जब बात बिहार की हो, नाम सिर्फ नीतीश कुमार (Nitish Kumar) का हो. यह एक पोस्ट का कैप्शन है. जिसे 22 दिसंबर की शाम जदयू के आधिकारिक हैंडल से पोस्ट किया गया. लेकिन बिहार की राजनीति को समझने वाले जानते हैं कि यह महज एक कैप्शन भर नहीं है. ये एक स्टेटमेंट है. जो लगभग पिछले दो दशकों से चाहे अनचाहे बिहार की राजनीतिक मुस्तक़बिल पर चस्पा है. और इस कैप्शन में विरोधियों से ज्यादा अपने सहयोगियों के लिए संदेश छिपा है. संदेश साफ है कि नीतीश कुमार को माइनस कर अभी बिहार में कोई भी समीकरण बनाना संभव नहीं है. और नीतीश कुमार के लिए अब भी सारे विकल्प खुले हुए हैं.
'बात बिहार की तो सिर्फ नीतीश', JDU का ये संदेश अमित शाह के लिए है?
बिहार के सीएम फेस को लेकर गृह मंत्री Amit Shah के एक बयान के बाद Nitish Kumar नाराज बताए जा रहे हैं. अमित शाह के इस बयान के बाद से दिल्ली से लेकर पटना तक राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई है.
अब सवाल है कि आखिर मामला यहां तक क्यों पहुंचा कि जदयू (JDU) को ये स्टेटमेंट जारी करना पड़ा. इसे समझने के लिए पिछले कुछ दिनों के राजनीतिक बयानबाजियों और घटनाक्रम को समझना होगा. इसकी शुरुआत गृह मंत्री अमित शाह के एक बयान से हुई. एजेंडा आजतक में अमित शाह से पूछा गया क्या नीतीश कुमार ही 2025 में एनडीए का नेतृत्व करेंगे. इसके जवाब में गृह मंत्री ने कहा,
इस तरह के फैसलों के लिए संसदीय बोर्ड है. चैनलों पर पॉलिसी वाले फैसले नहीं होते. नीतीश जी की पार्टी का भी अधिकार है. NDA मिलकर फैसला लेगा.
इस इंटरव्यू के बाद से चर्चा होने लगी कि अमित शाह ने स्पष्ट तौर पर नीतीश कुमार का नाम नहीं लिया. और बिहार की राजनीतिक फिजा में महाराष्ट्र फॉर्मूले की बात चलने लगी. अगर बीजेपी की 2025 में अधिक सीटें आईं तो वो अपना सीएम बना सकती है. और एकनाथ शिंदे वाले फॉर्मूले की चर्चा होने लगी. इन अटकलबाजियों को हवा तब मिली जब इस अमित शाह के बयान के बाद नीतीश कुमार की तबीयत खराब होने की खबर आई. और उनके सभी कार्यक्रम रद्द हो गए. सीएम को बिजनेस कनेक्ट 2024 में शामिल होना था. जहां बीजेपी के तमाम नेता मौजूद थे. लेकिन नीतीश कुमार वहां नहीं पहुंचे. नीतीश कुमार की तबीयत खराब होने से ठीक पहले उनको अरविंद केजरीवाल की चिट्ठी भी मिली. इसमें बाबा साहेब आंबेडकर विवाद को लेकर केजरीवाल ने नीतीश कुमार से केंद्र सरकार से अपना समर्थन वापस लेने की बात की थी.
खरमास का ‘मौन’इस बीच नीतीश कुमार ने मौन साध लिया है. उनकी ओर से अब तक इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है. एक शेर है, ‘हजारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी’. नीतीश कुमार की खामोशी ने सच में हजारों सवालों को जन्म दे दिया है. राजनीतिक विश्लेषक परेशान हैं कि आखिर नीतीश कुमार के मन में क्या चल रहा है? नीतीश कुमार जब-जब अस्वस्थ या मौन होते हैं. सूबे की सियासत करवट बदल लेती है. यूं भी अभी खरमास का महीना चल रहा है. और इस महीने में नीतीश कुमार का राजनीतिक चित्त अस्थिर हो जाता है. पिछले साल खरमास में ही उन्होंने पाला बदल कर इंडिया ब्लॉक से एनडीए का रुख करने की स्क्रिप्ट लिखी थी. और ये कोई पहला वाकया नहीं था. इसके पहले भी खरमास बिहार में राजनीतिक रूप से हलचल भरा रहा है.
