले ही कर्नाटक में ये कोशिश की जा चुकी है.

'लीक नहीं हुई रिपोर्ट'

हालांकि, पूर्व पत्रकार और फिलहाल कांग्रेस की प्रवक्ता स्वाति चंद्रशेखर इन अटकलों को खारिज करती हैं. उन्होंने साफ किया कि पहले तो ये रिपोर्ट ‘लीक’ नहीं हुई और दूसरी बात कि यह जाति जनगणना नहीं है. ये डेटा जरूर है, जिसे 2015 में राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने तैयार किया था. जिसका प्रयोग सरकार राज्य के लोगों के लिए योजनाएं बनाने में करती. 10 साल बाद रिपोर्ट के सार्वजनिक होने के सवाल पर उन्होंने कहा कि ये रिपोर्ट अचानक से सामने नहीं आई. यह 2015 में तैयार होना शुरू हुई थी, लेकिन समय-समय पर इसकी समीक्षा होती रही है और इसे अपडेट किया जाता रहा है. उन्होंने साफ किया कि राहुल गांधी के रेवंत रेड्डी की तारीफ करने से इस रिपोर्ट के सामने आने का कोई संबंध नहीं है.

कर्नाटक में मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए डीके शिवकुमार और सिद्दारमैया के बीच संघर्ष जगजाहिर है. कहा जा रहा है कि इस जातीय सर्वे की बदौलत सिद्दारमैया, शिवकुमार को असहज करना चाहते हैं, ताकि कुर्सी की लड़ाई में उनका दावा मजबूत रहे. हालांकि, कर्नाटक की राजनीति पर बारीक नजर रखने वाले एक स्थानीय पत्रकार (नाम न बताने की शर्त पर) इस थिअरी को साफ खारिज करते हैं. वह कहते हैं कि ये ठीक बात है कि राहुल गांधी ने जाति जनगणना को लेकर तेलंगाना के सीएम की तारीफ की और कांग्रेस के अधिवेशन के तुरंत बाद ये रिपोर्ट सामने आई. लेकिन इसका डीके शिवकुमार या सिद्दारमैया के बीच द्वंद्व से कोई संबंध नहीं है. यह पार्टी का फैसला है.

स्वाति चंद्रशेखर ने भी यही बात कही. उन्होंने कहा कि रिपोर्ट को लेकर वोक्कालिगा और लिंगायत समुदाय के लोगों में नाराजगी है. बिना इन दोनों समुदायों को साथ लिए कर्नाटक में सरकार बनाना मुश्किल है. ऐसे में सिद्दारमैया डीके शिवकुमार को सियासी नुकसान पहुंचाने के लिए सरकार को खतरे में क्यों डालेंगे? बेंगलुरु के रहने वाले पत्रकार माहेश्वर रेड्डी कहते हैं कि डीके शिवकुमार और सिद्दारमैया दोनों पर ईडी केस चल रहे हैं. उनके पास अपनी समस्याएं हैं और एक दूसरे को गिराने के लिए शायद ही उनके पास टाइम हो.

क्यों उठ रही ये बात?

दरअसल, जाति जनगणना को लेकर राहुल गांधी काफी समय से मुखर रहे हैं. बिहार से लेकर गुजरात तक वह जोर-शोर से इस मुद्दे को उठा रहे हैं. ऐसे में इस रिपोर्ट का सामने आना सिद्दारमैया को न सिर्फ राहुल गांधी की ‘गुडबुक’ में शामिल होने का मौका देता है, बल्कि इसके जरिए डीके शिवकुमार के लिए पार्टी में मुश्किलें पैदा कर सकता है. 

शिवकुमार जिस वोक्कालिगा समुदाय से आते हैं, उसके भीतर रिपोर्ट को लेकर काफी आशंकाएं पैदा हो सकती हैं. देखना होगा शिवकुमार पार्टी और अपने समुदाय के बीच कैसे सामंजस्य बनाए रखते हैं.

