पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) के स्मारक पर सियासत थमने का नाम नहीं ले रही है. कांग्रेस का आरोप है कि सरकार पूर्व प्रधानमंत्री के स्मारक के लिए जगह नहीं ढूंढ पा रही है. वहीं सरकार की तरफ से सफाई दी जा रही है कि मनमोहन सिंह के स्मारक के लिए उपयुक्त स्थान ढूंढने की प्रक्रिया चल रही है.
पूर्व PM मनमोहन सिंह की समाधि बनी तो उसके नियम और प्रक्रिया क्या होंगे?
2013 में राजघाट परिसर में समाधि स्थल बनाने की नीति में बदलाव किया गया था. Delhi में करीब 245 एकड़ जमीन स्मारकों के निर्माण के लिए आवंटित हो चुके हैं. जमीन की कमी को देखते हुए 2013 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने तय किया था कि दिवंगत नेताओं के लिए अलग से स्मारक नहीं बनाए जाएंगे.

पूर्व प्रधानमंत्री के समाधि स्थल को लेकर सरकार और विपक्ष की नूराकुश्ती के बीच सवाल उठता है कि आखिर देश में दिवंगत प्रधानमंत्रियों की स्मारक बनाने की प्रक्रिया क्या है. देश के कई प्रधानमंत्रियों की समाधि दिल्ली में बनाई गई है. जबकि कुछ प्रधानमंत्रियों को स्मारक के लिए दिल्ली में जगह नहीं मिली. राजधानी दिल्ली में प्रधानमंत्री के अलावा भी राष्ट्रीय महत्व के कुछ नेताओं के समाधि स्थल हैं. आइए जानते हैं कि आखिर इसके लिए क्या नियम बनाए गए हैं.
दिल्ली में समाधि स्थल बनाए जाने के लिए कुछ विशिष्ट नियम और प्रक्रियाएं हैं. इसे भारत सरकार द्वारा निर्धारित किया जाता है. इनके मुताबिक केवल विशिष्ट श्रेणी के नेताओं और व्यक्तित्वों के लिए के लिए ही राष्ट्रीय महत्व का समाधि स्थल बनाया जाएगा.
इस लिस्ट में किन लोगों को शामिल किया जाता है?
भारत के राष्ट्रपति: देश के प्रमुख होने के नाते राष्ट्रपति की समाधि स्थल बनाया जाता है.
भारत के प्रधानमंत्री: देश के कार्यकारी प्रमुख होने के नाते प्रधानमंत्री की भी समाधि बनाई जाती है.
उप-प्रधानमंत्री: हालांकि उप प्रधानमंत्री कोई संवैधानिक पद नहीं है. लेकिन भारत में कई ऐसे मौके रहे हैं जब उप प्रधानमंत्री बनाए गए हैं. मसलन जनता पार्टी की सरकार में बाबू जगजीवन राम को उप प्रधानमंत्री बनाया गया था. ऐसी ही व्यवस्था हमें अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली तीसरी एनडीए सरकार में भी देखने को मिली थी.
राष्ट्रीय महत्व के व्यक्तित्व: इस लिस्ट में वे सभी व्यक्ति आते हैं जिन्होंने देश के लिए बहुत बड़ा और अविस्मरणीय योगदान दिया हो. इनमें स्वतंत्रता सेनानी, सामाजिक कार्यकर्ता या ऐसे राजनेता जिन्होंने देश के लिए सराहनीय योगदान दिया हो.
सरकार की मंजूरी जरूरी होती है?समाधि स्थल के निर्माण के लिए केंद्र सरकार की स्वीकृति जरूरी होती है. सरकार यह निर्णय करती है कि राजघाट के परिसर में दिवंगत नेता का समाधि स्थल बनाया जाएगा या नहीं. दिल्ली के राजघाट परिसर और उसके आसपास समाधि स्थल बनाए जाते हैं. क्योंकि यह राष्ट्रीय स्मारक स्थल के तौर पर स्थापित है. राजघाट में सीमित जगह होने के चलते समाधि स्थलों का आवंटन बहुत ही महत्वपूर्ण व्यक्तियों के लिए किया जाता है.
