हिमंता बिस्वा सरमा (Himanta Biswa Sarma) की भाजपा सरकार ने असम में सार्वजनिक रूप से बीफ बैन (Beef Ban in Assam) कर दिया. मेघालय के दक्षिण शिलांग सीट से भाजपा विधायक सनबोर शुल्लई ने इस फैसले का खुला विरोध किया. अब उनकी एक प्रतिक्रिया खूब वायरल है. इसमें वो कह रहे हैं मेघालय में लोग अपनी पसंद से कुछ भी खा सकते हैं, सांप, बीफ या बिच्छू. मेघालय असम के पड़ोस में है और वहां भी भाजपा के समर्थन वाली सरकार है.
असम में बीफ बैन से आदिवासी परेशान, मेघालय के BJP विधायक बोले- सांप, बिच्छू, बीफ सब खाएंगे!
Sanbor Shullai Beef Ban: असम के पड़ोसी राज्य Meghalaya के नेताओं ने इस फैसले का कड़ा विरोध किया है. क्योंकि आदिवासी क्षेत्रों में बीफ का आम तौर पर सेवन किया जाता है. मेघालय में BJP की सहयोगी पार्टी के एक नेता ने इस मामले पर चुटकी ली है.
सनबोर शुल्लई के बयान पर गाने बजाए जा रहे हैं. उसे हिप हॉप म्यूजिक के साथ जोड़कर रैप के रूप में सोशल मीडिया पर पेश किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि बीफ बैन चुनाव का मुद्दा होना चाहिए. और वो इस बात को सुनिश्चित करेंगे कि मेघायल में कभी इस तरह का बैन नहीं लगे.
“Meghalaya आओ, बीफ खाओ, वापस जाओ”मेघालय में भाजपा की सहयोगी और राज्य की मुख्य सत्तारूढ़ पार्टी ‘नेशनल पीपुल्स पार्टी’ के मंत्री राक्कम संगमा ने भी इस पर अपनी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने हल्के अंदाज में कहा है कि मेघालय को इस बात का फायदा उठाना चाहिए. मेघालय के बर्नीहाट, खानापारा इलाके में अच्छे होटल खोलने चाहिए और अच्छी बीफ करी परोसनी चाहिए. ताकि असम के लोग मेघालय आएं, अच्छा खाएं और वापस जाएं.
इसी के साथ सरमा के बीफ बैन वाले फैसले को लागू करने में आने वाली कठिनाइयों की बात होने लगी है. क्योंकि असम के कई क्षेत्रों में, खासकर आदिवासी क्षेत्रों में बीफ का आम तौर पर सेवन किया जाता है. विशेषकर त्योहारों के दौरान.
असम CM ने ‘असम मवेशी संरक्षण अधिनियम 2021’ के तहत, रेस्टोरेंट, सामुदायिक समारोहों और सार्वजिनक जगहों पर बीफ परोसने और खाने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया है. जानकार बता रहे हैं कि ये जितना प्रशासनिक फैसला था उतना ही राजनीतिक. सरमा ने इस फैसले के जरिए कांग्रेस को घेरने की कोशिश की है.
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दरअसल, नवंबर महीने में असम में 5 सीटों पर विधानसभा उपचुनाव हुए थे. भाजपा और उनके सहयोगी दलों को सभी 5 सीटों पर जीत मिली. इसके बाद कांग्रेस के कुछ नेताओं ने ये आरोप लगाया कि सरमा और उनकी पार्टी ने चुनाव जीतने के लिए मुस्लिम बहुल समागुरी इलाके में वोटर्स के बीच बीफ बांटे था. CM ने कहा था कि कांग्रेस भी बीफ को गलत मान रही है, इसलिए वो बीफ बैन करके खुश हैं.
"सख्ती से बैन लगाया तो…"दरअसल, क्रिसमस पा आ रहा है. ऐसे में असम के डिफू क्षेत्र के दिग्गज आदिवासी नेता और पूर्व राज्य मंत्री होलीराम तेरांग ने भी इस फैसले पर सवाल उठाया है. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने कहा है,
“कार्बी और डिमासास समुदाय के लोग बीफ नहीं खाते हैं. लेकिन कई नागा और कुकी समुदाय के लोग बीफ खाते हैं. ये आम तौर पर सामुदायिक दावतों और त्योहारों का हिस्सा होता है. मुझे नहीं लगता कि इतने विविध समुदायों के साथ यहा बीफ परोसने पर किसी तरह का प्रतिबंध संभव है. इस फैसले को सख्ती से लागू कराने का कोई भी प्रयास संवेदनशील हो सकता है.”
2011 की जनगणना के अनुसार असम की 61.7% आबादी हिंदू है, जबकि मुस्लिम 34.33% हैं. वहीं 3.74% ईसाई हैं और आदिवासी आबादी का अनुमान 12.4% है. इनमें सबसे ज्यादा विविधता कार्बी आंगलोंग, पश्चिम कार्बी आंगलोंग और दीमा हसाओ जिलों में है.
छठी अनुसूची के अंतर्गत आने वाले इन जिलों में 15 मान्यता प्राप्त जनजातियां हैं. इनमें कार्बी, दिमासा, कुकी जनजाति, नागा जनजाति, मिजो जनजाति, हमार, खासी और गारो शामिल हैं.
हाफलोंग स्थित दिमासा छात्र संघ के महासचिव प्रमिथ सेंगयुंग ने भी बीफ बैन पर सवाल उठाया है. उन्होंने चिंता जताई है कि इस फैसले से क्षेत्र की विविधता को नुकसान पहुंचेगा और इससे तनाव बढ़ सकता है. सेंगयुंग ने कहा कि उनका समुदाय गोमांस नहीं खाता है, लेकिन उनके जिले में 13 आदिवासी समुदाय हैं, जिनमें से ज्यादातर ईसाई धर्म को मानते हैं. उन्होंने कहा कि ऐसा कोई भी कदम आदिवासी समुदायों की सहमति के बिना नहीं उठाया जाना चाहिए. इससे भावनाएं आहत हो सकती हैं. सेंगयुंग ने कहा कि कुछ समुदाय त्योहारों के दौरान गोमांस परोसते हैं और हालांकि उन्हें नहीं लगता कि इस तरह के प्रतिबंध से उनपर ज्यादा असर पड़ेगा, लेकिन ये स्वागत योग्य फैसला नहीं है.
असम सरकार ने हफ्ते भर पहले इस फैसले को लागू किया था. लेकिन अब तक इस पर गंभीरता से कोई आधिकारिक कदम नहीं उठाया गया है.
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