महाराष्ट्र सरकार ने अडानी पावर (Adani Power) को 6,600 मेगावाट रिन्यूएबल और थर्मल पावर इलेक्ट्रिसिटी की सप्लाई का कॉन्ट्रैक्ट दिया था. बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay Highcourt) में याचिका दायर कर इस कॉन्ट्रैक्ट को रद्द करने की मांग की गई थी. 16 दिसंबर को हाईकोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया है. साथ ही बॉम्बे हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता पर 'निराधार' याचिका दायर करने के लिए 50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया. कोर्ट ने आदेश दिया कि छह सप्ताह के भीतर जुर्माने की राशि महाराष्ट्र राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के पास जमा करानी होगी.
अडानी पावर के खिलाफ याचिका दायर की थी, हाई कोर्ट ने खारिज तो की ही, 50 हजार का जुर्माना भी ठोक दिया
Bombay High court ने Adani Power को महाराष्ट्र सरकार से मिले कॉन्ट्रैक्ट के खिलाफ दायर की गई याचिका खारिज कर दी. हाई कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता टेंडर प्रक्रिया का हिस्सा नहीं थे. उनके पास भ्रष्टाचार और गलत तरीके से टेंडर दिए जाने का कोई सबूत नहीं है.
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, श्रीराज नागेश्वर आप्पुरवार ने अडानी पावर के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. उन्होंने आरोप लगाया कि यह कॉन्ट्रैक्ट संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उचित दर पर बिजली प्राप्त करने के नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है.
चीफ जस्टिस डीके उपाध्याय और जस्टिस अमित बोरकर की बेंच ने याचिका को बेहद गलत और पूरी तरह से निराधार दावों पर आधारित बताया. कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता टेंडर प्रक्रिया का हिस्सा नहीं थे. और उनके पास भ्रष्टाचार और गलत तरीके से टेंडर दिए जाने का कोई सबूत नहीं है. बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि कुछ अस्पष्ट और निराधार दावे किए गए हैं. जिनमें कॉन्ट्रैक्ट के आवंटन को सरकारी अथॉरिटीज से जुड़ा घोटाला बताया गया है.
कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने 'लापरवाह' बयान दिया है. और आरोपों के समर्थन में सबूत उपलब्ध कराने में असफल रहा है. जिसमें महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री के खिलाफ आरोप भी शामिल हैं. हाईकोर्ट की बेंच ने आगे कहा कि यहां तक कि राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री के खिलाफ भी बिना किसी सहायक सामग्री के भ्रष्ट आचरण और कॉन्ट्रैक्ट देने में प्रतिवादी 2 (अडानी ) के साथ मिलीभगत का आरोप लगाए गए हैं.
याचिकाकर्ता ने संयुक्त राज्य अमेरिका की डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के एक दस्तावेज का रेफरेंस दिया था. कोर्ट ने कहा कि यह दस्तावेज अमेरिका के किसी डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में दायर किए गए आरोपों से संबंधित मालूम होता है. बेंच ने आगे कहा कि दस्तावेज में इसकी वास्तविक प्रकृति स्पष्ट नहीं की गई है. और इसे आधिकारिक हलफनामे के रूप में प्रस्तुत नहीं किया गया है. कोर्ट ने दस्तावेज को अपर्याप्त मानते हुए खारिज कर दिया.
कोर्ट ने जनहित याचिका (PIL) पर सुप्रीम कोर्ट के उदाहरणों का हवाला देते हुए कहा कि जहां कोर्ट को सार्वजनिक हितों पर आधारित वास्तविक जनहित याचिकाओं पर विचार करना चाहिए. वहीं उन्हें तुच्छ याचिकाओं से बचने की सावधानी भी बरतनी चाहिए.
बेंच ने कहा कि इस याचिका की बारीकी से जांच करने पर इसमें आरोपों को पुष्ट करने वाला या समर्थन करने वाला कोई भी तथ्य नहीं है. बल्कि इसमें केवल निराधार और अस्पष्ट आरोप हैं. जो हमारे विचार से हमें इन पर विचार करने के लिए प्रेरित नहीं करते हैं. इसलिए कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर जुर्माना लगाते हुए याचिका खारिज कर दिया.
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