गोवा, नाम सुनते ही जेहन में सबसे पहले क्या आता है? समंदर, बीच पर मस्ती करते लोग, रात को मांडोवी नदी में चलती क्रूज़ शिप्स, वॉटर स्पोर्ट्स जैसे वॉटर बाइक, नाव से रस्सी के सहारे बंधा पैराशूट और उस पर टंगे हुए लोग. सुनकर ही लगता है कि एक बार गोवा जरूर जाना चाहिए. भारत ही नहीं बल्कि विदेशी सैलानियों के लिए भी गोवा हमेशा से एक फेवरेट डेस्टिनेशन रहा है. सोशल मीडिया पर कितने ही मीम बने जिसमें पहले गोवा का प्लान बना कर फिर उसे कैंसिल कर, लोग गुरुग्राम से ही संतुष्ट हो जा रहे हैं. गोवा के बारे में जितना लिखें उतनी ही ज्यादा बातें लिखी जा सकती हैं.
न्यू ईयर पर गोवा घूमने का प्लान बना रहे हैं? सोचो, अगर वो भारत का हिस्सा ही ना होता तो क्या होता?
19 दिसंबर, 1961 को गोवा भारत का हिस्सा बना था. आज जिस गोवा को उसके खुलेपन और उदारता के लिए जाना जाता है, एक दौर ऐसा भी था कि वहां अपना धर्म मानने की आजादी तक नहीं थी.
इस बीच उत्तर भारत में ठंड की आमद हो चुकी है. ऐसे में कई लोग ठंड से दूर एक सुहाने मौसम की तलाश में भी गोवा पहुंच रहे हैं. यानी कुल मिलाकर साल के 12 महीने 'मजे' में रहने वाला शहर. पर क्या होता अगर गोवा भारत का हिस्सा ही न होता? क्या होता अगर वहां जाने के लिए वीजा लेना पड़ता? क्योंकि 1961 में जाकर ये सुंदर सा तटीय प्रदेश भारत का हिस्सा बना. तो समझते हैं कि गोवा भारत से कैसे जुड़ा, और क्या है इसका इतिहास?
एक समुदाय है. समंदर का तट है और तट पर पनपा विशाल व्यापार है. समंदर से ही एक शख्स की आमद होती है. इसका धर्म यहां बसे लोगों के धर्म से अलग था. लेकिन इस व्यक्ति का स्वागत हुआ. स्वागत के साथ उसे व्यापार संगठन में अहम पद भी दिया गया. लेकिन आमदों का दौर यहीं नहीं रुका. इसके बाद आमद हुई एक बड़े समुदाय की. धर्म परिवर्तन कराए गए. कहानी है उस समुदाय की, जो धार्मिक नियमावली के ख़िलाफ़ जाने वालों को ढूंढ-ढूंढकर सज़ा देता था. एक यहूदी लड़की है, जिसने सजा भुगती है और कहानी में है तटों के किनारे ही बसा एक राज्य. जो आधुनिक समय में गोवा के नाम से जाना जाता है. जहां आप वाइब ढूंढने जाते हैं. 19 दिसंबर 1961 के दिन गोवा आजाद हुआ था. साढ़े चार सौ साल के लंबे पुर्तगाली शासन के बाद इंडियन आर्मी ने केवल 36 घंटे में गोवा को आजाद कराया था.
साल 1490 से 1510 तक गोवा, बीजापुर सल्तनत के नियंत्रण में था. तब गोवा को ‘एला’ कहा जाता था. ये दक्षिण भारत का वो मुस्लिम राज्य था, जो महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के हिस्सों तक फैला था. शासक थे आदिलशाही वंश के संस्थापक सुल्तान यूसुफ आदिल शाह, जिन्हें पुर्तगाली 'हिडालकाओ' भी कहते थे. उस दौर में हिंद महासागर में व्यापार के हब रहे गोवा पर कई नाविकों की आमद हो रही थी. सुल्तान भी सहिष्णु स्वभाव के जान पड़ते थे. उन्होंने यहूदियों सहित कई समुदाय के लोगों का खुले दिल से स्वागत किया. लेकिन यहूदी यहां पहुंचे कैसे? इसके पीछे भी एक कहानी है.
