सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि के खिलाफ एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया. आरएन रवि ने तमिलनाडु विधानसभा से पारित 10 विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेज दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने इसे ‘अवैध और गलत’ करार दिया है. कोर्ट ने साफ कहा कि गवर्नर पारित विधेयकों को लेकर नहीं बैठ सकते. ये मामला तमिलनाडु सरकार और राज्यपाल के बीच लंबे समय से चले आ रहे टकराव का हिस्सा है. राज्यपाल पर विधेयकों को मंजूरी देने में देरी करने का आरोप था. कोर्ट ने फैसले में स्पष्ट संवैधानिक समय सीमा भी निर्धारित की. इसी समय के अंदर राज्यपालों को राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर फैसला लेना होगा.
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राज्य के CM एमके स्टालिन ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ऐतिहासिक बताया. कहा कि ये सिर्फ तमिलनाडु नहीं, बल्कि पूरे देश की राज्य सरकारों की जीत है.

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के गवर्नर की लंबे समय से निष्क्रियता को संविधान के तहत “गैर-सद्भावनापूर्ण” और अवैध करार दिया. कोर्ट ने ये भी कहा कि राज्यपाल के पास विधेयकों को अनिश्चित काल तक रोके रहने का अधिकार नहीं है. कोर्ट ने ये भी कहा कि गवर्नरों को संविधान के आर्टिकल 200 में निर्धारित ढांचे के भीतर काम करना चाहिए. राज्यपाल को तीन महीने के भीतर निर्णय लेना चाहिए कि विधेयक को मंजूरी दी जाए, उसे सदन में वापस भेजा जाए या राष्ट्रपति को भेजा जाए.
राज्यपाल आरएन रवि के आचरण की कड़ी आलोचना करते हुए जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने कहा कि उनके कार्य ‘सद्भावनापूर्ण नहीं’ थे और संवैधानिक सिद्धांतों के ‘विरुद्ध’ थे. बेंच ने कहा,
"वर्षों तक कार्रवाई में देरी करने के बाद विधेयक को राष्ट्रपति के फैसले के लिए रिजर्व करने का कदम कानूनी रूप से गलत था और इसे रद्द किया जाना चाहिए."
कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि बिलों की अनुमति को रोकना कोई स्वतंत्र या अनिश्चित विकल्प नहीं है. भारतीय संविधान में पॉकेट वीटो या पूर्ण वीटो का कॉन्सेप्ट मौजूद नहीं हैं. इसमें कोई भी देरी संवैधानिक उल्लंघन के बराबर है. सुप्रीम कोर्ट ने संविधान की शपथ का जिक्र करते हुए कहा,
“राज्यपाल को एक दोस्त, दार्शनिक और राह दिखाने वाले की तरह होना चाहिए. आप संविधान की शपथ लेते हैं. आपको किसी राजनीतिक दल की तरफ से संचालित नहीं होना चाहिए. आपको उत्प्रेरक बनना चाहिए, अवरोधक नहीं. राज्यपाल को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कोई बाधा पैदा न हो.”
बता दें कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) में काम कर चुके पूर्व IPS अधिकारी आरएन रवि ने 2021 में तमिलनाडु के राज्यपाल का पद संभाला था.
सीएम ने ऐतिहासिक बतायातमिलनाडु के CM एमके स्टालिन ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ऐतिहासिक बताया. उन्होंने कहा,
“ये सिर्फ तमिलनाडु नहीं, बल्कि पूरे देश की राज्य सरकारों की जीत है. अब ये बिल राज्यपाल की मंजूरी वाले माने जाएंगे.”
स्टालिन ने 8 अप्रैल को विधानसभा में कहा कि विधानसभा में पारित कई विधेयकों को राज्यपाल ने लौटा दिया था. इन्हें दोबारा पारित कर राज्यपाल को भेजा गया, लेकिन उन्होंने न मंजूरी दी और न ही कोई कारण बताया. सीएम ने कहा कि संविधान के अनुसार, जब कोई बिल दोबारा पारित हो जाता है तो राज्यपाल को उस पर मंजूरी देनी होती है. लेकिन उन्होंने जानबूझकर देरी की.
गवर्नर आरएन रवि ने तमिलनाडु सरकार की ओर से पारित 12 में से 10 बिलों को 13 नवंबर, 2023 को बिना कारण बताए विधानसभा में लौटा दिया था. साथ ही उन्होंने 2 बिलों को राष्ट्रपति के पास भेज दिया था. इसके बाद 18 नवंबर को तमिलनाडु विधानसभा के विशेष सत्र में इन 10 बिलों को फिर से पारित किया गया और गवर्नर की मंजूरी के लिए गवर्नर सेक्रेटेरिएट भेजा गया.
बिल पर साइन न करने का विवाद नवंबर 2023 में भी सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच था. सुप्रीम कोर्ट में लगी याचिका में राज्य सरकार ने मांग की कि राज्यपाल इन सभी बिलों पर जल्द से जल्द सहमति दें. याचिका में कहा गया है कि राज्यपाल का ये रवैया गैरकानूनी है और इन बिलों को लटकाने, अटकाने से लोकतंत्र की हार होती है. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई में कहा था कि मुद्दा सुलझाने के लिए गवर्नर को सीएम के एक साथ बैठकर चर्चा करनी चाहिए.
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