अमेरिकी वाणिज्य मंत्री हॉवर्ड लटनिक ने 7 मार्च को 'इंडिया टुडे कॉन्क्लेव' में कहा कि अमेरिका नहीं चाहता कि भारत को रूस से मिलिट्री सप्लाई मिले. लटनिक ने ये भी कहा कि रूस भारत की स्वतंत्रता छीन लेगा. लेकिन भारत का रूस से हथियार खरीदना जारी है. 7 मार्च को ही रक्षा मंत्रालय ने T-72 टैंकों के इंजन की खरीद के लिए रूस की Rosoboronexport के साथ 2156 करोड़ रुपये की डील की.
US ने आज ही कहा था रूस से हथियार न लो, भारत ने आज ही T-20 टैंक से जुड़ी बहुत बड़ी डील कर ली
रूस की कंपनी के साथ इस सौदे में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर भी शामिल है. चेन्नई के अवाडी स्थित सरकारी आर्मर्ड व्हीकल्स निगम लिमिटेड को ये टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की जाएगी. मंत्रालय ने कहा कि उसने T-72 टैंकों के 1,000 एचपी इंजनों की खरीद के लिए रोसोबोरोनएक्सपोर्ट (RoE) के साथ लगभग 2,156 करोड़ रुपये की डील पर हस्ताक्षर किए हैं.

रूस की कंपनी के साथ इस सौदे में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर भी शामिल है. चेन्नई के अवाडी स्थित सरकारी आर्मर्ड व्हीकल्स निगम लिमिटेड को ये टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की जाएगी. मंत्रालय ने कहा कि उसने T-72 टैंकों के 1,000 एचपी इंजनों की खरीद के लिए रोसोबोरोनएक्सपोर्ट (RoE) के साथ 248 मिलियन अमेरिकी डॉलर (लगभग 2,156 करोड़ रुपये) की डील पर हस्ताक्षर किए हैं.
T-72 टैंक भारतीय सेना के टैंक बेड़े का मुख्य आधार हैं, जो फिलहाल 780 एचपी इंजन से सुसज्जित हैं. मंत्रालय ने एक बयान में कहा,
अमेरिका नहीं चाहता कि भारत को रूस से मिलिट्री सप्लाई मिले"T-72 टैंकों के मौजूदा बेड़े को 1000 एचपी इंजन से लैस करने से भारतीय सेना की युद्धक्षेत्र गतिशीलता और आक्रामक क्षमता में वृद्धि होगी."
रूस को लेकर अमेरिका के रुख को देखें तो भारत का ये सौदा काफी दिलचस्प है. दरअसल शुक्रवार को इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में अमेरिकी वाणिज्य मंत्री हॉवर्ड लटनिक ने कहा कि भारत का रूस से हथियार खरीदना और BRICS (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) गठबंधन में उसकी भागीदारी, भारत-अमेरिका के मौजूदा संबंधों के लिए बाधाएं हैं. लटनिक ने आरोप के लहजे में कहा कि BRICS अमेरिकी डॉलर को रिप्लेस करना चाहता है.
ट्रंप के मंत्री ने साफ कहा,
“BRICS दुनिया की वैश्विक आर्थिक मुद्रा के रूप में डॉलर की जगह लेने के लिए एक मुद्रा बनाने की कोशिश कर रहे थे. आप जानते हैं कि इस तरह की चीजें भारत के प्रति हमारे दिल में जो प्यार और स्नेह है, उसे रोकती हैं.”
लटनिक ने ये भी कहा कि व्यापार समझौते के लिए सही दृष्टिकोण ये है कि सब कुछ सामने रखा जाए और उसे समझदारी और सोच-समझकर निपटाया जाए. उन्होंने कहा,
"हो सकता है कि कुछ उत्पादों के लिए कोटा हो, हो सकता है कि कुछ उत्पादों के लिए सीमाएं हों, हो सकता है कि कुछ उत्पादों के लिए आप कुछ खास तरीके अपनाते हों. (लेकिन) दोनों देशों के बीच एक ऐसा समझौता तैयार कर सकते हैं जो समझदारी भरा हो."
लटनिक ने व्यापार और टैरिफ मुद्दे को वैश्विक परिप्रेक्ष्य से देखने के बजाय इसके लिए द्विपक्षीय चर्चा के महत्व पर जोर दिया.
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