स्पेन के पहले राजा फर्डिनेंड को ‘कैथोलिक सम्राट’ कहा जाता था. वे रोमन कैथोलिक चर्च के कट्टर समर्थक थे. उन्हें क्रिस्टोफर कोलंबस को खोज पर भेजने के लिए भी जाना जाता है. बहरहाल, राजा को यहूदी बर्दाश्त नहीं थे. ऐसे में उन्हें धर्म परिवर्तन और Inquisition यानी धर्माधिकरण का शिकार होना पड़ता था. Inquisition माने रोमन कैथोलिक चर्च का बनाया गया ऐसा संगठन, जो चर्च की मान्यताओं में विश्वास न करने वालों का पता लगाकर सज़ा देता था. 1492 में कई यहूदी स्पेन से पुर्तगाल में आकर बस गए. इन यहूदियों की नौकायन से लेकर गणित, मेडिसिन, मानचित्रकला और विज्ञान में महारत थी. लेकिन पुर्तगाल में भी उनके साथ ऐसा ही व्यवहार हुआ, जिसके बाद उनका नया ठिकाना बना गोवा. तब गोवा Portuguese State of India कहा जाता था.
सुल्तान यूसुफ को इन माइग्रेंट्स से कोई दिक्कत नहीं थी. इन्हें यहां व्यापार और रहने की अनुमति दी गई. माइग्रेंट्स में से एक थे Gaspar Da Gama. यहूदी व्यापारी थे. वो अपनी बिज़नेस और नेविगेशन स्किल के लिए जाने जाते थे. गैस्पर ने गोवा के व्यापार को पूर्वी अफ्रीका, अरब और भूमध्यसागरीय इलाकों से जोड़ा. सुल्तान उनसे प्रभावित थे इसलिए गैस्पर को अपने बेड़े में शामिल कर लिया, वो भी कमांडर पद पर. व्यापार और बंदरगाह का ये नमूना बढ़िया फल फूल रहा था. लेकिन तभी हजारों किलोमीटर दूर बाजार की तलाश में यूरोपीय नाविक समुद्र की लहरों को अपने जहाजों से रौंद रहे थे. इन्हीं में पुर्तगाली भी थे. जिन्होंने 1505 में गोवा के दक्षिण में मौजूद कोचीन में अपनी पैठ बना ली थी और अब निशाने पर था गोवा.
1509 ईस्वी में Alfonso de Albuquerque भारत के दूसरे वायसराय बनकर आए. एक साल में पुर्तगाल ने गोवा पर कब्ज़ा कर लिया. आदिल शाह के सैकड़ों सैनिक मारे गए तो कुछ समंदर में बह गए. और इसी तरह गोवा, एशिया में यूरोपियों का पहला किला बना. गैस्पर सहित कई यहूदियों को बंदी बना लिया गया. इन्हें ईसाई धर्म अपनाने के लिए मजबूर किया गया. दरअसल पुर्तगाली तट पर कैथोलिक को बढ़ावा देना चाहते थे. सेना के किसी ऊंचे पद पर यहूदी को स्वीकार करना तो दूर, वो तो पूरे तट से ही उनकी संस्कृति तक को मिटा देना चाहते थे.
गोवा के यहूदीपूरे विधि-विधान से लेकिन जबरन गैस्पर का धर्म परिवर्तन कराया गया. उसे नया नाम दिया गया. गैस्पर जैसे कई यहूदी नए-नए ईसाई बने थे. लेकिन उनके मन से अपने धर्म का प्रभाव खत्म नहीं हो पाया था. यानी सार्वजनिक रूप से कैथोलिक, लेकिन निजी तौर पर अभी भी यहूदी रीति-रिवाजों का पालन कर रहे थे. 1560 आते-आते गोवा में भी Inquisition की स्थापना हुई जो यहूदियों को ढूंढ ढूंढकर यातनाएं दे रहा था. इसी यातना से जुड़ा एक किस्सा गार्सिया दा ओर्टा का है.गार्सिया यहूदी बॉटनिस्ट थे जिन्हें धर्म बदलने के लिए मजबूर किया गया था. उनकी बहन कैटरीना ( Catarina) शाब्बत यानी की शुक्रवार को मोमबत्तियां जलाना, पासओवर ( यहूदी धर्म में विश्वास करने वाले लोगों का एक प्रमुख त्योहार है) मनाने जैसी तमाम प्रथाओं का पालन कर रही थीं.
