'काश पुरुषों को भी पीरियड्स होते...' ये टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के एक फैसले की आलोचना करते हुए की है. मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने राज्य में महिला सिविल जजों की सेवाएं समाप्त कर दी थीं. जब सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया तो उनमें से कुछ को बहाल किया गया, जबकि कुछ की बर्खास्तगी बरकरार रखी गई. बताया जाता है कि इनमें से एक महिला जज गर्भपात के कारण काफी समय तक परेशान रहीं. आरोप है कि उनकी इस स्थिति पर विचार नहीं किया गया और खराब परफॉर्मेंस का हवाला देते हुए उन्हें बर्खास्त कर दिया गया. इसी मामले पर सुप्रीम में जस्टिस बीवी नागरत्ना और एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने सुनवाई की और सिविल जजों की बर्खास्तगी को लेकर हाई कोर्ट से जवाब मांगा है.
'काश पुरुषों को भी पीरियड्स होते... ' सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट को ऐसा क्यों सुनाया?
सुप्रीम में जस्टिस बीवी नागरत्ना और एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने मध्य प्रदेश में महिला जजों की बर्खास्तगी को लेकर सुनवाई की. इस दौरान उन्होंने हाई कोर्ट के फैसले पर बड़ी टिप्पणी की. आखिर ये मामला है क्या? और सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी टिप्पणी क्यों की?
पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस नागरत्ना ने कहा, ‘यह कहना बहुत आसान है कि बर्खास्त-बर्खास्त और घर चले जाओ… अगर महिला शारीरिक और मानसिक रूप से पीड़ित है, तो यह मत कहिए कि वो काम धीमे कर रही है और इसलिए घर भेज दीजिए… मैं उम्मीद करती हूं कि पुरुष जजों पर भी ऐसे मानदंड लागू किए जाएंगे और मुझे ऐसा कहने में कोई हिचकिचाहट नहीं है… वो महिला गर्भवती हो गई और उसका गर्भपात हो गया. गर्भपात से गुजरने वाली वो महिला, मानसिक और शारीरिक रूप से कितना परेशान हुई? पता है? काश पुरुषों को भी मासिक धर्म हो. तब उन्हें पता चलेगा कि यह क्या है.’
क्या मामला है?मध्य प्रदेश सरकार ने जून 2023 में असंतोषजनक प्रदर्शन का हवाला देते हुए छह महिला जजों को बर्खास्त कर दिया था. तब ये फैसला राज्य कानून विभाग, एक प्रशासनिक समिति और हाई कोर्ट के जजों की एक बैठक के बाद लिया गया था. इस बैठक में प्रोबेशन अवधि के दौरान इन महिला जजों के प्रदर्शन को असंतोषजनक पाया गया था.
नवंबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में स्वत: संज्ञान लिया था. जुलाई 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने फिर से मध्य प्रदेश हाई कोर्ट से एक महीने के भीतर इस मामले पर नए सिरे से विचार करने को कहा.
इसके बाद मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने अगस्त 2024 को अपने पहले के प्रस्तावों पर पुनर्विचार किया और चार अधिकारियों - ज्योति वरकड़े, सोनाक्षी जोशी, प्रिया शर्मा और रचना अतुलकर जोशी - को कुछ शर्तों के साथ बहाल करने का फैसला किया, जबकि अन्य दो महिलाओं - अदिति कुमार शर्मा और सरिता चौधरी - की बर्खास्तगी जारी रही.
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इन महिला जजों के केसेज पर विचार किया. हाई कोर्ट द्वारा सुप्रीम कोर्ट में पेश की गई एक रिपोर्ट में बताया गया है कि अदिति शर्मा का प्रदर्शन 2019-20 के दौरान वेरी गुड और गुड रेटिंग से गिरकर बाद के सालों में औसत और खराब की स्थिति पर आ गया. बताया गया है कि 2022 में उनके पास लगभग 1,500 लंबित मामले थे, जिन्हें निपटाने की दर 200 से कम थी. यहां पर ये भी बता दें कि जज अदिति शर्मा ने हाई कोर्ट को 2021 में गर्भपात होने और फिर अपने भाई के कैंसर के बारे में जानकारी दी थी.
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने हाई कोर्ट की रजिस्ट्री और न्यायिक अधिकारियों को इस मामले में नोटिस जारी किए. आरोप है कि इन्होंने महिला जजों की बर्खास्तगी के खिलाफ इस तथ्य को हाई कोर्ट के सामने नहीं उठाया. कोर्ट ने कहा कि ये बात भी बड़ी अजीब है कि जजों को इस तथ्य के बावजूद बर्खास्त कर दिया गया कि कोविड के दौरान उनके काम का मूल्यांकन सही तरह से नहीं किया जा सका था.
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पीटीआई के मुताबिक एक अन्य बर्खास्त जज की वकील चारू माथुर ने तर्क दिया कि चार साल के बेदाग सेवा रिकॉर्ड के बावजूद, उनके क्लाइंट को कानून की किसी भी उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना बर्खास्त कर दिया गया.
उन्होंने आरोप लगाया कि सेवा से उनकी बर्खास्तगी संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता का अधिकार) और 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के तहत उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है. उन्होंने आगे कहा कि अगर यदि उनके काम के मूल्यांकन में मैटरनिटी लीव और बच्चे की देखभाल के लिए ली गई लीव, के समय को भी ध्यान में रखा जाएगा, तो यह उनके क्लाइंट के साथ घोर अन्याय होगा.
अब इस मामले की अगली सुनवाई 12 दिसंबर को होगी.
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