बिहार के बोधगया में महाबोधि वृक्ष (Mahabodhi Tree) है. कहते हैं जिस वृक्ष के नीचे भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था, यह उसका वंशज है. इस प्राचीन वृक्ष का बौद्ध धर्म में बहुत महत्व है. यही कारण है कि लोहे के खंभे लगाकर और तमाम अन्य उपायों से इसकी सुरक्षा व्यवस्था की गई है. इतना ही नहीं, साल भर में चार बार इस वृक्ष की जांच की जाती है. इसी कड़ी में बीते दिनों जब वृक्ष की जांच की गई तो वैज्ञानिकों को चौंकाने वाली चीज दिखी. बोधि वृक्ष के तने से तरल पदार्थ निकल रहा था. पेड़ की जांच के लिए वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआई) देहरादून के वैज्ञानिक बुलाए गए। डॉ. संतन भरथ्वाल और डॉ. शैलेश पांडे की टीम ने पेड़ की सघन जांच की.
गया के प्राचीन महाबोधि वृक्ष से निकल रहा तरल पदार्थ क्या है, वैज्ञानिकों ने सब बता दिया
Mahabodhi tree in Gaya: बिहार के बोधगया जिले में महाबोधि वृक्ष से तरल पदार्थ निकलने की खबर है. इसके बाद वैज्ञानिकों ने वृक्ष की जांच की और बताया कि टेंशन की कोई बात नहीं है. वृक्ष स्वस्थ है और उसकी पत्तियां हरी और तनावमुक्त हैं.

वैज्ञानिकों ने कन्फर्म किया कि पेड़ के तने से तरल पदार्थ निकल रहा है लेकिन चिंता की कोई बात नहीं है. बहुत पुराने पेड़ों के साथ ऐसा होता है. ये उनकी स्वाभाविक प्रक्रिया है. पेड़ को इस तरल पदार्थ से किसी तरह का खतरा नहीं है. वैज्ञानिकों ने आगे बताया कि प्राचीन बोधिवृक्ष एकदम स्वस्थ है. पेड़ की पत्तियां हरी हैं. तनावमुक्त हैं. इनमें किसी तरह का संक्रमण नहीं मिला है. बौद्ध भिक्षु डॉ. मनोज, डॉ. महाश्वेता महारथी, डॉ. अरविंद सिंह और किरण लामा की मौजूदगी में ये जांच की गई.
जांच के नतीजों में जब वृक्ष को स्वस्थ बताया गया, तब जाकर लोगों की सांस में सांस आई. पेड़ की जांच करने वाले वैज्ञानिक डॉ. शैलेश पांडेय ने ईटीवी भारत को बताया कि बोधिवृक्ष में कोई अन्य समस्या नहीं मिली. एहतियाती उपायों के तौर पर वृक्ष पर हल्का उपचार किया गया है. वृक्ष बहुत स्वस्थ है और उसके पत्ते भी बहुत स्वस्थ हैं. खास बात ये है कि उसके पत्ते हरे हैं. बोधि वृक्ष की बारीकी से जांच हुई है. ये जांच रुटीन जांच में से एक है.
ये 528 ईसापूर्व की बात है. बोधगया में पीपल के पेड़ के नीचे शाक्यवंश के राजकुमार सिद्धार्थ को बोधि प्राप्त हुई थी. इसके बाद वह गौतम बुद्ध कहे गए. बौद्ध धर्म में इस पेड़ को बहुत पवित्र माना गया. बौद्ध धर्म के विरोधियों ने कई बार इसे नष्ट करने की कोशिश की. इसकी एक शाखा को श्रीलंका में लगाया गया था. तूफान की वजह से जब मूल वृक्ष नष्ट हो गया, तब श्रीलंका के वृक्ष की एक शाखा को फिर से बोधगया में लगाया गया. ये वही वृक्ष है, जो सदियों से इस जगह पर मौजूद है. इसे बचाए रखने के लिए तमाम जतन किए जाते हैं. पेड़ की एक शाखा पर लोहे के स्तंभ लगाए गए हैं. साल में 4 बार इसकी जांच की जाती है. साथ ही पेड़ को तूफान से बचाने के लिए भी कई सारे उपाय किए गए हैं.
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