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'पति की मंजूरी बिना मायकेवालों और दोस्तों को घर पर रखना क्रूरता', ये कहकर कोर्ट ने तलाक मंजूर कर लिया

Calcutta High Court का कहना है, 'पति के सरकारी आवास में उसकी आपत्ति और असहजता के बावजूद, महिला ने अपनी दोस्त और परिवार के सदस्यों को रखा. कभी-कभी तो पति-पत्नी के घर पर ना होने के बावजूद ये लोग वहां रहते थे. ये क्रूरता के व्यापक दायरे में आएगा.'

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कलकत्ता हाई कोर्ट ने तलाक की मंजूरी दी है. (फ़ाइल फ़ोटो - इंडिया टुडे)

कलकत्ता हाई कोर्ट (Calcutta High Court) ने पति की याचिका पर सुनवाई करते हुए, 'क्रूरता के आधार पर' तलाक मंजूर कर लिया. याचिका में पति ने कहा था कि पत्नी ने अपनी दोस्त और अपने परिवार को उस पर थोपा और वैवाहिक क्रूरता (Matrimonial Cruelty) का झूठा मामला दर्ज कराया है. कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई की और तलाक का फ़ैसला सुनाया है. साथ ही, ट्रायल कोर्ट के फ़ैसले को त्रुटिपूर्ण करार दिया.

जस्टिस सब्यसाची भट्टाचार्च और जस्टिस उदय कुमार ने मामले की सुनवाई की. सुनवाई के दौरान जजों ने कहा कि पत्नी की तरफ़ से पति पर क्रूरता के पर्याप्त सबूत मौजूद हैं. ऐसे में तलाक देने को सही ठहराया जाता है. 19 दिसंबर को दिए फ़ैसले में कोर्ट कई अहम कॉमेंट्स किए (आदेश बाद में जारी किया गया). पहले ये कॉमेंट्स पढ़ लीजिए, फिर आपको पूरा मामला समझाते हैं. द हिंदू की ख़बर के मुताबिक़, कोर्ट ने कहा,

- पति के सरकारी आवास में उसकी आपत्ति और असहजता के बावजूद, महिला ने अपनी दोस्त और परिवार के सदस्यों को वहां रखा. ये बात रिकॉर्ड से भी प्रमाणित होती है. कभी-कभी तो पति-पत्नी के वहां ना होने पर भी ये लोग वहां रहते थे. ये क्रूरता के व्यापक दायरे में आएगा.

पूर्वी मिदनापुर ज़िले के कोलाघाट में पति का सरकारी आवास है.

- पत्नी ने काफ़ी समय पहले पति के साथ वैवाहिक जीवन जीने से मना कर दिया था. दोनों के बीच लंबे समय तक अलगाव रहा. ये बताता है कि इस वैवाहिक बंधन (Matrimonial Bond) में अब सुधार संभव नहीं है.

- विवाह के दौरान पत्नी ने कोई शिकायत नहीं की थी. वो 2005 से 2008 तक तीन सालों तक बिना किसी शिकायत के पति के साथ रही थी. शादी के दौरान पत्नी की मां और सहेली, उसके साथ रहती थीं. ये सभी बातें संकेत करती हैं कि पति के ख़िलाफ़ बाद में लगाए गए आरोप महज विचार ही थे, इसमें बहुत लॉजिक नहीं है.

- पति के ख़िलाफ़ IPC की धारा 498(A) के तहत जो मामला दर्ज कराया गया, उसमें किसी भी तरह का विवरण नहीं था. ये आरोप पूरी तरह से निराधार और अप्रमाणित हैं. पति के ख़िलाफ़ लगाए गए आरोप (झूठे) इतने क्रूर हैं कि पति के लिए अपनी पत्नी के साथ रहना असंभव हो गया है.

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मामला क्या है?

दोनों की शादी 15 दिसंबर, 2005 को हुई थी. पत्नी अपना ज़्यादातर समय अपनी दोस्त के साथ बिताती थी. याचिकाकर्ता (पति) के वकील का कहना था कि ये अपने आप में एक क्रूरता है. बता दें, पति ने 25 सितंबर, 2008 को तलाक की याचिता दायर की थी. उसी साल पत्नी ने भी 27 अक्टूबर को पति और उसके परिवार के ख़िलाफ़ मामला दर्ज कराया.

लाइव लॉ की ख़बर के मुताबिक़, नवद्वीप थाने -जिसके अंतर्गत पति का पैतृक निवास आता है- में IPC की धारा 498(A) (किसी विवाहित महिला को आपराधिक इरादे से बहला-फुसलाकर ले जाना या हिरासत में लेना) के तहत मामला दर्ज किया गया. मामले में बाद में एक क्रिमिनल कोर्ट ने पत्नी के आरोपों से पति और उसके परिवार को बरी कर दिया था.

पति के वकील ने इस मामले को भी कलकत्ता हाई कोर्ट में रखा. उन्होंने तर्क दिया कि शिकायत के समय और बरी किए जाने से पता चलता है कि आरोप झूठे थे. वकील का तर्क था कि इस तरह का ‘उत्पीड़न का निराधार आरोप’ भी क्रूरता है.

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