जस्टिस संजीव खन्ना (Justice Sanjiv Khanna) ने भारत के 51वें चीफ़ जस्टिस के रूप में शपथ ले ली है. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में आयोजित कार्यक्रम में उन्हें CJI पद की शपथ दिलाई. इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह समेत कई केंद्रीय मंत्री मौजूद रहे. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के बाद वो अब इस पद को संभालेंगे. वो इस पर लगभग 7 महीने यानी 13 मई, 2025 तक होंगे. पूर्व CJI डीवाई चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) 10 नवंबर को रिटायर हो गए.
जस्टिस संजीव खन्ना बने भारत के 51वें चीफ़ जस्टिस, अगले 6 महीनों में लेने होंगे ये बड़े फैसले
CJI DY Chandrachud के बाद अब Justice Sanjiv Khanna देश के नए चीफ जस्टिस बन गए हैं. उनके शपथ ग्रहण समारोह में PM Narendra Modi भी मौजूद रहे.
CJI संजीव खन्ना के कार्यकाल में उनके सामने कुछ बड़े मामले लंबित हैं. ऐसे में उनके कार्यकाल पर सबकी नज़रें टिकी होंगी. इन मामलों में, LGBTQ समुदाय के लोगों की शादी के अधिकार को ख़ारिज करने वाले आदेश की समीक्षा, मैरिटल रेप मामला, दांपत्य अधिकारों की बहाली की वैधता, नागरिकता (संशोधन) अधिनियम आदि शामिल हैं. 'सालों तक जेल में बंद राजनीतिक कैदियों' को उनके कार्यकाल के दौरान समय से राहत मिलती है या नहीं, ये भी CJI के तौर पर उनके सामने होगा.
Justice Sanjiv Khanna कौन हैं?VVPAT का सत्यापन, इलेक्टोरल बॉन्ड, आर्टिकल 370, आर्टिकल 142 के तहत तलाक और RTI के मामले में दिए उनके कॉमेंट्स महत्वपूर्ण माने जाते हैं. 14 मई, 1960 को पैदा हुए खन्ना ने 1983 में बार काउंसिल ऑफ दिल्ली को एक एडवोकेट के तौर पर जॉइन किया. शुरुआत में उन्होंने तीस हजारी कोर्ट में प्रैक्टिस की. इसके बाद उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट में प्रैक्टिस की.
2004 में उनको राजधानी दिल्ली का स्टैंडिंग काउंसिल (सिविल) बनाया गया. एक साल बीता, तो उन्हें दिल्ली हाई कोर्ट में एडिशनल जज बनाया गया. 2006 में उन्हें यहां परमानेंट जज बना दिया गया. दिल्ली हाई कोर्ट में काम करते हुए जस्टिस खन्ना, दिल्ली ज्यूडिशियल एकेडमी के चेयरमैन या जज-इन-चार्ज के पद पर भी रहे. उन्होंने दिल्ली इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन सेंटर और डिस्ट्रिक्ट मेडिएशन सेंटर्स की जिम्मेदारी भी संभाली.
Supreme Court को 2019 में जॉइन कियाइसके बाद 18 जनवरी, 2019 को उन्हें सुप्रीम कोर्ट में जज बनाया गया. यहां काम करते हुए 17 जून, 2023 से 25 दिसंबर 2023 तक वो सुप्रीम कोर्ट लीगल सर्विस कमेटी के अध्यक्ष भी रहे. वर्तमान में वो राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष और राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी, भोपाल के गवर्निंग काउंसिल के सदस्य हैं. न्यायमूर्ति खन्ना मई 2025 में रिटायर होने वाले हैं.
CJI Sanjiv Khanna के ज़रूरी फ़ैसले-
इसी साल एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने वोटों को पूरी तरह से VVPAT के जरिए सत्यापित कराने की मांग की थी. ADR बनाम भारतीय चुनाव आयोग (ECI) के इस मामले में जस्टिस संजीव खन्ना की अगुआई वाली खंडपीठ ने फैसला दिया था. खंडपीठ ने सर्वसम्मति से ADR की याचिका को खारिज कर दिया था. जस्टिस खन्ना के कॉमेंट की चर्चा हुई. उन्होने कहा था,
स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए ECI द्वारा अपनाए गए सभी सुरक्षा उपायों को रिकॉर्ड में रखना चाहते हैं. मौजूदा प्रणाली त्वरित (तुरंत), बिना किसी गलती और बिना किसी गड़बड़ी के वोटों की गिनती सुनिश्चित करती है.
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Electoral Bond का मामलाराजनीतिक दलों के चंदे के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम लाई गई थी. इसी साल इस व्यवस्था को अंसवैधानिक घोषित कर दिया गया. जस्टिस खन्ना ने सहमति जताते हुए कहा था कि अगर बैंकिंग चैनल के जरिए दान दिया जाता है, तो दानकर्ताओं की निजता का अधिकार नहीं बनता. उनकी पहचान उस व्यक्ति और बैंक के अधिकारियों को पता होती है, जहां से बॉन्ड खरीदा जाता है. उन्होंने ये भी माना कि दानकर्ताओं के खिलाफ उत्पीड़न और प्रतिशोध गलत है, लेकिन वो इस योजना का औचित्य नहीं हो सकते हैं. जो मतदाताओं के सामूहिक सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है.
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Article 370 को रद्द करने पर सहमति5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 को रद्द कर दिया गया. बाद में ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. साल 2023 में, न्यायमूर्ति खन्ना ने पांच न्यायाधीशों की पीठ के फैसले में सहमति व्यक्त की. इस पीठ ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की वैधता को बरकरार रखा. उन्होंने पाया कि भारत के संविधान का अनुच्छेद 370 संप्रभुता का संकेत नहीं था.
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पिछले ही साल जस्टिस खन्ना ने तलाक के एक मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया था. उन्होंने कहा था कि आर्टिकल 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट को सीधे तलाक देने का अधिकार है. उन्होंने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट ‘पूर्ण न्याय’ देने के लिए 'विवाह के अपूरणीय विघटन’ के आधार पर तलाक दे सकता है. कानूनी भाषा में 'विवाह का अपूरणीय विघटन’ उस स्थिति को कहा जाता है जब विवाह इतना टूट गया होता है कि उसे ठीक करना मुश्किल होता है.
OCJ और RTI का मामलासाल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने RTI मामलों को लेकर एक जरूरी फैसला सुनाया था. 5 जजों की बेंच को ये तय करना था कि क्या मुख्य न्यायाधीश के कार्यालय (OCJ) को RTI अनुरोधों के अधीन करना न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कम करता है? सुप्रीम कोर्ट ऑब्जर्वर की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस खन्ना ने कहा कि न्यायिक स्वतंत्रता ‘सूचना के अधिकार’ का विरोध नहीं करती है. OCJ को RTI अनुरोधों को पूरा करना चाहिए या नहीं, इसका फैसला केस-दर-केस, उसके आधार पर किया जाना चाहिए. फैसले में ये भी निष्कर्ष निकाला गया कि न्यायालय के मुख्य लोक सूचना अधिकारी को ये तय करना चाहिए कि कोई खुलासा न्यायाधीशों के निजता के अधिकार के कितना खिलाफ है या कितना जनहित में है?
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