प्रकाश को अपारदर्शी ऑब्जेक्ट, सघन वस्तुओं या विशेष वैज्ञानिक प्रक्रिया के जरिये रोका तो जा सकता है, लेकिन इसे फ्रीज नहीं किया जा सकता… ऐसा अब तक माना जाता था. लेकिन वैज्ञानिकों ने ये कारनामा भी करके दिखा दिया है. इतिहास में पहली बार रौशनी को फ्रीज कर उससे सुपरसॉलिड बनाया गया है.
इतिहास में पहली बार प्रकाश को 'पकड़' कर वैज्ञानिकों ने बना डाला सुपरसॉलिड!
ठोस, तरल, गैस और प्लाजमा के अलावा भी पदार्थ की अन्य अवस्थाएं पाई जाती हैं. इन्हीं में से एक अवस्था है सुपरसॉलिड. इस अवस्था में ठोस और तरल दोनों के गुण होते हैं. इटली के वैज्ञानिकों ने पदार्थ की इसी अवस्था को अचीव किया है, वो भी प्रकाश की मदद से. जबकि प्रकाश, पदार्थ की किसी भी अवस्था में नहीं पाया जाता है.

ठोस, तरल, गैस और प्लाजमा के अलावा भी पदार्थ की अन्य अवस्थाएं पाई जाती हैं. इन्हीं में से एक अवस्था है सुपरसॉलिड. इस अवस्था में ठोस और तरल दोनों के गुण होते हैं. इटली के वैज्ञानिकों ने पदार्थ की इसी अवस्था को अचीव किया है, वो भी प्रकाश की मदद से. जबकि प्रकाश, पदार्थ की किसी भी अवस्था में नहीं पाया जाता है.
विज्ञान जगत से जुड़ी वेबसाइट साइंस अलर्ट ने नेचर जर्नल में छपे एक लेख के हवाले से बताया कि अब तक सुपरसॉलिड स्टेट को केवल परमाणुओं से बनाया गया था, लेकिन इटली के नेशनल रिसर्च काउंसिल (CNR) के वैज्ञानिकों की एक टीम ने इसे फोटॉन्स, माने प्रकाश से बनाने में सफलता प्राप्त की है.
सुपरसॉलिड में एक क्रिस्टल संरचना होती है, जैसे एक ठोस पदार्थ में पाई जाती है. वहीं ये पानी की तरह भी बह सकता है. इटली की यूनिवर्सिटी ऑफ ट्रेंटो के न्यूक्लियर और ऑप्टिकल फिजिसिस्ट इआकोपो करुसोटो ने सुपरसॉलिड को समझाते हुए बताया कि ये पानी की छोटी-छोटी बूंदों की तरह बना होता है जो एक तय पैटर्न में सेट होती है. ये बूंदें बिना किसी रुकावट के बह सकती हैं और अपना आकार और दूरी बनाए रखती हैं, जैसा कि आमतौर पर ठोस में देखा जाता है.
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कैसे किया गया यह प्रयोग?प्रकाश खुद एक पदार्थ नहीं है, बल्कि ऊर्जा है. इसलिए, इसे सुपरसॉलिड में बदलने के लिए वैज्ञानिकों को एक विशेष तरीका अपनाना पड़ा. उन्होंने फोटॉन को लेजर के जरिए प्राप्त किया. इसके बाद इन्हें गैलियम आर्सेनाइड नाम के सेमीकंडक्टर पर डाला गया. इस रिएक्शन में पोलरिटॉन नामक क्वासिपार्टिकल्स बना. क्वासिपार्टिकल्स मूल रूप से पार्टिकल नहीं होते, बल्कि ये कई तरह के पार्टिकल्स के आपस में इंटरैक्ट करने से पैदा होते हैं.
यहां गैलियम आर्सेनाइड की एक विशेष संरचना प्रयोग में लाई गई थी जिसे फोटॉन्स को तीन अलग-अलग क्वांटम अवस्थाओं में बदलने के लिए डिज़ाइन किया गया था. सेमीकंडक्टर के भीतर पोलरिटॉन्स को सीमित करना इन्हें ठोस संरचना देता है. वहीं बिना किसी घर्षण के प्रवाहित होने के नेचर ने इसे सुपरफ्लूड बनाया. दोनों के गुण मिलकर इस पूरे सिस्टम को सुपरसॉलिड बनाते हैं.
इस प्रयोग से क्या फायदा होगा?
नेशनल रिसर्च काउंसिल के वैज्ञानिकों ने बताया कि इस खोज से नए क्वांटम और लाइट पर आधारित तकनीकों को विकसित करने में मदद मिलेगी. उदाहरण के लिए नए प्रकार के LEDs बनाए जा सकेंगे. इसके अलावा इससे नैनो टेक्नोलॉजी और पदार्थ विज्ञान के क्षेत्र में नई दिशा मिल सकती है.
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