उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ियाबाद ज़िले में एक परिवार को अपने 31 साल पहले ‘किडनैप हुए’ बेटे के मिलने की ख़बर आई. जब राजू उर्फ भीम सिंह अपनी फैमली से मिले, तो सब ख़ुश थे (Ghaziabad family 'reunited'). लेकिन अब देहरादून के एक परिवार का कहना है कि राजू ने चार महीने पहले उनके साथ भी यही दावा किया था कि वो उनका बेटा है. उन्होंने पुलिस को बताया कि राजू ने तब उनसे किडनैपिंग, जबरन मजदूरी और भागने की वही कहानी सुनाई थी, जो उसने ग़ाज़ियाबाद में कही.
दो-दो परिवारों का 'खोया हुआ बेटा' एक कैसे, गाजियाबाद-देहरादून पुलिस चक्कर में पड़ी है
Ghaziabad News: राजू नाम के इस शख़्स का दावा है, 'कुछ अज्ञात लोगों ने उसे किडनैप किया. फिर एक चरवाहे की झोपड़ी के बाहर जंजीरों से बांध दिया और बंधुआ मजदूर के तौर पर भेड़ और गाय पालने के लिए मजबूर किया.' हालांकि, Dehradun की family का दावा है कि ने उसने किडनैपिंग, जबरन मजदूरी और भागने की वही कहानी उन्हें भी सुनाई थी, जो उसने ग़ाज़ियाबाद में कही.
बताया गया कि 8 सितंबर 1993 को राजू उर्फ़ भीम सिंह (तब 9 साल का) अपनी दो बड़ी बहनों राजो और संतोष के साथ स्कूल से लौट रहा था. तब उसे ऑटो में सवार कुछ लोगों ने कथित तौर पर अगवा कर लिया. वापस लौटने पर राजू (अब 40 साल का) ने दावा किया कि उसे जैसलमेर ले जाया गया.
वहां उसे कथित तौर पर एक चरवाहे की झोपड़ी के बाहर जंजीरों से बांध दिया गया और बंधुआ मजदूर के तौर पर भेड़ और गाय पालने के लिए मजबूर किया गया. इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के मुताबिक़, उसने 26 नवंबर को ग़ाज़ियाबाद पुलिस को बताया,
Dehradun family का दावाएक ट्रक ड्राइवर ने मुझे देखा और खोड़ा पुलिस स्टेशन तक पहुंचने में मेरी मदद की.
बीते दिनों कपिल देव शर्मा और आशा देवी नाम के दंपत्ति ने देहरादून पुलिस से संपर्क किया. उन्होंने कहा कि कई साल पहले अपने बेटे को खो दिया था. पांच महीने पहले एक व्यक्ति आया और उसने दावा किया कि वो उनका बेटा मनु है. हालांकि, बाद में उनका ‘बेटा’ ये कहते हुए घर से चला गया कि वो नौकरी की तलाश में दिल्ली जा रहा है. कपिल का कहना है कि उसने हमारी भावनाओं के साथ खेला है.
देहरादून के परिवार के दावे के बाद पुलिस ग़ाज़ियाबाद स्थित उस घर पर पहुंची, जहां राजू रह रहा था. पुलिस ने बताया कि उसे आगे की पूछताछ के लिए थाने ले गई है. बताया जाता है कि ग़ाज़ियाबाद पुलिस को पांच महीने पहले आशा देवी के परिवार के साथ राजू की तस्वीरें भेजी गई थीं. लेकिन राजू ने उन तस्वीरों में दिख रहा व्यक्ति होने से इनकार किया है. हालांकि, पुलिस इस मामले की जांच कर रही है. साहिबाबाद के एसपी रजनीश उपाध्याय ने बताया,
हम इस बात की तह तक जाने की कोशिश कर रहे हैं कि राजू ने दो अलग-अलग परिवारों को अपना परिवार क्यों बताया. हम इस जटिल मामले के पीछे की सच्चाई को उजागर करेंगे.
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ग़ाज़ियाबाद की फैमली को ‘शक’राजू उर्फ भीम सिंह अपने परिवार की तलाश में गाजियाबाद के खोड़ा थाने पहुंचा और अपनी कहानी सुनाई. इसमें उसने बताया कि कैसे वो अपने परिवार से बिछड़ गया था. पुलिस ने 31 साल पहले दर्ज गुमशुदगी की शिकायत के आधार पर उसके परिवार को बुलाया और ‘राजू’ को उसके परिवार से मिलवाया. इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के मुताबिक़, हालांकि, राजू की मां लीलावती को अब भी यकीन है कि वो उनका बेटा है.
लेकिन उनके पति तुला राम का कुछ और ही कहना है. तुलाराम शहीद नगर में अपने दो मंजिला घर के ग्राउंड फ्लोर पर ही आटा चक्की की दुकान चलाते हैं. उन्होंने 1 दिसंबर को इंडियन एक्सप्रेस से कहा,
मेरा दिल कभी उस पर पूरी तरह से विश्वास नहीं कर पाया. अब, मुझे लगता है कि हमें DNA टेस्ट करवाना चाहिए था और इंतजार नहीं करना चाहिए था.
राजू की तीनों बहनों का भी अभी पूरा यकीन इस बात पर नहीं है कि वो उनका भाई ही है. 43 साल की राजो (राजू की बहन) ने कहा कि उनका भाई बाएं हाथ से नहीं लिखता था. लेकिन जब 29 नवंबर को उन्होंने राजू से पूछा कि क्या वो कुछ लिख सकता है. बाद में उन्होंने एक पेज पर राजू लिखा और उसे कई बार कॉपी करने को कहा. लेकिन उसने अपने बाएं हाथ से बहुत सफाई से कॉपी किया. राजो का कहना है कि ऐसा होने पर उनका शक बढ़ गया.
राजू की बड़ी बहन संतोष (जिन्हें राजू ने पुलिस स्टेशन में परिवार द्वारा दिखाए गए फोटोग्राफ में सबसे पहले पहचाना था) ने बताया कि ये तस्वीर तब ली गई थी, जब वो लगभग 14 या 15 साल की थीं. फिलहाल चेहरा मिलता जुलता ही है. लेकिन इसका 31 साल बाद भी चेहरा पहचाना लेना, मुश्किल लगता है. इन दावों-प्रतिदावों के बीच ग़ाज़ियाबाद और देहरादून की पुलिस मामले की जांच में जुटी हुई है.
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