पुर्तगालियों को जब इस बात की भनक हुई तो उसे गिरफ्तार कर के कठोर सजा दी गई. इतना ही नहीं नजीर पेश करने के लिए चौराहे पर उसे जिंदा जलाकर मार डाला गया था. इस घटना के बाद गार्सिया के परिवार को हमेशा संदेह के तौर पर देखा गया. गोवा के सबसे पुराने अखबार OHeraldo में छपी रिपोर्ट के मुताबिक Garcia की मौत के 12 साल बाद उनके अवशेषों को खोदकर निकाला गया, और जलाकर समुद्र में फेंक दिया गया था. हालांकि उनके काम को आज भी याद किया जाता है. पौधों और जड़ी-बूटियों से जुड़ी गार्सिया की किताब Colloquies on the Simples and Drugs of India भारतीय औषधि विज्ञान के इतिहास में खास कृति मानी जाती है. पणजी में Jardim Garcia de Orta गार्डन उन्हीं के नाम पर है.
गोवा के यहूदीगोवा में आज भी ऐसी कई इमारतें हैं जो यहूदियों की बसावट का साक्ष्य देती हैं. जैसे पुर्तगालियों की राजधानी ओल्ड गोवा में एक सड़क थी, रुआ डॉस जूडस. इसे यहूदियों की सड़क कहा जाता था. इतिहासकार Jose Nicolau da Fonseca ने अपनी किताब ‘A Historical and Archaeological Sketch of the city of Goa’ में बताया है कि इस सड़क पर यहूदियों के पूजा स्थल थे, जिसे सिनेगॉग (synagogues) कहा जाता है. आज भी पुराने गोवा में सेंट ऑगस्टीन टावर नाम का एक खंडहर है. ASI के मुताबिक इसे पुर्तगालियों ने बनवाया था. लेकिन ‘Bombay, exploring the Jewish urban heritage’ किताब के लेखक Ivar Fjeld का दावा इसके उलट है. वो मानते है कि इसे पुर्तगाली इसे कभी बनवा ही नहीं सकते थे क्योंकि इसके निर्माण में इस्तेमाल किए गए पत्थर बीजापुर से आए थे. पुर्तगाली कभी भी किसी शत्रु राज्य से ऐसे पत्थर नहीं खरीद सकते थे.
उन्होंने तर्क दिया कि इनमें से कुछ पत्थरों पर जो नक्काशी थी वो बुल्गारिया में मौजूद यहूदी धर्मस्थल की नक्काशी की तरह है. साथ ही इस कॉम्प्लेक्स के अंदर जो पेंटिंग है वो इथियोपियाई यहूदी मूल की हैं. आज भी इथियोपिया में ये मौजूद हैं. इसके अलावा एक बड़े पत्थर की पट्टिका में एक चील को अपने दाहिने पंजे से यहूदी धर्म के पवित्र ग्रंथ टोरा से भरा एक बक्सा ले जाते हुए दिखाया गया है. कॉम्पलेक्स में एक कुआं भी मौजूद है, जैसा कि यहूदी धर्म स्थल में पाया जाता है.
O Heraldo में छपी रिपोर्ट के मुताबिक गोवा से कई यहूदी मुंबई (तब बॉम्बे) और केरल के कोचिन (अब कोच्चि) विस्थापित हो गए थे. बाकी महाराष्ट्र bene israel समुदाय, कोचीन यहूदी समुदाय, या कोलकाता के बगदादी यहूदी समुदाय से जुड़े लोग इजरायल चले गए थे. आज, भी गोवा में वा अपने धर्मपरिवर्तित पूर्वजों के वंशज का पता लगाते हैं. लेकिन इजरायली टूरिस्ट, व्यापारियों और कुछ एक आक के अलावा, आज गोवा में गिनती के यहूदी बचे हैं. संघर्षों और युद्धों के बीच गोवा में इस समुदाय ने अपनी जड़ें खो दी है. लेकिन यहां की वस्तुकाल एक समय में उनके होने का एहसास कराती है.
