The Lallantop

CJI चंद्रचूड़ की वो टिप्पणी जिस पर जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सुधांशु धूलिया ने आपत्ति जताई

Justice V R Krishna Iyer पर CJI DY Chandrachud ने टिप्पणी की थी. जिस पर जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सुधांशु धूलिया ने कड़ी आपत्ति जताई है. दोनों जजों ने कहा कि सीजेआई की टिप्पणी अनुचित थी. जिसे टाला जा सकता था.

post-main-image
सुप्रीम कोर्ट के दो जस्टिस ने सीजेआई से असहमति जताई है. (इंडिया टुडे)

संविधान के अनुच्छेद 39 (B) से संबंधित मामले में जस्टिस बीवी नागरत्ना (Justice B V Nagarathna) और जस्टिस सुधांशु धूलिया (Justice Sudhanshu Dhulia) ने CJI डीवाई चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) की एक टिप्पणी पर कड़ी आपत्ति जताई. जिसमें CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने जस्टिस कृष्ण अय्यर के 1977 के जजमेंट की आलोचना की थी. CJI ने कहा कि जस्टिस अय्यर के सिद्धांत ने संविधान की व्यापक और लचीली भावना के साथ अन्याय किया. जस्टिस अय्यर के जजमेंट को बाद में संजीव कोक मैन्युफैक्चरिंग कंपनी बनाम भारत कोकिंग कोल लिमिटेड मामले में जस्टिस ओ चिन्नाप्पा रेड्डी ने भी  1982 में अपना समर्थन दिया था. 

संविधान के अनुच्छेद 39 B से जुड़े मामले में चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) की अध्यक्षता वाली 9 जजों की बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा कि प्रत्येक निजी संपत्ति को समुदाय की भौतिक संपत्ति नहीं बताया जा सकता. जस्टिस बीवी नागरत्ना इस मामले में बहुमत के फैसले के साथ थीं. लेकिन उन्होंने कर्नाटक राज्य बनाम श्री रंगनाथ रेड्डी के मामले में 1977 के फैसले में न्यायमूर्ति वीआर कृष्ण अय्यर द्वारा कानून की व्याख्या की आलोचना पर आपत्ति जताई. उन्होंने कहा कि जस्टिस कृष्ण अय्यर पर CJI की टिप्पणी अनुचित थी. जिसे टाला जा सकता था.

जस्टिस बीवी नागरत्ना ने CJI की टिप्पणी पर असहमति जताते हुए आगे कहा, 

यह चिंता का विषय है कि भावी पीढ़ी के न्यायिक साथी अतीत के अपने साथी के निर्णय को किस तरह से देखते हैं. संभवत: उस समय को भूलकर जब बाद वाले ने अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया. केवल राज्य की आर्थिक नीतियों में वैश्वीकरण, उदारीकरण और निजीकरण के प्रति नीतिगत बदलाव के कारण, जिसे संक्षेप में ‘1991 के सुधार’ कहा जाता है. जो आज भी जारी है. इस कोर्ट के जजों को संविधान के प्रति अहित करने वाला नहीं कहा जा सकता. 

यह चिंता का विषय है कि भावी पीढ़ी के न्यायिक बंधु अतीत के बंधु के निर्णयों को किस प्रकार देखते हैं, संभवतः उस समय को भूलकर जब बाद वाले ने अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया और राज्य द्वारा अपनाई गई सामाजिक-आर्थिक नीतियां जो उस समय संवैधानिक संस्कृति का हिस्सा थीं. केवल राज्य की आर्थिक नीतियों में वैश्वीकरण और उदारीकरण तथा निजीकरण के प्रति नीतिगत परिवर्तन के कारण, जिसे संक्षेप में "1991 के सुधार" कहा जाता है, जो आज भी जारी है, इस न्यायालय के जजों को "संविधान के प्रति अहित करने वाला" नहीं कहा जा सकता.

जस्टिस बीबी नागरत्ना ने इस बात को रेखांकित करने का प्रयास किया कि जस्टिस अय्यर और जस्टिस रेड्डी के विचारों को आजादी के समय प्रचलित सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों और उसके बाद के विकास के आलोक में देखा जाना चाहिए.

जस्टिस सुधांशु धूलिया ने 39 (B) से संबंधित फैसले में बहुमत के निर्णय से असहमत थे. उन्होंने CJI द्वारा जस्टिस कृष्ण अय्यर के फैसले के आलोचना पर असहमति जताते हुए कहा कि यह आलोचना कठोर है. और इससे बचा जा सकता था.

जस्टिस अय्यर और जस्टिस चिनप्पा रेड्डी द्वारा व्यक्त किए गए विचारों का समर्थन करते हुए जस्टिस धूलिया ने कहा, 

कृष्ण अय्यर सिद्धांत या उस मामले में ओ. चिन्नाप्पा रेड्डी सिद्धांत उन सभी के लिए परिचित है जिनका कानून या जीवन से कोई लेना-देना है. यह निष्पक्षता और समानता के मजबूत मानवतावादी सिद्धांतों पर आधारित है. यह ऐसा सिद्धांत है.

ये भी पढ़ें - 'सरकारें हर प्राइवेट प्रॉपर्टी पर कब्जा नहीं कर सकतीं', सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

जस्टिस धूलिया ने आगे कहा कि यह ऐसा सिद्धांत है, जिसने अंधेरे समय में हमारा मार्ग रोशन किया. उनके फैसले का बड़ा हिस्सा न केवल उनकी दूरदर्शी बुद्धि का प्रतिबिंब है. बल्कि इससे भी महत्वपूर्ण बात है लोगों के प्रति उनकी सहानुभूति. क्योंकि मनुष्य उनके न्यायिक दर्शन के केंद्र में था.

वीडियो: सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के प्रदूषण पर तगड़ा सुना दिया