बीजेपी की सफाई आ गईअमित शाह के बयान के बाद तुरंत बिहार बीजेपी अध्यक्ष दिलीप जायसवाल की सफाई आ गई. उन्होंने कहा कि अमित शाह यह बताने की कोशिश कर रहे थे कि वह उस पार्टी के कार्यकर्ता हैं जिसमें बड़े फैसले संसदीय बोर्ड लेती है. इसके बाद उन्होंने कहा कि 2025 के चुनावों नीतीश कुमार एनडीए का नेतृत्व करेंगे. इसमें कोई दो राय नहीं है. दिल्ली में बीजेपी कोर कमेटी की बैठक में भाग लेने दिल्ली गए उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने भी बताया कि 2025 का चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा.
इसके अलावा पटना में एनडीए के सभी प्रदेश अध्यक्षों की आपात बैठक हुई. जिसमें सभी अध्यक्षों ने बयान दिया कि नीतीश ही नेतृत्व करेंगे. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इस बात को पुख्ता करने के लिए एनडीए ने नीतीश के नेतृत्व में पूरे राज्य में एक विस्तृत अभियान की घोषणा की है. इस योजना के मुताबिक नीतीश कुमार राज्य के हर जिले में एनडीए की संयुक्त बैठकों को संबोधित करेंगे. जिसकी शुरुआत 15 जनवरी को चंपारण के बगहा में एक बैठक से होगी. इसके बाद वे पूर्वी चंपारण, सीतामढ़ी, शिवहर और मुजफ्फरपुर जाएंगे. और 22 जनवरी को वैशाली में एक बैठक के साथ इस अभियान के पहले चरण का समापण करेंगे.
इंडिया टुडे से जुड़े पुष्यमित्र बताते हैं,
दबाव की रणनीतिअमित शाह के बयान के बाद एनडीए की बैठक बुलाई गई. और ये बैठक किसी बीजेपी नेता या नीतीश कुमार के घर की जगह जदयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा के घर पर बुलाई गई. जिनकी राजनीतिक हैसियत किसी से छुपी नहीं है. इस बैठक के माध्यम से नीतीश कुमार बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व तक अपना मैसेज देने में सफल रहे हैं.
नाराजगी की खबरों के बीच 23 दिसंबर को नीतीश कुमार ने अपनी ‘प्रगति यात्रा’ की शुरुआत कर दी है. इस यात्रा के विजुअल्स पर ध्यान दें तो नीतीश कुमार कहीं से भी बीमार नजर नहीं आ रहे हैं. जिसके बाद ये सवाल उठने लगे हैं कि ये कहीं नीतीश कुमार की प्रेशर पॉलिटिक्स तो नहीं है जिसके वो माहिर खिलाड़ी रहे हैं. वरिष्ठ पत्रकार मनोज मुकुल बताते हैं,
2020 के मुकाबले परिस्थितियां नीतीश के फेवर मेंइस बार लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार का स्ट्राइक रेट बीजेपी से बेहतर रहा है. और विधानसभा सीटों के लिहाज से भी उनकी बीजेपी पर बढ़त रही है. इसलिए नीतीश कुमार सीट बंटवारे में पिछली बार की तरह सांकेतिक तौर पर लेकिन बड़े भाई की भूमिका चाह रहे हैं.
2020 में एनडीए में सीट बंटवारे में जदयू को बीजेपी से सिर्फ़ 1 सीट ज्यादा मिली थी. जबकि उस समय बीजेपी अभी के मुकाबले काफी मजबूत स्थिति में थी. केंद्र में उसकी अकेले दम पर बहुमत थी. जबकि इस बार उसे केंद्र की सरकार चलाने के लिए जदयू की बैसाखी की जरूरत है. मनोज मुकुल बताते हैं,
राजद कांग्रेस के मतभेद और चिराग के रुख पर भी नजरनीतीश कुमार इस बात को भली भांति समझते हैं. और वो कोई भी ऐसी संभावना नहीं छोड़ना चाहते जिससे बाद में बीजेपी को खेल करने का कोई मौका मिले.