आजादीपर गोवा 1947 से ही भारत का हिस्सा नहीं था. गोवा 19 दिसंबर 1961 को भारत का हिस्सा बना. तब तक इस क्षेत्र पर पुर्तगाल का कब्जा था. इसके अलावा दमन और दीव, दादरा एवं नगर हवेली के हिस्से भी पुर्तगाल के अधीन थे. जब 1947 में देश आजाद हुआ तब भारत और पुर्तगाल के बीच संबंध अच्छे थे. दोनों देशों के बीच बस एक मुद्दे पर गरारी अटक रही थी. ये मुद्दा दमन और दीव, दादरा एवं नगर हवेली और गोवा का था. 1950 में इसी बात को लेकर दोनों देशों के रिश्तों में कड़वाहट भी आ गई. पर पुर्तगाल गोवा छोड़ने को तैयार नहीं था.
1951 में पुर्तगाल ने अपने संविधान में परिवर्तन किया. पुर्तगाल ने ये परिवर्तन गोवा को अपने उपनिवेश के रूप में नहीं बल्कि एक विदेशी प्रांत के रूप में दावा करने के लिए किया था. कहा जाता है कि पुर्तगाल के इस कदम के पीछे उद्देश्य ये था कि गोवा को तब नए-नए बने नाटो (North Atlanic Treaty Organisation) का हिस्सा बना लिया जाए. पुर्तगाल के इन कदमों से दोनों देशों के रिश्ते और भी कड़वे होते गए. इसके बाद 1955 में हजारों की संख्या में सत्याग्रहियों ने गोवा को आजाद करवाने के इरादे से गोवा में घुसने की कोशिश की. पर पुर्तगालियों ने इन सत्याग्रहियों पर फायरिंग कर दी. इस फायरिंग में 25 सत्याग्रही मारे गए.
वर्तमान की मोदी सरकार कई मौकों पर गोवा को लेकर पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की आलोचना करती रही है. 8 अगस्त 2022 को एक चुनावी जनसभा को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने गोवा में कहा-
"पंडित नेहरू को लगा कि अगर वो गोवा में सैन्य कार्रवाई करेंगे तो इससे उनकी ग्लोबल नेता की छवि पर असर पड़ेगा."
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक ये बात सच है कि पंडित नेहरू ने अपने एक भाषण में सत्याग्रहियों को हिंसा न करने को कहा था. उस भाषण में नेहरु कहते हैं
"गोवा भारत का हिस्सा है और कोई इसे अलग नहीं कर सकता. हमने अभी तक संयम से काम लिया है. हम चाहते हैं कि ये मामला शांतिपूर्वक निपट जाए. किसी को ये न लगे कि हम कोई सैन्य कार्रवाई करने जा रहे हैं. जो गोवा जा रहे हैं वो जाने के लिए स्वतंत्र हैं. पर अगर वो अपने आप को सत्याग्रही कह रहे हैं तो आपको सत्याग्रह के सिद्धांत याद होने चाहिए. सत्याग्रहियों के पीछे फौजें नहीं चला करतीं."
सत्याग्रहियों पर फायरिंग की घटना के बाद भारत ने पुर्तगाल से राजनयिक संबंध तोड़ लिए.
सैन्य कार्रवाईपंडित नेहरू सैन्य कार्रवाई के पक्ष में नहीं थे. पर 6 साल बाद 1961 में उनका मन बदल गया. कई लोग इसकी वजह पुर्तगाल को ही बताते हैं. भारत ने कई बार पुर्तगाल से बात करने की कोशिश की पर पुर्तगाल ने कोई दिलचस्पी नहीं ली. एक कारण और था जिसने भारत को मिलिट्री ऑपरेशन करने के लिए प्रेरित किया. ये थे अफ़्रीकी देश. भारत की अफ्रीकी देशों से नजदीकी थी. कई अफ्रीकी देशों पर भी पुर्तगाल का कब्जा था. इसलिए वो चाहते थे कि भारत गोवा को आजाद कराए.
1961 के दिसंबर महीने में भारत ने मिलिट्री ऑपरेशन शुरु किया. इंडियन नेवी ने गोवा के तट को घेरना शुरु कर दिया. एयरफोर्स भी आसमान में चक्कर काटने लगी जिससे पुर्तगाली एयरफोर्स को रोका जा सके. आर्मी ने गोवा की सीमा और दमन और दीव में डेरा डाल दिया. 17 दिसंबर से भारत की सेनाओं ने अपना अभियान शुरू किया. आखिरकार 19 दिसंबर को गोवा के गवर्नर जनरल Vasaalo e Silva ने आत्मसमर्पण कर दिया. इस तरह गोवा में 4 सदियों से चला आ रहा पुर्तगाल का राज समाप्त हो गया.
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