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जरा बीमार पड़ते ही गूगल पर लक्षण चेक करने लगते हैं तो Cyberchondria के बारे में जान लें

साइबरकॉन्ड्रिया एक मनोस्थिति है. इसमें व्यक्ति अपनी सेहत या किसी बीमारी के लक्षणों को लेकर इंटरनेट पर बहुत ज़्यादा सर्च करता है.

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दिक्कत हो तो डॉक्टर को दिखाएं, हर लक्षण गूगल न करें (फ़ोटो: Meta AI)

बहुत पेट दर्द हो रहा. गूगल कर लेता हूं ऐसा क्यों हो रहा है? ओह नो! गूगल तो कह रहा, मुझे कैंसर है! कुछ दिनों से सिर में बहुत दर्द है. गूगल करती हूं क्यों हो रहा है? अरे नहीं! गूगल बोल रहा है, मुझे ब्रेन ट्यूमर (Brain Tumor) है. 

ऐसा ही होगा, जब आप हर बात पर डॉक्टर गूगल से सलाह लेंगे. कुछ हुआ नहीं कि तुरंत इंटरनेट पर अपने लक्षण टाइप कर दिए. फिर क्या होता है? सामने आती है जानलेवा बीमारियों की एक लंबी लिस्ट. बस आपके दिमाग में परेशानी बैठ गई.

अगर ये आपकी आदत बन गई है और आप खुद को रोक नहीं पाते तो एक बात जान लीजिए. ये एक कंडीशन है, जिसका नाम है साइबरकॉन्ड्रिया. डॉक्टर से समझिए कि साइबरकॉन्ड्रिया क्या होता है. इसके लक्षण क्या हैं. और, इस साइबरकॉन्ड्रिया से डील करने का तरीका क्या है. 

क्या है साइबरकॉन्ड्रिया?

ये हमें बताया डॉ. प्रीति सिंह ने.

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डॉ. प्रीति सिंह, सीनियर कंसल्टेंट, क्लीनिकल साइकोलॉजी, पारस हेल्थ, गुरुग्राम

साइबरकॉन्ड्रिया एक मनोस्थिति है. इसमें व्यक्ति अपनी सेहत या किसी बीमारी के लक्षणों को लेकर इंटरनेट पर बहुत ज़्यादा सर्च करता है. कम घातक बीमारी को अपने दिमाग में बहुत बड़ी बीमारी बना लेता है. इससे उसका डर और घबराहट बढ़ जाती है. व्यक्ति अपनी इस बीमारी के बारे में बहुत ज़्यादा सोचने लगता है. उसे बार-बार लोगों से आश्वासन की ज़रूरत होती है. लक्षणों को लेकर बार-बार दूसरों से चर्चा करता है. इससे उसके रोज़ के कामों पर भी असर पड़ता है. इंसान अपना ज़्यादा से ज़्यादा समय फोन पर उस बीमारी के बारे में जानकारी खोजने में बिताता है.

साइबरकॉन्ड्रिया के क्या लक्षण हैं?

मरीज़ बहुत समय अपनी बीमारी या लक्षणों पर रिसर्च करने में बिताता है. वो बार-बार अपनी बीमारी के लक्षणों को सर्च करने की कोशिश करता है. दिन हो या रात, जब भी मौका मिलता है, वो ऐसा करता है. उसकी बातचीत में भी ये टॉपिक किसी न किसी तरह शामिल हो ही जाता है. इससे उसकी नींद पर असर पड़ता है. नींद कम आने लगती है. मन उदास हो जाता है. घबराहट बढ़ जाती है. उसके मन में डॉक्टर से मिलने की प्लानिंग चलने लगती है. कुल मिलाकर, उसका दिमाग इसी उधेड़बुन में लगा रहता है.

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साइबरकॉन्ड्रिया ओवरथिंकिंग की एक कंडीशन है (फ़ोटो: Meta AI)

साइबरकॉन्ड्रिया से कैसे बचें?

साइबरकॉन्ड्रिया अपने में एक बीमारी नहीं है. ये ज़्यादा सोचने (ओवरथिंकिंग) की एक कंडीशन ज़रूर है, जो हेल्थ और एंग्ज़ायटी से जुड़ी होती है. साइबरकॉन्ड्रिया, हाइपोकॉन्ड्रियासिस का एक हिस्सा हो सकता है. हाइपोकॉन्ड्रियासिस एक बीमारी है, जिसका दवाइयों के ज़रिए इलाज होता है. कई बार साइकोथेरेपी, खासकर कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी (CBT) दी जाती है. 

इस मनोस्थिति में एक समय के बाद मरीज़ को लगने लगता है कि वो अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी को ठीक से मैनेज नहीं कर पा रहा. वो लगातार चिंतित और बहुत ज़्यादा परेशान महसूस करता है. ऐसे में तुरंत एक क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट से मिलना चाहिए. वो कंडीशन को समझने और उसे मैनेज करने में मदद करेंगे.

देखिए, इंटरनेट पर जानकारियों की भरमार है. आप कोई भी लक्षण सर्च करेंगे. वो कहीं न कहीं कैंसर, हार्ट अटैक, ब्रेन स्ट्रोक जैसी बड़ी बीमारियों से लिंक हो ही जाएगा. फिर आप तनाव में आ जाएंगे. इसलिए, सेहत से जुड़ी कोई भी दिक्कत हो तो डॉक्टर से मिलें. ऑनलाइन जवाब तलाशने की कोशिश न करें. 

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से जरूर पूछें. ‘दी लल्लनटॉप' आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

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