गुजरात के अब्दुल सत्तार हाजी इब्राहिम पटेल गोधरा में साल 1936 में पैदा हुए. यहीं पढ़े-लिखे. यहीं पर शादी हुई. बच्चे हुए. गोधरा रेलवे स्टेशन से कुछ ही दूरी पर 'पटेल नी चाली' (पटेलों का घर) है. सत्तार यहीं रहते थे. साल 1954 से 1957 के बीच के तीन साल को छोड़ दें तो उन्होंने अपना बाकी जीवन यहीं काट दिया. साल 2019 में यहीं पर उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया और गोधरा के ही शेख घांची कब्रिस्तान में दफन हो गए. उनके जीवन के जो 3 साल गोधरा में नहीं बीते, वो पाकिस्तान में बीते. ये तीन साल मामूली साल नहीं थे. इनकी छाया सत्तार के पूरे जीवन पर छाई रही. इन तीन सालों की वजह से उनके सामने पहचान का ऐसा संकट खड़ा हो गया कि 6 साल तक अब्दुल ये साबित करने के लिए अदालतों के चक्कर काटते रहे कि वो भारतीय नागरिक हैं.
पाकिस्तान में खो गया इंडियन पासपोर्ट, भारतीय नागरिक हैं ये साबित करने में 6 साल लग गए
गुजरात: गोधरा के रहने वाले अब्दुल सत्तार हाजी का पासपोर्ट पाकिस्तान में खो गया. इसके बाद वह पाकिस्तानी पासपोर्ट पर भारत वापस आए. यहां उन पर विदेशी नागरिक के तौर पर केस चला. 6 साल कोर्ट की लड़ाई के बाद सत्तार यह साबित कर पाए कि वह भारतीय नागरिक हैं.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, गुजरात के गोधरा में साल 2002 में भयंकर दंगे हुए थे. इन दंगों के बाद बनी नानावटी-मेहता कमिशन ने अपनी इन्क्वायरी रिपोर्ट में बताया था कि साल 2002 से पहले भी गुजरात में एक भीषण दंगा हुआ था. आजादी के ठीक एक साल बाद 1948 में. रिपोर्ट में बताया गया कि इस दंगे में सबसे पहले मुस्लिमों ने हिंदुओं के 869 घर जला दिए. बाद में जवाबी हमले में हिंदुओं ने मुसलमानों के 3071 घर जलाए. इसके बाद गोधरा से बड़ी संख्या में पलायन हुआ. तकरीबन 1100 घांची मुस्लिम गोधरा छोड़कर चले गए. इनमें से कई लोग पाकिस्तान जाकर बस गए. विस्थापित लोगों में युसुफ हाजी इस्माइल भी शामिल थे, जिनकी बेटी से सत्तार की शादी हुई थी. यानी कि सत्तार की पत्नी इन दंगों के बाद अपने परिवार के साथ पाकिस्तान चली गईं.
पत्नी को लाने गए पाकिस्तानइसके 6 साल बाद यानी कि 1954 में सत्तार ने तय किया कि वह अपनी पत्नी को वापस लाने के लिए पाकिस्तान जाएंगे. वह भारतीय पासपोर्ट पर पाकिस्तान पहुंच भी गए. लेकिन वहां पर उनका इंडियन पासपोर्ट उनसे कहीं खो गया. सत्तार ने कोर्ट को बताया कि पासपोर्ट उनके ससुर ने जबरन उनसे ले लिया और उसे नष्ट कर दिया. वो चाहते थे कि सत्तार वापस भारत न जाएं और पाकिस्तान में ही रहें. अब बिना पासपोर्ट के सत्तार भारत वापस भी नहीं आ सकते थे.
ऐसे में उन्हें सलाह दी गई कि वो पाकिस्तानी पासपोर्ट बनवाएं. यही एक तरीका है जिससे वह भारत वापस जा सकते हैं. लिहाजा, सत्तार ने पाकिस्तान का पासपोर्ट बनवाया और तीन साल के बाद यानी कि 1957 में ‘रेजिडेंशियल परमिट’ पर भारत आ गए. साल 1958 में उनका यह परमिट एक्सपायर हो गया. इसके बाद उन पर फॉरेनर्स एक्ट की धारा 14 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया. सत्तार कोर्ट को बताते रहे कि वह कभी भी विदेशी नागरिक नहीं थे. भारत में ही उनका जन्म हुआ था. वह यहीं पले-बढ़े. और तो और 1954 के पहले उन्होंने पाकिस्तान में एक कदम भी नहीं रखा था.
सत्तार ने कोर्ट के सामने स्कूल डॉक्युमेंट्स समेत वो सारे दस्तावेज रख दिए, जो उन्हें भारतीय साबित कर सकते थे. कोर्ट को बताया कि वह यहीं पैदा हुए थे और उनका परिवार भी यहीं रहता है. ट्रायल कोर्ट ने तो उनकी दलीलें मानीं और उन्हें बरी कर दिया. लेकिन गुजरात हाई कोर्ट ने उन्हें एक साल की सजा सुना दी. इस फैसले के खिलाफ वह सुप्रीम कोर्ट गए. सारी दलीलें सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया. कोर्ट ने कहा कि सत्तार का आचरण साबित करता है कि उन्हें मजबूरी में पाकिस्तानी पासपोर्ट बनवाना पड़ा था. उनके पास भारत वापस आने के लिए इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा था. सुप्रीम कोर्ट ने इस केस को मजिस्ट्रेट के पास पुनर्विचार के लिए भेज दिया.
गोधरा के रहने वाले वकील युसुफ चरखा इंडियन एक्सप्रेस को बताते हैं कि मजिस्ट्रेट के कोर्ट ने इस मामले पर कभी कोई फैसला नहीं लिया. सत्तार गोधरा में अपने घर पर रहने लगे. यहीं पर साल 2019 में 83 साल की उम्र में उनकी मौत हो गई. गोधरा के ही घांची मुस्लिम कब्रिस्तान में उन्हें दफन कर दिया गया.
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