पश्चिमी जगत में ब्रिटेन को ‘शरिया कोर्ट की राजधानी’ बताया जा रहा है. पिछले चार दशकों से यहां शरिया कोर्ट की संख्या लगातार बढ़ रही है. ये अदालतें यूरोप और उत्तरी अमेरिका के मुसलमानों पर अपना गहरा प्रभाव डाल रही हैं. ब्रिटेन की राष्ट्रीय सेक्युलर सोसायटी ने इस समानांतर कानूनी व्यवस्था के बढ़ते प्रभुत्व को लेकर चिंता जताई है.
ब्रिटेन को क्यों कहा जा रहा 'शरिया कोर्ट की राजधानी'?
ब्रिटेन में पहले शरिया कोर्ट की स्थापना साल 1982 में हुई थी. लेकिन यह संख्या बढ़कर अब 85 हो गई है. ब्रिटेन के अखबार ‘द टाइम्स’ की रिपोर्ट के मुताबिक, इन अदालतों पर आरोप है कि ये पारिवारिक मसलों से लेकर निकाह तक के मामलों में अपने फैसले दे रही हैं और महिला विरोधी विचारों को भी बढ़ावा दे रही हैं.
ब्रिटेन में पहले शरिया कोर्ट की स्थापना साल 1982 में हुई थी. लेकिन यह संख्या बढ़कर अब 85 हो गई है. ब्रिटेन के अखबार ‘द टाइम्स’ की रिपोर्ट के मुताबिक, इन अदालतों पर आरोप है कि ये पारिवारिक मसलों से लेकर निकाह तक के मामलों में अपने फैसले दे रही हैं और महिला विरोधी विचारों को भी बढ़ावा दे रही हैं.
यही नहीं, शरिया कानून को लेकर एक मोबाइल ऐप भी है जिस पर इंग्लैंड और वेल्स में रहने वाले मुसलमान अपने क्षेत्र के लिए इस्लामी कानून बना सकते हैं. इस एप्लिकेशन को शरिया अदालत ने भी हरी झंडी दे दी है. रिपोर्ट के मुताबिक ऐप के जरिए पुरुष चुन सुकते हैं कि उनकी कितनी पत्नियां होंगी.
रिपोर्ट कहती है कि इन अदालतों में इस्लामिक विद्वानों के पैनल होते हैं जिनमें ज्यादातर मर्द हैं. यह एक प्रकार के अनौपचारिक निकायों की तरह काम करते हैं जहां तलाक और शादी से जुड़े मामलों पर धार्मिक फैसले जारी किए जाते हैं. एक डाटा के मुताबिक, ब्रिटेन में करीब एक लाख शादियां गैरपंजीकृत हैं. यानी इन्हें सिविल अथॉरिटी ने मान्यता नहीं दी है.
धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देने वाले संगठन नेशनल सेक्युलर सोसायटी ने ब्रिटेन में अपनी पैठ बना रहे इस ‘समानांतर कानूनी सिस्टम’ को लेकर अपनी चिंताएं जाहिर की हैं. सोसायटी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी स्टीफन इवांस ने ऐसी अदालतों के खिलाफ चेतावनी जारी की है. उन्होंने कहा,
“ये अदालतें हर नागरिक के लिए एक कानून के सिद्धांत को कमजोर करती हैं और इसका असर खासकर महिलाओं और बच्चों के अधिकारों पर पड़ता है.”
उन्होंने आगे कहा,
“यह ध्यान रहे कि शरिया अदालतें का वजूद केवल इसलिए है क्योंकि मुस्लिम महिलाओं को धार्मिक तलाक लेने के लिए इनकी जरूरत पड़ती है. जबकि मुस्लिम पुरुषों को इसकी कोई जरूरत नहीं क्योंकि वे अपनी पत्नी को बिना इन अदालतों से अनुमति लिए तलाक दे सकते हैं."
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शरिया क्या है?शरिया इस्लाम की कानूनी व्यवस्था है. इसे इस्लामिक किताबें कुरान, हदीस और इस्लामिक विद्वानों के फतवों से मिलकर तैयार किया गया है. शरिया मुसलमानों को जीवन-जीने के तौर-तरीकों का कानूनी रास्ता बताता है. प्रोफेसर मोना सिद्दीकी की मानें तो शरिया 7वीं शताब्दी से 13वीं शताब्दी तक पैगंबर मोहम्मद के समय के इस्लामी विद्वानों की राय पर आधारित ‘न्यायशास्त्र’ है.
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