केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA), विधेयकों पर राष्ट्रपति के फैसले से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट में 'रिव्यू पिटीशन' दायर कर सकता है. उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने 8 अप्रैल को ये फैसला सुनाया था. कोर्ट ने कहा कि अगर राज्यपाल लंबे समय तक विधेयकों को पेंडिंग रखते हैं, तो इसमें न्यायिक हस्तक्षेप किया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपालों की ओर से भेजे गए विधेयकों पर, राष्ट्रपति द्वारा निर्णय लेने के लिए तीन महीने की समयसीमा भी निर्धारित की.
राष्ट्रपति के पास पेंडिंग बिलों की समय-सीमा पर गृह मंत्रालय SC में दायर कर सकता है रिव्यू पिटीशन
Supreme Court ने कहा है कि अगर राज्यपाल लंबे समय तक किसी बिल को पेंडिंग रखते हैं, तो इसमें न्यायिक हस्तक्षेप किया जा सकता है. अदालत ने लंबित विधेयकों पर फैसला लेने के लिए, राष्ट्रपति के लिए भी समय-सीमा तय की है.
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MHA इसी फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर करने की तैयारी में है. द हिंदू से जुड़ीं विजिता सिंह ने सरकार एक वरिष्ठ अधिकारी के हवाले से इस जानकारी को रिपोर्ट किया है. एक दूसरे सरकारी अधिकारी ने कहा है कि इस फैसले की समीक्षा करना जरूरी है. क्योंकि कोर्ट में बहस के दौरान केंद्र सरकार के तर्क मजबूती से पेश नहीं किए गए थे. उन्होंने आगे कहा,
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से एक ऐसे बिल को फिर से जिंदा करने का रास्ता खुल गया है जिसे पहले खत्म मान लिया गया था. संविधान के मुताबिक, अगर राष्ट्रपति किसी बिल को वापस भेज देते हैं या उस पर अपनी मंजूरी नहीं देते, तो वह बिल ‘लैप्स’ यानी खत्म हो जाता है. ऐसे में उस बिल को फिर से विधानसभा में पेश करना पड़ता है. राष्ट्रपति द्वारा सुझाए गए बदलावों के साथ या बिना बदलावों के. लेकिन 8 अप्रैल के फैसले में इस जरूरी नियम का जिक्र नहीं किया गया है.
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कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा था?तमिलनाडु सरकार ने नवंबर 2023 में एक याचिका दायर की थी. इसमें आरोप लगाया गया था कि राज्यपाल आर एन रवि ने विधानसभा से पारित दस विधेयकों को रोक रखा है. इनमें से कुछ विधेयक 2020 की शुरुआत में ही पारित हो गए थे. न्यायालय का ये फैसला इसी याचिका के जवाब में था. जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा,
तीन महीने से ज्यादा की देरी होने पर, संबंधित राज्य को इसकी जानकारी देनी होगी. और देरी का कारण भी बताना होगा.
पीठ ने कहा कि अगर राज्यपाल, राष्ट्रपति के विचार के लिए विधेयक भेजते हैं और राष्ट्रपति द्वारा उस पर कार्रवाई नहीं की जाती, तो राज्य सरकार के लिए कोर्ट के समक्ष जाकर विरोध करने का रास्ता खुला होगा.
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