किसको नुकसान पहुंचाएगी रिपोर्ट?

एक सवाल ये भी है कि क्या ये रिपोर्ट कांग्रेस के लिए उल्टा असर करेगी, और भाजपा को फायदा पहुंचाएगी? क्योंकि राष्ट्रीय स्तर पर इसे लेकर हल्ला मचा है. मुस्लिमों के आरक्षण को लेकर भाजपा लगातार कर्नाटक सरकार को घेर रही है. इस पर स्वाति कहती हैं, “रिपोर्ट से किसे फायदा होगा और किसे नुकसान, ये इस पर निर्भर करता है कि कौन सी पार्टी इस पर क्या स्टैंड लेती है. बीजेपी के पास इसे लेकर फिलहाल कोई स्टैंड नहीं है. उसके नेता समझ ही नहीं पाए हैं कि इस मुद्दे पर क्या कहना है.” 

स्वाति ने कहा कि ये ऐसा मुद्दा है कि कोई भी पार्टी इसका न तो फायदा उठा सकती है और न ही नुकसान.

स्थानीय राजनीति पर नजर रखने वाले पत्रकार कहते हैं कि जातिगत सर्वे की रिपोर्ट से कांग्रेस को नुकसान होगा या फायदा ये कहना मुश्किल है. चुनाव दूर हैं. अगर नुकसान की आशंका भी है तो उसके पास डैमेज कंट्रोल के लिए पर्याप्त समय है. दूसरी बात, सिद्दारमैया सरकार की योजनाओं में जातीय भेदभाव न के बराबर है. ऐसे में उसे किसी नुकसान की आशंका कम ही है.

ये जानकार दावा करते हैं कि प्रदेश में भाजपा ‘संगठित नहीं’ है. उसमें कांग्रेस से ज्यादा विभाजन है. वो किसी भी मुद्दे को इतना बड़ा नहीं बना सकती, जिसका प्रदेश की राजनीति पर निर्णायक असर हो.

क्या है रिपोर्ट में?

राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की सामाजिक-आर्थिक-शैक्षणिक सर्वेक्षण (एसईएस) 2015 में प्रदेश में जातिवार जनसंख्या और उनके आरक्षण में बदलाव की सिफारिश का जिक्र किया गया है. इसके अनुसार,  राज्य में अनुसूचित जाति (एससी) की संख्या 1.09 करोड़ है, जो राज्य की आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा है. इसके बाद ओबीसी की श्रेणी 2बी के तहत आने वाले मुस्लिम हैं, जिनकी संख्या 75.25 लाख है. रिपोर्ट में ओबीसी में सबसे पिछड़े वर्गों (most backward classes) की संख्या 1.08 करोड़ बताई गई है. इनमें से 34.96 लाख ओबीसी की 1ए श्रेणी के अंतर्गत आते हैं, जबकि 73.92 लाख 2बी श्रेणी में आते हैं. बिलावा, एडिगा और अन्य जातियां, जो 2ए कैटिगरी में आती हैं उनकी संख्या 77.78 लाख है. 3ए और 3बी श्रेणियों की संख्या क्रमशः 72.99 लाख और 81.37 लाख है. इनमें वोक्कालिगा और लिंगायत जैसे प्रमुख समुदाय शामिल हैं.

प्रदेश में लिंगायतों की संख्या 76 लाख बताई गई है. ये भाजपा के कोर वोटर माने जाते हैं. वोक्कालिंगा समुदाय के लोगों की संख्या 76 लाख बताई गई है. ये पहले जेडीएस के वोटर होते थे लेकिन अभी इनमें से कुछ का झुकाव कांग्रेस के नेता डीके शिवकुमार की ओर बताया जा रहा है. सिद्दारमैया जिस समुदाय से आते हैं, ऐसे कुरुबा लोगों की संख्या राज्य में 42.71 लाख बताई गई है.

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