The Lallantop

बंद जगहों से घबराहट होती है? लिफ्ट में डरते हैं? ये कुछ और नहीं, क्लॉस्ट्रोफोबिया है!

क्लॉस्ट्रोफोबिया से ग्रस्त लोगों को बंद जगहों में जाने से डर लगता है. उन्हें लगता है कि अगर वो ऐसी जगहों पर गए तो उनका दम घुट जाएगा.

post-main-image
क्या आप लिफ्ट में अकेले जाने से डरते हैं? (फोटो: Getty Images)

बेड के नीचे घुसना हो. भरी ट्रेन में सफर करना हो. बिना खिड़की वाले कमरे में जाना हो या फिर लिफ्ट का इस्तेमाल करना हो.

अगर इनके बारे में सोचने भर से आपकी धड़कनें बढ़ जाती हैं. चेहरे पर पसीने की बूंदे दिखने लगती हैं. घबराहट होने लगती है. सांस फूलने लगती है, तो हो सकता है कि आप क्लॉस्ट्रोफोबिक हों. यानी आपको क्लॉस्ट्रोफोबिया हो.

ये एक मेंटल कंडीशन है. जिसमें व्यक्ति को बंद जगहों से डर लगता है. ऐसा-वैसा डर नहीं. शिद्दत वाला डर. आपके आसपास ऐसे कई लोग होंगे, जिन्हें क्लॉस्ट्रोफोबिया होगा. हो सकता है, आप खुद भी क्लॉस्ट्रोफोबिया से जूझ रहे हों.

लेकिन, ये होता क्यों है? और क्या इसे कभी ठीक किया जा सकता है? समझिए डिटेल में. 

क्लॉस्ट्रोफोबिया क्या होता है?

ये हमें बताया डॉक्टर समीर मल्होत्रा ने.

dr sameer malhotra
डॉ. समीर मल्होत्रा, हेड, मेंटल हेल्थ एंड बिहेवियरल साइंसेज़, मैक्स हॉस्पिटल, नई दिल्ली

क्लॉस्ट्रोफोबिया एक एंग्ज़ायटी डिसऑर्डर है. ये एक आम समस्या है, जो किसी को भी हो सकती है. इसमें व्यक्ति बंद कमरों या बंद जगहों में जाने से डरता है. जैसे लिफ्ट में जाना. सिनेमाहॉल में जाना. फ्लाइट से सफर करना. उसे लगता है कि कहीं इन बंद जगहों में उसका दम न घुट जाए. उसके साथ कुछ बुरा न हो जाए. वो अपना आपा न खो दे या दिमागी संतुलन न बिगड़ जाए. इस वजह से अक्सर लोग डरे-सहमे ज़िंदगी बिता देते हैं.

ऐसी जगहों पर जाने के बारे में सोचने भर से उनके दिल की धड़कनें तेज़ हो जाती हैं. पसीना छूटने लगता है. हाथ-पैर ठंडे पड़ जाते हैं. नींद उड़ जाती है. उनके जीवन की गुणवत्ता ख़राब होने लगती है.

क्लॉस्ट्रोफोबिया का असर सिर्फ व्यक्ति पर ही नहीं, उसके परिवार पर भी पड़ता है. परिवार के लोग उसके साथ घूमने-फिरने नहीं जा पाते. वो साथ मिलकर अच्छे पलों का आनंद नहीं ले पाते. घूमने की योजना अक्सर कैंसल हो जाती है. कई बार फ्लाइट या ट्रेन का टिकट भी कैंसल करना पड़ता है. लिफ्ट का इस्तेमाल न करने से रोज़मर्रा की ज़िंदगी प्रभावित होती है. उनकी जीवनशैली बहुत सीमित हो जाती है.

क्लॉस्ट्रोफोबिया के कारण

क्लॉस्ट्रोफोबिया का पहला कारण मानसिक परेशानी और ट्रॉमा है. बचपन में हुई कुछ घटनाएं मन पर गहरी छाप छोड़ देती हैं. इससे व्यक्ति में घबराहट के लक्षण विकसित होने लगते हैं. कई बार ये डर बंद जगहों तक सीमित रह जाता है. 

