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बदलापुर एनकाउंटर: 'आरोपी पुलिसकर्मियों पर दो दिन में FIR दर्ज हो', हाई कोर्ट का आदेश

बेंच ने ये भी कहा कि वो इस दलील से इत्तेफाक रखते हैं कि मामले में गहन जांच जरूरी है. साथ ही बेंच ने फर्जी मुठभेड़ के आरोपों में FIR दर्ज न करने के लिए राज्य सरकार की आलोचना भी की.

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कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि पुलिस और अदालतों में लोगों का विश्वास और भरोसा मजबूत किया जाना चाहिए. (फोटो- इंडिया टुडे)

बॉम्बे हाई कोर्ट ने बदलापुर एनकाउंटर मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है. कोर्ट ने इस कथित एनकाउंटर की जांच के लिए एक विशेष जांच टीम (SIT) गठन करने का आदेश दिया है (Badlapur encounter High Court SIT probe). साथ ही, पांच आरोपी पुलिसकर्मियों के खिलाफ दो दिनों के भीतर FIR दर्ज करने का निर्देश भी दिया है. इन पुलिसकर्मियों को बदलापुर यौन उत्पीड़न मामले के आरोपी अक्षय शिंदे की पुलिस कस्टडी में हुई मौत के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है.

जस्टिस रेवती मोहिते-देरे और जस्टिस नीला गोखले की बेंच ने बीती 13 मार्च को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. 7 अप्रैल को कोर्ट ने अपने आदेश में बताया कि मुंबई जॉइंट कमिश्नर लखमी गौतम की देखरेख में एक पुलिस उपाधीक्षक की अध्यक्षता वाली SIT टीम इस केस की जांच करेगी. बेंच ने ये भी कहा कि वो इस दलील से इत्तेफाक रखते हैं कि मामले में गहन जांच जरूरी है. साथ ही बेंच ने फर्जी मुठभेड़ के आरोपों में FIR दर्ज न करने के लिए राज्य सरकार की आलोचना भी की.

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक उच्च न्यायालय ने कहा,

“अगर राज्य अपने दायित्वों को पूरा करने में विफल रहता है, तो संवैधानिक कोर्ट इसे अनदेखा नहीं कर सकता. अपराध की जांच करने से इनकार करना कानून के शासन को कमजोर करता है. साथ ही न्याय में जनता का विश्वास खत्म करता है और अपराधियों को सजा से बच निकलने का मौका देता है. राज्य द्वारा FIR दर्ज न किए जाने के कारण याचिकाकर्ता और उसकी पत्नी को परेशानी झेलनी पड़ी है. जिस वजह से उन्हें अपने बेटे की असामयिक मृत्यु पर चुप रहने के लिए मजबूर होना पड़ा है. इस तरह की लापरवाही संस्थानों में जनता के विश्वास को कमजोर करती है, और राज्य की वैधता से समझौता करती है. एक संवैधानिक कोर्ट के रूप में हम इसकी अनुमति नहीं दे सकते और मूकदर्शक नहीं बने रह सकते हैं.”

कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि पुलिस और अदालतों में लोगों का विश्वास और भरोसा मजबूत किया जाना चाहिए. बेंच ने कहा,

"ऐसा न हो कि लोगों का प्रशासन पर से भरोसा उठ जाए. निष्पक्ष जांच से इनकार करना या जांच में देरी करना, आरोपी के साथ-साथ पीड़ित और समाज के लिए भी उतना ही गलत है. निष्पक्ष और उचित जांच का मतलब है कि जांच निष्पक्ष, ईमानदार और कानून के अनुसार होनी चाहिए."

बेंच ने ये भी कहा कि FIR दर्ज नहीं होने के कारण मृतक के माता-पिता को याचिका वापस लेने पर मजबूर होना पड़ा. कोर्ट ने उस वक्त उनके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया था और न्यायमित्र (कोर्ट द्वारा नियुक्त वकील) की सहायता से मामले को आगे बढ़ाया था. SIT जांच का आदेश देते हुए बेंच ने कहा न्याय न केवल किया जाना चाहिए, बल्कि ऐसा होते हुए दिखना भी चाहिए.

बिना FIR दर्ज किए जांच कैसे?
मामले में महाराष्ट्र सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अमित देसाई ने कोर्ट में तर्क दिया. उन्होंने बताया कि CID इस मामले की स्वतंत्र जांच कर रही है और एक रिटायर्ड चीफ जस्टिस की अध्यक्षता में एक आयोग भी गठित किया गया है. हालांकि, कोर्ट ने सरकार से सवाल किया कि बिना FIR दर्ज किए जांच कैसे चल सकती है. कोर्ट में नियुक्त न्यायमित्र मंजुला राव ने भी तर्क दिया. उन्होंने कहा कि हिरासत में मौत के मामले में पुलिस को तुरंत FIR दर्ज करनी चाहिए थी, क्योंकि ये कानूनी रूप से अनिवार्य है.

कोर्ट ने सरकारी वकील के तर्कों को खारिज करते हुए कहा कि मजिस्ट्रेट रिपोर्ट में स्पष्ट सबूत हैं कि ये एक संदिग्ध एनकाउंटर था. इसके बाद कोर्ट ने SIT गठन का आदेश देने के साथ पांच पुलिसकर्मियों के खिलाफ FIR दर्ज करने का निर्देश दिया है. सरकार की ओर से इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने के लिए स्थगन की मांग की गई. लेकिन बेंच ने इसे अस्वीकार कर दिया.

वीडियो: Badlapur Encounter: कोर्ट ने कहा कि एनकाउंटर में गड़बड़ है, सिर पर गोली मारने पर सवाल