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'बालिग महिला शादी का झांसा देकर रेप का आरोप नहीं लगा सकती', कलकत्ता हाई कोर्ट के फैसले की वजह जान लीजिए

Calcutta High Court ने रेप को लेकर निचली अदालत के 13 साल पुराने एक फैसले को पलट दिया. High Court ने अपने जजमेंट में कहा कि शादी के वादे के तहत कोई पुरूष किसी महिला की सहमति से यौन संबंध बनाता है. और फिर इससे मुकर जाता है. तो सिर्फ इस आधार पर उसे रेप का दोषी नहीं साबित किया जा सकता.

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कलकत्ता हाईकोर्ट ने 13 साल पुराने फैसले को पलट दिया. (इंडिया टुडे)

कलकत्ता हाईकोर्ट (Calcutta Highcourt) ने रेप के एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि सहमति से यौन संबंध बनाने के बाद एक महिला का ये दावा कि उसका पार्टनर उससे शादी का वादा करके मुकर गया. उसके पार्टनर को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं है. कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति के खिलाफ 13 साल पुराने रेप के मामले की सुनवाई करते हुए ये जजमेंट दिया. 

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस अनन्या बंद्योपाध्याय ने 5 नवंबर को दिए फैसले में कहा, 

यौन संबंधों के लिए सहमति देने वाले मामले में उचित सबूत के बिना अपीलकर्ता द्वारा पीड़िता की ओर से प्रग्नेंट होने का 'केवल दावा' किसी व्यक्ति को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं है.

हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने अपने फैसले में इसका भी जिक्र किया कि शिकायतकर्ता ने स्पष्ट रूप से कहा था कि उसने स्वेच्छा से बिना किसी प्रतिरोध के उस व्यक्ति के साथ यौन संबंध बनाए. जिस पर उसने बाद में रेप का आरोप लगाया. जब कथित तौर पर उसने पीड़िता से शादी करने से इनकार कर दिया. 
12 जुलाई, 2011 को बांकुरा के एडिशनल सेशन कोर्ट ने IPC की धारा 376 (रेप) के तहत दोषी ठहराते हुए आरोपी को सात साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई थी.

वॉट्सऐप चैट के आधार पर आरोपी बरी

दिल्ली की एक कोर्ट ने 7 नवंबर को एक रेप के आरोपी व्यक्ति को वॉट्सऐप चैट के आधार पर बरी कर दिया. कोर्ट ने कहा कि महिला और आरोपी पुरुष के बीच घटना के बाद की चैट जबरन यौन संबंधों के आरोप से पूरी तरह से अलग है.

कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि आरोपी और महिला के बीच वॉट्सऐप चैट बहुत व्यक्तिगत और अंतरंग थी. और महिला द्वारा लगाए गए आरोपों से बिलकुल अलग है. कोर्ट के अनुसार घटना के तुरंत बाद महिला द्वारा भेजा गया संदेश 'कुछ मत सोचना' था.

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कोर्ट ने कहा कि चैट से पता चलता है कि घटना के तुरंत बाद इस तरह की वॉट्सऐप चैट असंभव हैं. और यह जबरन यौन संबंध के अभियोजन पक्ष के मामले को पूरी तरह से खारिज कर देती है.

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