दूसरा कारण, लिफ्ट में अटक जाना या प्लेन में टर्बुलेंस आना है. ऐसी घटनाओं की वजह से मन में डर बैठ जाता है. खुद को बचाने के लिए व्यक्ति इन जगहों पर जाने से बचता है. उसे डर लगता है कि कहीं वो उस जगह पर फंस न जाए.

तीसरा कारण, दिमाग में मौजूद कुछ केमिकल्स में फेरबदल होना. जैसे नॉरपेनेफ्रिन नाम के केमिकल का बढ़ना. इसका स्तर बढ़ने से दिल की धड़कनें तेज़ होने लगती हैं. घबराहट महसूस होती है. बार-बार शौच के लिए जाना पड़ता है. खूब पसीना आता है. पेट में अजीब-सी हलचल मच जाती है. तनाव रहने लगता है. 

चौथा कारण, सेरोटोनिन हॉर्मोन की कमी होना है. ये एक हैप्पी हॉर्मोन है, जो डर को कम करता है. शरीर में सेरोटोनिन की कमी से व्यक्ति कल्पनाओं में डर पालने लगता है. बंद जगहों के बारे में सोचने भर से उसकी नींद उड़ जाती है.

claustrophobia
क्लॉस्ट्रोफोबिया से डरने की नहीं, बल्कि उसका सामना करने की ज़रूरत है (फोटो: Getty Images)

क्लॉस्ट्रोफोबिया का इलाज

क्लॉस्ट्रोफोबिया का इलाज अलग-अलग तरीके से किया जाता है. मिली-जुली कोशिश व्यक्ति को डर से उभारने में मददगार साबित होती है. क्लॉस्ट्रोफोबिया से पीड़ित व्यक्ति को साइकोलॉजिकल थेरेपी दी जाती हैं. जैसे ग्रेडेड एक्सपोज़र थेरेपी. इसमें व्यक्ति को धीरे-धीरे उस जगह पर ले जाने की कोशिश की जाती है, जिससे वो डरता है. जैसे अगर किसी को लिफ्ट में जाने से डर लगता है तो पहले उसे खुली लिफ्ट में ले जाया जाएगा. ऐसी लिफ्ट में जंगला लगा होता है, जिससे आर-पार दिखता है. इसमें हवा भी अंदर जाती है. ऐसी लिफ्ट में व्यक्ति को किसी के साथ एक या दो मंज़िल तक भेजा जाता है. फिर मंजिलों की संख्या बढ़ाई जाती है. जब व्यक्ति इस लिफ्ट में अकेले सफर करने लगता है. तब उसे ग्लास वाली लिफ्ट में भेजा जाता है. इस लिफ्ट में भी आर-पार दिखाई देता है. उसे मोबाइल और साथ में एक व्यक्ति भी दिया जाता है. फिर धीरे-धीरे व्यक्ति अकेले सफर करता है. 

इसके बाद, उसे बंद लिफ्ट में भेजा जाता है. हालांकि ये प्रक्रिया आसान नहीं होती इसलिए थेरेपी के साथ दवाइयां भी दी जाती हैं. कुछ दवाइयां सेरोटोनिन (हैप्पी हॉर्मोन) बढ़ाने के लिए दी जाती हैं. नॉरपेनेफ्रिन (घबराहट को बढ़ाने वाला केमिकल) को नियंत्रित करने के लिए भी दवाइयां दी जाती हैं. कुछ दवाइयां तुरंत राहत देने के लिए दी जाती हैं, ताकि घबराहट के समय व्यक्ति संभल सके. 

इसके अलावा, अच्छी जीवनशैली अपनाना ज़रूरी है. जैसे समय पर खाना. समय पर सोना. योग, प्राणायाम करना. स्वस्थ और संतुलित जीवनशैली अपनाने से शरीर और मन दोनों मज़बूत होते हैं, जिससे डर को काबू किया जा सकता है.

क्लॉस्ट्रोफोबिया से डरने की नहीं, बल्कि उसका सामना करने की ज़रूरत है. अगर आपको बंद जगहों से डर लगता है. और, ये डर आपकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी पर असर डाल रहा है. तो डॉक्टर से मिलें. और, समय रहते अपना इलाज कराएं.

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

वीडियो: सेहत: क्या वाकई असरदार हैं विटामिन पैच?