बोकारो स्टील प्लांट में प्रदर्शन के दौरान जान गंवाने वाले इंजीनियर के परिवार ने सरकार से इंसाफ मांगा है. 3 अप्रैल को बोकारो स्टील प्लांट में विस्थापित परिवारों के युवाओं को नौकरी देने की मांग को लेकर प्रदर्शन चल रहा था. आरोप है कि प्रदर्शनकारियों ने बैरिकेड्स हटा दिए थे, जिसकी वजह से सेंट्रल इंडस्ट्रियल सिक्योरिटी फोर्स (CISF) को लाठीचार्ज करना पड़ा. इस दौरान प्रदर्शन में शामिल 23 साल के प्रेम प्रसाद महतो की मौत हो गई. परिवार का आरोप है कि CISF की लाठीचार्ज ने महतो की जान ली है.
'CISF ने ली मेरे बेटे की जान...', बोकारो स्टील प्लांट में नौकरी की मांग और इंजीनियर की मौत, पूरा मामला जानिए
Bokaro Steel Plant में विस्थापितों को नौकरी देने की मांग कर रहे प्रदर्शनकारियों पर CISF ने लाठीचार्ज किया था. इसमें एक युवक की मौत हो गई थी. मृतक के परिवार ने इंसाफ और स्थायी नौकरी की मांग की है.

प्रेम प्रसाद महतो एक बीटेक ग्रेजुएट थे और जल्द ही उनकी शादी होने वाली थी. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रदर्शन के दौरान कथित रूप से CISF की लाठीचार्ज में उनके सिर पर चोट लगने से उनकी जान चली गई. प्रेम के पिता वीरू महतो का कहना है,
‘मेरे बेटे की मौत के लिए जिम्मेदार CISF जवानों और अधिकारियों को गिरफ्तार करना चाहिए और उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए. हमने अपने बेटे को एक लंबे संघर्ष में खो दिया है.’
इस मामले में बोकारो के डिप्टी कमिश्नर विजय जाधव ने तीन सदस्यीय जांच कमेटी बनाई है. इसके अलावा बोकारो स्टील लिमिटेड (BSL) के चीफ जनरल मैनेजर हर मोहन झा को गिरफ्तार कर लिया गया है. महतो के परिवार ने जिला प्रशासन के सामने अपनी मांगे रखी हैं, जिसमें परिवार के एक सदस्य को स्थायी नौकरी की मांग भी शामिल है. हालांकि, डिप्टी कमिश्नर ने कहा कि स्थायी नौकरी नहीं दी जा सकती है, क्योंकि महतो एक स्थाई कर्मचारी नहीं थे. ऐसे मामलों में केंद्र और राज्य सरकार को हस्तक्षेप करना होगा.
प्रेम महतो ने बेंगलुरु से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी और ग्रेजुएट एप्टिट्यूड टेस्ट इन इंजीनियरिंग (GATE) की तैयारी कर रहे थे. वो भी नौकरी मिलने की उम्मीद लेकर प्रदर्शन में शामिल हुए थे. विरोध प्रदर्शन में कथित तौर पर पंद्रह अन्य लोग घायल हुए, जिनमें से एक की हालत गंभीर है. विस्थापित अप्रेंटिस संघ (VAS) के नेतृत्व में यह विरोध प्रदर्शन हो रहा था. इसका मकसद उन परिवारों के लिए नौकरियों की मांग करना है, जो 60 के दशक में पहली बार बोकारो स्टील प्लांट लगने के समय विस्थापित हुए थे.
प्रेम के साथियों में से एक शंभुनाथ महतो ने बताया,
'मुझे घसीटा गया और पीटा गया. मेरी पीठ पर 100 से ज्यादा लाठियां पड़ीं और हाथ की दो उंगलियां भी घायल हो गईं.' इस घटना के बाद पूरा शहर 24 घंटे का बंद रहा. जिला प्रशासन ने भारतीय न्याय सहिंता (BNS) की धारा 163 लगा दी, जिसके तहत पांच या उससे ज्यादा लोग एक साथ कहीं इकट्ठा नहीं हो सकते हैं.
लाठीचार्ज पर DIG, CISF दिग्विजय कुमार सिंह ने बताया था,
प्रदर्शनकारी बिना अनुमति के प्रदर्शन कर रहे थे और हमारे लोगों पर पत्थरबाजी कर रहे थे. हमने उन्हें भगाने की कोशिश की. उसी क्रम में कुछ लोग गिरे हैं. जिससे एक व्यक्ति की मृत्यु हो गई. हमने उसे अस्पताल भी पहुंचाया था. हमारे किसी भी जवान की मारने-पीटने में कोई भूमिका नहीं है. हमारे 4 लोग घायल हुए हैं. हमारे फायर टेंडर के शीशे को भी प्रदर्शनकारियों ने तोड़ दिया. प्रदर्शनकारी बहुत उग्र हो गए थे.
1965 में भारत सरकार ने सोवियत यूनियन के साथ मिलकर बोकारो स्टील प्लांट का प्लान बनाया था. इसे स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया (SAIL) के तहत एक पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग (PSU) के तौर पर तैयार किया जाना था. 1972 में इस प्लांट ने काम करना शुरू किया है, और बाद में इसका SAIL के साथ विलय हो गया.
VAS के एक सदस्य सहदेव साव के मुताबिक, 1967-68 में बोकारो स्टील प्लांट के लिए 34,000 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया गया था. तब सरकार ने वादा किया था कि विस्थापित परिवारों के 20,000 युवाओं को नौकरी दी जाएगी. साव ने दावा किया कि यह वादा कभी पूरी तरह पूरा नहीं हुआ. 2016 में प्रदर्शन हुए, तब सरकार ने 4,328 युवाओं को नौकरी देने का आश्वासन दिया. एक प्रदर्शनकारी ने दावा किया कि 2016-2022 के बीच तक केवल 1,500 को ही चरणबद्ध तरीके से अप्रेंटिसशिप दी गई.
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