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क्यों होता है ल्यूकेमिया, जानिए लक्षण और बचाव का तरीका

Blood Cancer के मामले में हमारा देश दुनियाभर में तीसरे नंबर पर आता है. नंबर वन पर America और नंबर टू पर China है.

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ल्यूकेमिया, खून का एक कैंसर है

ल्यूकेमिया एक तरह का ब्लड कैंसर है. सिर्फ साल 2022 में साढ़े 4 लाख से ज़्यादा लोगों को ये बीमारी हुई. वहीं 3 लाख से ज़्यादा लोगों की मौत हुई. ये आंकड़े बताए हैं WHO की एजेंसी International Agency For Research On Cancer ने. इसी रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में साल 2022 में ब्लड कैंसर से 70 हज़ार मौतें हुई थीं और एक लाख से ज़्यादा मामले सामने आए थे.

स्टडीज़ के मुताबिक, ब्लड कैंसर के मामले में हमारा देश दुनियाभर में तीसरे नंबर पर आता है. नंबर वन पर अमेरिका और नंबर टू पर चाइना है. सोचिए, कितनी तेज़ी से ये कैंसर हमारे देश में बढ़ रहा है. लेकिन ऐसा हो क्यों रहा है, ये हम डॉक्टर से जानेंगे. समझेंगे कि ल्यूकेमिया क्या होता है. भारतीयों में ल्यूकेमिया कितना फैला हुआ है. ल्यूकेमिया होने का कारण क्या हैं. इसके लक्षण क्या होते हैं. और, ल्यूकेमिया से बचाव और इलाज कैसे किया जाए. 

ल्यूकेमिया क्या होता है?

ये हमें बताया डॉक्टर मोहित सक्सेना ने. 

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डॉ. मोहित सक्सेना, कंसल्टेंट एंड हेड, मेडिकल ऑन्कोलॉजी, मणिपाल हॉस्पिटल, गुरुग्राम

ल्यूकेमिया एक तरह का ब्लड कैंसर है. इसमें बोन मैरो (हड्डी के अंदर जहां खून बनता है) असामान्य तरह के वाइट ब्लड सेल्स (White Blood Cells) पैदा करता है. जिसकी वजह से नॉर्मल ब्लड सेल्स के कामों पर असर पड़ता है. जैसे रेड ब्लड सेल्स (Red Blood Cells) की ऑक्सीज़न ले जाने की क्षमता कम हो जाती है. वाइट ब्लड सेल्स ठीक से काम नहीं कर पाते, जिससे इंफेक्शन का रिस्क बढ़ता है. प्लेटलेट्स (Platelets) के काम प्रभावित होते हैं, जिससे ब्लीडिंग का ख़तरा बढ़ जाता है. 

जब ल्यूकेमिया तेज़ी से बढ़ता है तो इसे एक्यूट ल्यूकेमिया (Acute Leukemia) कहते हैं. जब ये धीरे-धीरे बढ़ता है तो इसे क्रोनिक ल्यूकेमिया (Chronic Leukemia) कहते हैं. 

आमतौर पर ल्यूकेमिया 4 तरह का होता है-

- एक्यूट माइलॉयड ल्यूकेमिया यानी AML

- एक्यूट लिम्फ़ोब्लास्टिक ल्यूकेमिया यानी ALL

- क्रोनिक माइलोजेनस ल्यूकेमिया यानी CML

- क्रोनिक लिम्फ़ोसाइटिक ल्यूकेमिया यानी CLL

भारतीयों में कितना फैला हुआ है ल्यूकेमिया?

ग्लोबोकैन 2022 के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में ब्लड कैंसर की वजह से हर साल 70 हज़ार लोगों की मौत होती है. वहीं इसके लगभग एक लाख 20 हज़ार नए केस दर्ज़ किए जाते हैं. ल्यूकेमिया सबसे आम तरह का ब्लड कैंसर है. पुरुषों में इसके मामले ज़्यादा देखे जाते हैं. 15 साल से कम और 55 साल से अधिक लोगों में ल्यूकेमिया ज़्यादा देखा जाता है.

ल्यूकेमिया होने का कारण

ल्यूकेमिया के कारणों को दो भागों में बांटा जा सकता है, नॉन-मॉडिफाइबल और मॉडिफाइबल. 

नॉन-मॉडिफाइबल यानी जब किसी की फैमिली हिस्ट्री हो. कोई हेरेडिटरी सिंड्रोम हो यानी माता-पिता से आया हो. जैसे डाउन सिंड्रोम (Down Syndrome) या ली-फ्रामेनी सिंड्रोम (Li–Fraumeni Syndrome). कोई इम्यून डिसऑर्डर हो या कोई वायरल इंफेक्शन हो. कुछ तरह की कीमोथेरेपी या पेस्टिसाइड के संपर्क में आने से ल्यूकेमिया हो सकता है. 

वहीं मॉडिफाइबल रिस्क फैक्टर की बात करें तो इसमें सबसे अहम तंबाकू है. तंबाकू, ल्यूकेमिया के रिस्क को बढ़ाता है. इसके अलावा, गैसोलीन (पेट्रोल) या बेंजीन के संपर्क में आने से भी ल्यूकेमिया का रिस्क बढ़ता है. 

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ल्यूकेमिया में शरीर पर लाल या बैंगनी रंग के चकत्ते पड़ते हैं

ल्यूकेमिया के लक्षण

- नाक या मुंह से खून आना

- यूरिन या स्टूल में खून आना

- छोटी-सी चोट लगने पर खून का थक्का बनना

- शरीर पर लाल या बैंगनी रंग के चकत्ते पड़ना

- बार-बार इंफेक्शन होना

- बेवजह बुखार आना

- बेवजह वज़न घटना  

- रात में खूब पसीना आना

- शरीर में खुजली होना

- गर्दन, बगल या जांघ पर गांठें बनना

- चलने से सांस फूलना

- थकावट लगना

- पेट में दर्द होना

- कई मरीज़ों को हड्डियों या जोड़ों में दर्द होता है

- ये सभी ल्यूकेमिया के लक्षण हो सकते हैं. इसलिए इन्हें नज़रअंदाज़ न करें

- तुरंत डॉक्टर के पास जाएं और अपना इलाज कराएं

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 ब्लड कैंसर से बचने के लिए तंबाकू, सिगरेट से दूरी बनाएं

ल्यूकेमिया से बचाव और इलाज

- तंबाकू बिल्कुल न खाएं

- बेंजीन और गैसोलीन (पेट्रोल-डीजल) के संपर्क में आने से बचें

ल्यूकेमिया का इलाज इसके प्रकार पर निर्भर करता है. अगर समय पर इलाज हो तो बीमारी से निपटा जा सकता है. कई बार इसके इलाज में कीमोथेरेपी दी जाती है. कभी-कभी टारगेटेड थेरेपी की भी ज़रूरत पड़ती है. जिसे टैबलेट या इंजेक्शन के रूप में दिया जाता है. कभी-कभी टारगेटेड थेरेपी को कीमोथेरेपी के साथ या अकेले भी दिया जाता है. कई बार इसके इलाज में एलोजेनिक ट्रांसप्लांट की ज़रूरत भी होती है. एलोजेनिक स्टेम सेल ट्रांसप्लांट में एक डोनर मरीज़ को अपना स्टेम सेल देता है. कुल मिलाकर ल्यूकेमिया का इलाज इसके टाइप पर निर्भर करता है.

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से जरूर पूछें. ‘दी लल्लनटॉप ’आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

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