बिहार फर्स्ट और बिहारी फर्स्ट के साथ पिछली बार नीतीश कुमार की मुखालफत करने वाले चिराग पासवान भी इस बार नीतीश कुमार के नेतृत्व में विश्वास जता चुके हैं. ‘मोदी के हनुमान’ ने नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव में जाने की बात कही है. दूसरी ओर सीट बंटवारे को लेकर राजद और कांग्रेस में भी खींचातानी चल रही है. कांग्रेस का स्ट्राइक रेट इस बार लोकसभा चुनाव में राजद से बेहतर रहा था. इसके बाद से उनके इरादे बुलंद हैं. कांग्रेस की ओर से बयान भी आ चुका है कि गठबंधन में कोई भी बड़ा या छोटा भाई नहीं है. ऐसे में उनकी तकरार पर भी नीतीश कुमार की पैनी नजर होगी. जिससे कई नए फ्रंट खुलने की संभावना बन सकती है.
दिल्ली में बिहार पर मंथननीतीश कुमार की नाराजगी की खबरों के बीच, हरियाणा के सूरजकुंड में बिहार बीजेपी के कोर कमेटी की दो दिवसीय बैठक चल रही है. यह बैठक 22 दिसंबर को शुरू हुई है. इस बैठक में बिहार बीजेपी 2025 विधानसभा चुनाव पर मंथन करेगी. इसमें बीजेपी कई मुद्दों पर मंथन करेगी. सीनियर पत्रकार रमाकांत चंदन बताते हैं,
इस बैठक में बीजेपी नीतीश कुमार को लेकर क्लियर स्टैंड ले सकती है. अभी तक नीतीश कुमार के नेतृत्व पर केंद्रीय नेतृत्व और राज्य नेतृत्व का अलग-अलग स्टैंड रहा है. राज्य नेतृत्व जहां नीतीश कुमार के नाम पर चुनाव में जाना चाहता है. वहीं केंद्रीय नेतृत्व अभी पत्ते खोलने के मूड में नहीं है.
इसके अलावा इस बैठक में चिराग पासवान और पशुपति पारस को लेकर भी पार्टी कोई निर्णय ले सकती है. हाल ही में चिराग पासवान के जीजा और जमुई से उनकी पार्टी से सांसद अरुण भारती ने कहा कि चिराग पासवान राजनीति में बिहारियों के लिए आए हैं. और उनकी प्राथमिकता में सांसद से अधिक विधायक बनना है. बीजेपी की नजर इस बयान पर भी है. रमाकांत चंदन ने बताया,
बीजेपी के लिए नीतीश जरूरी या मजबूरीअंदरखाने खबर है कि लालू यादव चिराग पासवान को अपने खेमे में लाने की कोशिश कर रहे हैं. इसके अलावा बीजेपी इस बैठक में प्रशांत किशोर को काउंटर करने की रणनीति भी बनाएगी.
बिहार में बीजेपी की विस्तार के तमाम कोशिशों के बावजूद नीतीश कुमार उनकी जरूरत बने हुए हैं. इसमें नीतीश कुमार की राजनीतिक चतुराई और राज्य की जातीय समीकरण की भी अहम भूमिका है. साल 2020 से ही नीतीश कुमार का मर्सिया पढ़ा जा रहा है. लेकिन नीतीश कुमार हैं कि हर बार उठ कर खड़े हो जाते हैं. इधर कुछ महीनों से नीतीश कुमार के स्वास्थ्य को लेकर भी अटकले लगती रही हैं. उनके उम्र और स्वास्थ्य पर सवाल उठाए जा रहे हैं. इसके बावजूद सियासी शह-मात के उस्ताद नीतीश कुमार बीजेपी को घुटने टेकने को मजबूर कर देते हैं.
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