अमेरिका में जब 9/11 का हमला हुआ तो काइला नाम की युवती वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में ही 68वें फ्लोर पर काम कर रही थीं. भीषण आतंकवादी हमले में काइला बच तो गईं. लेकिन तब से लेकर आज तक, 24 साल बाद तक, काइला उस हमले के ट्रॉमा से उबर नहीं पाई हैं, जो उन्होंने अपनी आंखों के सामने देखा. काइला को रात में हमले से जुड़े डरावने सपने आते हैं. काफी समय तक वो एंग्ज़ाइटी-डिप्रेशन के लक्षणों से भी जूझती रहीं. अब कुछ बरसों से उनकी स्थिति सुधरी है.
बड़ा हमला झेलने वाले लोगों में बरसों तक क्यों दिखते हैं ये लक्षण? डॉक्टर से जानें इलाज का तरीका
पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर या PTSD एक मानसिक स्थिति है. डॉक्टर से जानेंगे कौन लोग इसके ज़्यादा रिस्क पर हैं. इसके लक्षण क्या हैं और साथ ही जानेंगे इसका इलाज.


ये स्थिति काइला की अकेले की नहीं है. कई लोग, जो किसी भीषण हादसे के, भीषण हमले, आतंकवादी हमले जैसी बड़ी घटना के गवाह रहे हैं, उनमें ऐसे लक्षण, ऐसा ट्रॉमा बरसों तक देखा जाता है.
जॉन हॉपकिंस ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ की एक रिपोर्ट के मुताबिक- 9/11 टेररिस्ट अटैक के क़रीब 3,271 सर्वाइवर्स में ऐसे लक्षण लंबे समय तक देखे गए. इसे PTSD यानी Post Traumatic Stress disorder कहते हैं.

डॉक्टर से जानेंगे PTSD क्या होता है. कौन लोग इसके ज़्यादा रिस्क पर हैं. इसके लक्षण क्या हैं और साथ ही जानेंगे इसका इलाज.
क्या होता है पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर?ये हमें बताया डॉ. स्नेहा शर्मा ने.

-पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर या PTSD एक मानसिक स्थिति है
-ये उन लोगों में होती है जिन्होंने ऐसी स्थितियां अनुभव की हैं, जहां उनकी जान को ख़तरा था या गहरी चोट लगने का चांस था
-ऐसा किसी सीरियस एक्सीडेंट के चलते हो सकता है
-प्राकृतिक विपदा की वजह से हो सकता है
-या आतंकवादी हमले के कारण भी PTSD के लक्षण महसूस हो सकते हैं
-ऐसा आपबीती के चलते हो सकता है या अपने सामने कोई अप्रिय घटना होते हुए देखने के कारण हो सकता है
-ऐसी स्थिति में PTSD के लक्षण कुछ महीने या कुछ दिनों बाद दिख सकते हैं
-PTSD किसी भी इंसान में विकसित हो सकता है
-किसी भी उम्र के इंसान को हो सकता है
-बच्चों को भी हो सकता है
पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर के लक्षण-न चाहते हुए भी घटना से जुड़ी यादें या विचार बार-बार आना
-उस सिचुएशन में न होने के बाद भी, बार-बार उस घटना को एक्सपीरियंस करना
-फ़्लैशबैक आना यानी उस घटना की तस्वीरें आंखों के सामने आना
-इन लक्षणों की वजह से अवॉइडेंस बिहेवियर आता है
-अवॉइडेंस बिहेवियर यानी घटना से जुड़ी किसी भी चीज़ को अवॉयड करना जो उस हादसे की याद दिला सकती है
-मानसिक और इमोशनल बदलाव आने लगते हैं

-नकारात्मक सोच और भावनाएं आने लगती हैं
-फोकस करने में मुश्किल होती है
-नेगेटिव सोच रोज़ की दिनचर्या को प्रभावित करती है
-नींद, भूख, काम-सब पर असर पड़ता है
-PTSD की जांच और इलाज बहुत ज़रूरी है
-सही इलाज से इंसान जल्दी इन लक्षणों से छुटकारा पा सकता है
इलाज-PTSD का इलाज संभव है
-सही सपोर्टिव थेरेपी, साइकोथेरेपी जिसे टॉक थेरेपी कहते हैं, मदद करती है
-अगर बहुत ज़्यादा नकारात्मक विचार आते हैं तो दवाइयां भी मदद करती हैं
किसी बड़े हादसे को झेलने के बाद, इंसान की सोच, उसकी मानसिक स्थिति काफ़ी प्रभावित होती है. ये नेचुरल है. पर ज़रूरी है सही समय पर, सही मदद लेना. अगर किसी को PTSD के लक्षण महसूस हो रहे हैं, तो उसे अपने नजदीकियों से बात करनी चाहिए और प्रोफेशनल मदद लेनी चाहिए.
(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
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