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सेक्स वर्कर्स पर लिखने के लिए कब्रिस्तान क्यों जाती थीं मशहूर लेखिका एलिफ शफक?

शरणार्थियों की बात करते हुए एलिफ ने कहा कि, हम अक्सर पढ़ते हैं कि शरणार्थी जो यूरोप पार करने की कोशिश में मारे जाते हैं, उनके शव कहां दफन होते हैं? यही वो कब्रिस्तान है. ये बहुत ही अलौकिक-सी जगह है, जहां एक अफगान शरणार्थी, छोड़े हुए बच्चे के बगल में दफ़न हो सकता है.

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एलिफ ने बताया कि तुर्की भाषा में वहां इसे ‘बेनाम लोगों का कब्रिस्तान’ कहते हैं. (फोटो- इंस्टाग्राम)

एलिफ शफक. तुर्किए मूल की विश्व प्रसिद्ध लेखिका. जो अपनी गहरी कहानियों और सांस्कृतिक संवेदनशीलता के लिए जानी जाती हैं. उनके उपन्यास, जैसे ‘द बास्टर्ड ऑफ इस्तांबुल’ और ‘द फोर्टी रूल्स ऑफ लव’, प्रेम, पहचान और इतिहास को खूबसूरती से उजागर करते हैं. शफक ने हाल में दी लल्लनटॉप के किताबों से जुड़े शो ‘किताबवाला’ में शिरकत की. उन्होंने अपनी किताबों और कहानियों पर कई किस्से साझा किए.    

शफक ने इस्तांबुल के उस कब्रिस्तान का ज़िक्र किया था, जहां उन लोगों को दफनाया जाता है जिनका कोई नहीं होता. दी लल्लनटॉप के संपादक सौरभ द्विवेदी ने उनसे सवाल किया कि ऐसी कहानियां लिखते हुए, इन्हें बुनते हुए, उनकी रिसर्च और तैयारी किस तरह की होती है. इस पर एलिफ ने बताया,

“उपन्यास ‘10 मिनट 38 सेकंड्स इन अ स्ट्रेंज वर्ल्ड’ एक सेक्स वर्कर की कहानी कहता है, और शुरुआत में ही हमें पता चल जाता है कि वो मर चुकी है. दिलचस्प बात ये है कि उसका दिल धड़कना बंद कर चुका है, लेकिन उसका दिमाग कुछ और मिनटों तक काम करता रहता है. कुछ रोचक वैज्ञानिक अध्ययन हैं जो ये दिखाते हैं कि जब मानव हृदय बंद हो जाता है, तब भी मस्तिष्क लगभग 10 मिनट तक सक्रिय रह सकता है और वही पूरी किताब की संरचना का आधार बना. मैं विज्ञान से प्रेरित थी, लेकिन मैं खासतौर पर उस कब्रिस्तान पर ध्यान देना चाहती थी जहां वो अंत में दफनाई जाती है. ये एक वास्तविक कब्रिस्तान है, इस्तांबुल के बाहरी इलाके में. ये इकलौता नहीं है.”

इसके बारे में एलिफ ने आगे बताया,

“तुर्की भाषा में हम इसे कहते हैं, ‘बेनाम लोगों का कब्रिस्तान’. जिनके जीवन में कोई साथी नहीं था, लेकिन ये सच नहीं है. जो लोग वहां दफ़न हैं, उनके पास साथी थे, उनके दोस्त थे. तो ये किताब दोस्ती के बारे में भी है. अब मुझे इस कब्रिस्तान में कई साल पहले बहुत दिलचस्पी हुई. मैंने वहां का दौरा किया था. और तब से मैं शोध करती आ रही हूं. हर बार जब भी मुझे कोई अख़बारी कवरेज मिलती, मैं उसे सहेज लेती थी. ये बहुत दुखद जगह है जहां असली इंसानों को जैसे बिना किसी अंतिम संस्कार, बिना किसी रिवाज़ बिना किसी अधिकार के फेंक दिया गया हो. और जहां असली इंसानों को संख्याओं में बदल दिया जाता है.”