समाधि बनाने के लिए क्या है नियम और प्रक्रिया# राजघाट और उससे जुड़े समाधि स्थलों का प्रशासन राजघाट क्षेत्र समिति के अंतर्गत आता है. यह समिति संस्कृति मंत्रालय की देखरेख में कार्य करती है.
# समाधि स्थल के लिए निर्णय लेने में यह समिति स्थान की उपलब्धता, व्यक्ति के योगदान और मौजूदा नीतियों का मूल्यांकन करती है.
# संस्कृति मंत्रालय समाधि स्थल निर्माण के प्रस्ताव की समीक्षा करता है.
# प्रस्ताव पर चर्चा के लिए अन्य विभागों जैसे शहरी विकास मंत्रालय और गृह मंत्रालय से परामर्श किया जाता है.
समाधि के निर्माण के लिए इन मंत्रालयों से गुजरती है फाइलसंस्कृति मंत्रालय: समाधि स्थल के निर्माण और संरक्षण का प्रबंधन करता है.
आवास और शहरी मामलों का मंत्रालय: भूमि आवंटन और निर्माण योजना में सहयोग करता है.
गृह मंत्रालय: समाधि स्थल निर्माण के लिए सुरक्षा और राजकीय सम्मान की प्रक्रिया सुनिश्चित करता है.
निर्माण के लिए भूमि का चयन और मंजूरीसमाधि स्थल के लिए भूमि का चयन दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) और राजघाट क्षेत्र समिति के माध्यम से होता है.
2013 में नियम में हुआ था बदलाव2013 में राजघाट परिसर में समाधि स्थल बनाने की नीति में बदलाव किया गया था. दिल्ली में करीब 245 एकड़ जमीन स्मारकों के निर्माण के लिए आवंटित हो चुके हैं. जमीन की कमी को देखते हुए 2013 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने तय किया था कि दिवंगत नेताओं के लिए अलग से स्मारक नहीं बनाए जाएंगे. तत्कालीन सरकार ने भविष्य में स्मारकों के निर्माण के लिए यमुना नदी के किनारे एक साझा परिसर के रूप में राष्ट्रीय स्मृति स्थल स्थापित करने का फैसला किया था. साझा परिसर के प्रस्ताव पर पहली बार साल 2000 में चर्चा हुई थी. तब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार थी.
नरसिम्हा राव के समाधि को लेकर हुआ विवादकेंद्र में पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले गांधी परिवार से इतर पहले नेता पीवी नरसिम्हा राव के स्मारक को दिल्ली में जगह नहीं मिली थी. उनकी मृत्यु 2004 में हुई थी. उस समय केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार थी. उनके पार्थिव शरीर को अंतिम श्रद्धांजलि देने के लिए पार्टी कार्यालय में रखने की अनुमति नहीं दी गई. आखिरकार उनका अंतिम संस्कार हैदराबाद में किया गया. नरसिम्हा राव के समर्थकों ने दिल्ली के राजघाट में उनकी समाधि बनाए जाने की मांग की. जहां दूसरे पूर्व प्रधानमंत्रियों जैसे पंडित नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की समाधियां हैं. लेकिन तत्कालीन सरकार इस पर सहमत नहीं हुई. 2015 में नरेंद्र मोदी की सरकार ने ज्ञान भूमि के नाम से नरसिम्हा राव के लिए दिल्ली में स्मारक बनवाया. उनका स्मारक राष्ट्रीय स्मृति स्थल परिसर में बनाया गया है.
विश्वनाथ प्रताप सिंह उर्फ वीपी सिंह इस देश के एकमात्र प्रधानमंत्री हैं. जिनकी देश में कहीं भी कोई समाधि नहीं बनाई गई है. पिछले साल चेन्नई में जब मुख्यमंत्री स्टालिन ने वीपी सिंह की प्रतिमा का अनावरण किया था. तब उनके बेटे अजय सिंह ने इस सवाल को उठाया था.
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