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डिस्क डिजनरेशन क्या होता है? डॉक्टर से जानिए, इससे बचने का तरीका

रीढ़ की हड्डी के घिसने को मेडिकल भाषा में डिस्क डिजनरेशन कहते हैं. ये क्यों होता है और इससे बचने के उपाय क्या हैं? इन सब पर विस्तार से बात करेंगे.

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डिस्क डिजनरेशन होने पर कमर में भयानक दर्द होता है

क्या आजकल आपकी कमर में दर्द रहता है? क्या ये दर्द बढ़कर पैरों तक पहुंच जाता है? अगर आपका जवाब ‘हां’ है तो इसके पीछे वजह है आपकी रीढ़ की हड्डी. दरअसल हमारी रोज़ की कुछ आदतों और गलतियों से रीढ़ की हड्डी घिसने लगती है. रीढ़ की हड्डी के घिसने को मेडिकल भाषा में डिस्क डिजनरेशन (Disk Degeneration) कहते हैं.

ये दिक्कत बहुत आम है. इसलिए, आज डॉक्टर से जानिए कि रीढ़ की हड्डी घिसने क्यों लगती है. इसके पीछे क्या कारण हैं. रोज़ की किन आदतों से रीढ़ की हड्डी घिसती है. साथ ही समझेंगे कि रीढ़ की हड्डी घिसने से क्या समस्याएं होती हैं. और, इससे बचाव व इलाज कैसे किया जाए. 

रीढ़ की हड्डी घिसने क्यों लगती है?

ये हमें बताया डॉक्टर राहुल चौधरी ने. 

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डॉ. राहुल चौधरी, कंसल्टेंट, स्पाइन सर्जरी, मणिपाल हॉस्पिटल, पुणे

रीढ़ की हड्डी हमारे सिर को पीठ के निचले हिस्से से जोड़ती है. इसमें बहुत सारी छोटी हड्डियां होती हैं और हर दो हड्डी के बीच में एक डिस्क होती है. ये डिस्क, रीढ़ की हड्डी को किसी झटके से बचाती है. इस डिस्क के अंदर जेली जैसा द्रव्य भरा रहता है. वहीं उसकी बाहरी परत कठोर होती है. 

कई बार जब डिस्क के अंदर भरी जेली सूख जाती है. उसमें मौजूद पानी कम हो जाता है तो डिस्क बैठ जाती है. इसे ही डिस्क डिजनरेशन कहते हैं. बहुत बार MRI कराने पर ये डिस्क एकदम काली दिखती है. इसे स्पॉन्डिलाइटिस (Spondylitis) भी कहते हैं. 

इसके पीछे क्या कारण हैं?

- बहुत देर तक एक ही पोज़ीशन में बैठना

- आगे झुककर काम करना

- भारी सामान उठाना

- मोटापा

- समय पर खाना न खाना

- विटामिन B12 और विटामिन D3 की कमी होना

- सिगरेट-शराब पीना

- अच्छी नींद न लेना

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कुर्सी पर गलत तरीके से बैठने से भी रीढ़ की हड्डी घिसने लगती है 

रोज़ की किन आदतों से रीढ़ की हड्डी घिसती है?

आजकल ज़्यादातर लोग बैठकर काम करते हैं. अब अगर आप गलत पोज़ीशन में घंटों बैठे रहें तो इससे मनके पर दबाव पड़ता है. मनका यानी गर्दन के पीछे की हड्डी, जो रीढ़ के बिलकुल ऊपर होती है. 

वहीं अगर आप पर्याप्त पानी नहीं पी रहे हैं तो भी मांसपेशियों में अकड़न आ जाती है. अगर कोई काम करते हुए बार-बार झुकना पड़ता है, तो इसे कम करें. भारी चीज़ उठा रहे हैं तो किसी की मदद लें. घर का खाना पौष्टिक होता है, वही खाएं. बाहर के प्रोसेस्ड फ़ूड में तेल-नमक ज़्यादा होता है. इससे शरीर में विटामिन लेवल कम होने लगते हैं और हड्डियां कमज़ोर हो जाती हैं. इसके अलावा, मोटापे से भी रीढ़ की हड्डी पर असर पड़ता है, इसलिए रोज़ एक्सरसाइज़ करें. 

रीढ़ की हड्डी घिसने से क्या समस्याएं होती हैं?

डिस्क डिजनरेशन होने पर डिस्क के अंदर का जेल सूख जाता है. फिर पानी की कमी से डिस्क बैठने लगती है. अब अगर इस डिस्क पर प्रेशर आ जाए तो वो फट जाता है. इससे अंदर का जेल बाहर निकल आता है जिसकी वजह से नस पर दबाव पड़ता है. ऐसे मरीज़ों को कमर में बहुत दर्द होता है. ये दर्द बढ़कर पैरों तक पहुंच जाता है, जिसे साइटिका (Sciatica) भी कहते हैं. डिस्क फटने और नस पर प्रेशर पड़ने की वजह से पैरों में झनझनाहट होने लगती है, भारीपन आता है और पैरों में कमज़ोरी भी लगती है. 

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शरीर को रोज़ थोड़ी देर स्ट्रेच करें  (सांकेतिक तस्वीर)

बचाव और इलाज

बहुत ज़्यादा बैठते हैं तो हर 30-40 मिनट में उठें. एक या दो मिनट का ब्रेक लें और थोड़ा घूम-फिरकर आएं. शरीर को स्ट्रेच करें और वापस बैठ जाएं. बीच-बीच में पानी, सूप और जूस जैसी तरल चीज़ें पीते रहें. कोई भारी सामान उठा रहे हैं तो व्यक्ति या मशीन की मदद लें. अपने खाने का समय तय करें और बाहर की चीज़ें न खाएं. रोज़ 6 से 7 घंटे की अच्छी नींद लें. मोटापा कम करें. 

अब बात इलाज की, डिस्क डिजनरेशन होने पर कमर में बहुत दर्द होता है. इस दर्द को कम करने के लिए पेनकिलर्स और मसल रिलैक्सेंट जैसी दवाएं दी जाती हैं. मरीज़ को 5 से 7 दिनों के लिए कंप्लीट बेड रेस्ट करने को कहा जाता है. कई बार फिज़ियोथेरेपी भी दी जाती है. इससे मांसपेशियों में अकड़न कम हो जाती है. 90 फीसदी से ज़्यादा मरीज़ इससे पूरी तरह ठीक हो जाते हैं. 

अगर कुछ मरीज़ों का दर्द दूर नहीं होता तो X-Ray या MRI किया जाता है. इससे पता चल जाता है कि डिस्क पूरी तरह फट गई है या नस पर प्रेशर आ गया है. फिर नस की जगह पर इंजेक्शन दिया जाता है. अगर इससे भी आराम नहीं मिलता तो डिस्क के उस टुकड़े को निकाल दिया जाता है. इससे नस पर पड़ा दबाव हट जाता है और डिजनरेटेड डिस्क की दिक्कत दूर की जाती है. 

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से जरूर पूछें. ‘दी लल्लनटॉप ’आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

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