कब्र के बारे में एलिफ ने बताया,

“वहां कोई कब्र का पत्थर नहीं है. कोई फूल नहीं, कोई मिलने आने वाला नहीं. आप वहां दफ़न लोगों के नाम नहीं पढ़ सकते. वे सिर्फ़ संख्याओं में बदल दिए गए हैं, सिर्फ़ घसीटी हुई इबारतें और मुझे लगता है कि एक लेखक के तौर पर मैं एकदम विपरीत करना चाहती थी. क्या मैं इनमें से कम से कम एक संख्या को उठा सकती हूं और उसे फिर से इंसान बना सकती हूं? जिसे इस तरह अमानवीय बना दिया गया है, उसे एक कहानी दूं, उसे दोस्त दूं, और दिखाऊं कि वो अकेली नहीं थी. अगर आप तुर्किए के इस कब्रिस्तान में जाएं और कुछ रिसर्च करें, तो आपको पता चलेगा कि वहां दफ़न लोग हर पृष्ठभूमि से आते हैं. उदाहरण के लिए, वहां बहुत सारे लोग हैं जो 1980 और 1990 के दशक में दफ़नाए गए. जो HIV से जुड़ी बीमारियों के कारण मरे. और AIDS से जुड़े पूर्वाग्रह की वजह से उनके परिवारों ने उन्हें नकार दिया. इसलिए वो इसी बेनाम लोगों के कब्रिस्तान में दफ़न हुए. वहां सेक्स वर्कर्स भी दफ़न हैं. लेकिन इसके अलावा, सड़क पर मिले बच्चे, जो जिंदा नहीं बच पाए गए वो भी वहां हैं. छोड़े गए नवजात शिशु भी वहां हैं. आत्महत्याएं भी हैं. और शरणार्थियों की संख्या बढ़ रही है.”

शरणार्थियों की बात करते हुए एलिफ ने कहा कि, हम अक्सर पढ़ते हैं कि शरणार्थी जो यूरोप पार करने की कोशिश में मारे जाते हैं, उनके शव कहां दफन होते हैं? यही वो कब्रिस्तान है. ये बहुत ही अलौकिक-सी जगह है, जहां एक अफगान शरणार्थी, छोड़े हुए बच्चे की बगल में दफ़न हो सकता है. और वो कब्र एक सेक्स वर्कर के बगल में हो सकती है. उन्होंने बताया,

“इसी तरह मुझे लगता है मेरा स्वाभाविक झुकाव ये था कि मैं इस जगह को देखूं जिसके बारे में लगभग कोई बात नहीं करता. जो इतनी उपेक्षित और भुला दी गई है. मैं दिखाना चाहती थी कि कभी-कभी हमारे पास ख़ून के रिश्तों वाला परिवार होता है. अगर हमारे परिवार प्यार भरे, देखभाल करने वाले और कोमल हैं तो हमें उसका शुक्रगुजार होना चाहिए. लेकिन हर कोई इतना भाग्यशाली नहीं होता. और खासतौर पर उनके लिए जो हाशिए पर धकेले गए हैं. दूसरा परिवार उतना ही जरूरी हो सकता है जितना खून का परिवार. और मैं इस दूसरे परिवार को कहती हूं, हमारा पानी वाला परिवार.”

एलिफ ने बताया कि हमारे पानी वाले परिवार में हमारे दोस्त होते हैं. कभी-कभी पांच या छह इससे ज्यादा नहीं. ये दर्जनों नहीं हो सकते. ये वो लोग हैं जो हमें जानते हैं, हमसे प्यार करते हैं, और हमारे सफ़र के गवाह होते हैं. जब हम गिरते हैं, वो हमें उठाते हैं. और हम भी उनके लिए यही करते हैं. एलिफ ने कहा कि उनका अवलोकन है कि तुर्किए जैसे देशों में बहुत सारे अल्पसंख्यकों को, विशेष रूप से LGBTQ+ समुदाय को, हाशिए पर धकेल दिया गया है. उनके लिए पानी वाले परिवार बहुत अहम होते हैं. और मैं इस बारे में भी बात करना चाहती थी.

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