पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट (Punjab and Haryana High Court) ने तलाक के बाद बच्चों की देखरेख और उनके मेंटेनेंस से जुड़ा एक अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा है कि यदि किसी व्यक्ति की पत्नी के पास पर्याप्त कमाई का साधन है तब भी वो अपने बच्चों के भरण-पोषण की जिम्मेदारी से मुक्त नहीं होता. बेंच ने आदेश दिया कि मेंटेनेंस की राशि माता-पिता दोनों के बीच समान रूप से साझा की जानी चाहिए.
मां कमाती है तो भी तलाक के बाद पिता को देना होगा बच्चों का खर्च, हाई कोर्ट का अहम फैसला
बेंच के सामने याचिकाकर्ता ने ये तर्क दिया गया कि उसकी आमदनी केवल ₹22,000 है और परिवार के छह सदस्य उस पर निर्भर हैं.
कोर्ट एक शख्स द्वारा दायर की गई रिवीजन पिटीशन पर सुनवाई कर रही थी. शख्स ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश के खिलाफ याचिका दायर की थी जिसमें उसे अपनी नाबालिग बेटी को 7,000 रुपये का मेंटेनेंस देने का निर्देश दिया गया था. जज सुमीत गोयल इस मामले की सुनवाई की.
बार एंड बेंच में छपी रिपोर्ट के मुताबिक शख्स ने अपनी दलील में कहा कि वो अपनी बेटी के भरण-पोषण के लिए उत्तरदायी नहीं है, क्योंकि बेटी अपनी मां की कस्टडी में है. याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट राहुल गर्ग ने दलील दी कि उनके मुवक्किल की पत्नी के पास बेटी का भरण-पोषण करने और उसकी देखभाल करने के लिए पर्याप्त साधन हैं.
जज सुमीत गोयल की सिंगल जज बेंच ने शख्स की दलीलों को खारिज करते हुआ कहा कि अगर मां कामकाजी है, तो इसका मतलब ये नहीं है कि पिता बच्चे की जिम्मेदारी लेने से मुक्त हो जाएगा. जज ने कहा,
छह सदस्य निर्भर"सीआरपीसी की धारा 125 सामाजिक न्याय के लिए एक साधन है, जो ये सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया है कि महिलाओं और बच्चों को अभाव के जीवन से बचाया जाए. यदि पति या पिता के पास पर्याप्त साधन हैं, तो वो अपनी पत्नी और बच्चों का भरण-पोषण करने के लिए बाध्य हैं और नैतिक और पारिवारिक जिम्मेदारियों से पीछे नहीं हट सकते."
बेंच के सामने याचिकाकर्ता ने ये तर्क दिया गया कि उसकी इनकम केवल ₹22,000 है और परिवार के छह सदस्य उस पर निर्भर हैं. शख्स ने कोर्ट को ये भी बताया कि बच्चे की मां के पास उसे पालने के लिए पर्याप्त साधन हैं.
हालांकि, कोर्ट ने कहा कि भरण-पोषण देने का आदेश आखिरी निर्णय के अधीन है और ये कार्यवाही के खत्म होने से पहले उठाया गया एक प्रोविजनल कदम है. कोर्ट ने बताया,
"पारिवारिक अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता की नाबालिग बेटी है और उसके पास खुद का भरण-पोषण करने के लिए आय का साधन है, इसलिए याचिकाकर्ता का नैतिक और कानूनी कर्तव्य है कि वो बेटी का भरण-पोषण करे. पिता होने के नाते याचिकाकर्ता का दायित्व है कि वो उसका एक सामान्य जीवन स्तर सुनिश्चित करने के लिए भरण-पोषण करें."
कोर्ट ने आगे ये भी कहा कि फैमिली कोर्ट ने न केवल व्यक्ति की फाइनेंशियल क्षमता पर विचार किया, बल्कि बच्चे के पालन-पोषण के लिए व्यापक प्रयासों पर भी विचार किया. बेंच ने आदेश दिया कि मेंटेनेंस की राशि माता-पिता दोनों के बीच समान रूप से साझा की जानी चाहिए.
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