केरल में आशा कार्यकर्ताओं (Kerala Asha Workers Protest) के विरोध प्रदर्शन को 50 दिन हो गए हैं. मानदेय बढ़ाने को लेकर केरल सरकार के खिलाफ महिलाएं सड़कों पर हैं. सोमवार को उन्होंने प्रोटेस्ट में एक कदम आगे बढ़ते हुए अपने बाल कटा लिए और नारे लगाते हुए मुख्यमंत्री पिनराई विजयन (pinarayi vijayan) के दफ्तर की ओर बढ़ने लगीं. इस दौरान कई महिलाएं भावुक भी हो गईं. वे फूट-फूटकर रोने लगीं. आरोप है कि सरकार उनकी बातें नहीं सुन रही है. प्रदर्शन वाजिब मांगों को लेकर है और वही मांग रही हैं जो सरकार ने अपने घोषणा पत्र में वादा किया था. कार्यकर्ताओं के विरोध को कांग्रेस और भाजपा जैसे विपक्षी दलों का सपोर्ट मिल रहा है.
केरल में बाल कटवाकर विजयन सरकार के खिलाफ सड़क पर क्यों उतरीं आशा कार्यकर्ता?
केरल में आशा कार्यकर्ताओं के विरोध प्रदर्शन को 50 दिन हो गए. कार्यकर्ताओं की मांग है कि उनका मानदेय बढ़ाया जाए. उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार उन्हें इग्नोर कर रही है लेकिन वे तब तक प्रदर्शन खत्म नहीं करेंगी जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं हो जातीं.

'द हिंदू' की रिपोर्ट के अनुसार, तिरुवनंतपुरम में सोमवार की सुबह प्रदर्शन करने वाली महिलाएं महात्मा गांधी मार्ग पर मार्च कर रही थीं. इसी दौरान पद्मजामन और बीना नाम की दो आशा कार्यकर्ताओं ने सबसे पहले अपने बाल कटवा लिए. इसके बाद प्रदर्शन में शामिल कई अन्य महिलाओं ने भी एकजुटता दिखाने के लिए अपने बाल काट दिए. कइयों ने अपना सिर भी मुंडवा लिया. इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, बाल कटवाने वाली एक प्रदर्शनकारी ने भावुक होते हुए कहा,
ये हमारी ज़िंदगी है जो काटी जा रही है. यह उन मंत्रियों के खिलाफ हमारा विरोध है जो हमारे दर्द और समस्याओं को अनदेखा कर देते हैं. हम 232 रुपये प्रतिदिन के मामूली वेतन पर कैसे जीवित रह सकते हैं?
महिलाओं का कहना है कि सरकार उनकी मांगों को लगातार नजरअंदाज कर रही है. उनकी आर्थिक हालत बदतर होती जा रही है. मिनी नाम की एक आशा कार्यकर्ता ने एनडीटीवी से कहा कि सरकार ने हमें पूरी तरह अनदेखा कर दिया है. हम वही मांग रहे हैं जो सरकार ने अपने घोषणापत्र में वादा किया था. हमारी मांगें पूरी होने तक हम यहां से नहीं हटेंगे.
आशा कार्यकर्ताओं ने अपनी 20 मांगों की एक सूची पेश की है. बुनियादी तौर पर आशा कार्यकर्ताओं ने औपचारिक कार्यकर्ताओं के रूप में मान्यता की मांग की है.
क्या है मांगें?आशा कार्यकर्ताओं की मुख्य मांग है कि उनका मानदेय 7 हजार रुपये से बढ़ाकर 21 हजार रुपये प्रति माह किया जाना चाहिए. इसके अलावा 62 साल की उम्र में जब वो रिटायर हों, तब उन्हें 5 लाख रुपये की एकमुश्त राशि मिले. कई आशा वर्कर्स ने दावा किया है कि उन्हें मानदेय भी समय पर नहीं मिल रहा है. 4-5 महीनों से उन्हें पैसे नहीं मिले. इससे उनकी आर्थिक स्थिति और खराब हो गई है. उन्होंने मांग की है कि हर महीने की 5 तारीख को मानदेय मिल ही जाना चाहिए.
इसके अलावा 16 साल की सर्विस के बाद आशा कार्यकर्ताओं को स्वास्थ्य विभाग के स्थायी कर्मचारी का दर्जा दिया जाना चाहिए. एनएचएम के सिंबल के साथ पहचान पत्र और वर्दी भी दी जानी चाहिए. मेडिकल कॉलेजों समेत सरकारी अस्पतालों में आशा कार्यकर्ताओं को फ्री चिकित्सा मिलनी चाहिए. आशा वर्कर्स पर काम का बोझ कम करने के लिए नई भर्तियां की जानी चाहिए और रविवार को छुट्टी दी जानी चाहिए. इसके अलावा ऑफिशियल कामों के लिए कार्यकर्ताओं को स्मार्टफोन दिया जाए.
क्यों मांगें नहीं सुन रही सरकार?दरअसल, आशा कार्यकर्ताओं की जो डिमांड है, उस पर केरल सरकार और केंद्र सरकार के बीच मामला फंसा हुआ है. राज्य सरकार ने मांगों को पूरा करने का जिम्मा केंद्र सरकार के माथे मढ़ दिया है. साथ ही यह भी कहा कि मानदेय में इतनी बड़ी वृद्धि करना भी व्यवहारिक नहीं है. विजयन सरकार ने दावा किया है कि 2023-24 के लिए एनएचएम के तहत राज्य को केंद्र से नकद अनुदान भी नहीं मिला है. वहीं केंद्र सरकार ने राज्य के सभी आरोपों को खारिज कर दिया है. केंद्र सरकार ने कहा है कि उसने अपनी हिस्सेदारी पूरी कर दी है.
विपक्ष ने कहा, हम देंगे ज्यादा पैसाआशा कार्यकर्ताओं के विरोध पर राज्य में सियासत भी जारी है. कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूडीएफ और भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए ने प्रदर्शनकारियों को समर्थन का एलान किया है. इतना ही नहीं, इन पार्टियों ने घोषणा की है कि जिन स्थानीय निकायों पर उनका शासन है, वहां वे अपने फंड से प्रदर्शनकारी वर्कर्स को अतिरिक्त भुगतान करेंगे. हालांकि, केरल सरकार के मंत्री एम.बी. राजेश ने विरोधी दलों के इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया है. उन्होंने कहा कि ऐसे भुगतान के लिए कोई नियम नहीं है. यह सिर्फ लोगों की आंखों में धूल झोंकना है. बड़े-बड़े वादे करके लोगों को खुश करना है. इसे कभी पूरा नहीं किया जा सकता.
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