जब आप लगातार काम करते हैं, तो क्या होता है? एक टाइम बाद दिमाग चलना बंद हो जाता है. नए आइडियाज़ नहीं आते. गलतियां होने लगती हैं. दरअसल, बाकी शरीर की तरह ही हमारा दिमाग भी थक जाता है. लेकिन, कई बार दिमाग सिर्फ थकता नहीं, बल्कि डैमेज होने लगता है. उसे नुकसान पहुंचने लगता है.
ये आदतें हमारे दिमाग को 'खराब' कर देती हैं, डॉक्टर ने सही करने का तरीका भी बताया है
जब हम पर्याप्त फिज़िकल एक्टिविटी नहीं करते, स्ट्रेस में रहते हैं, तब दिमाग डैमेज होने लगता है.
जी, दिमाग को नुकसान पहुंचाती हैं हमारी ही कुछ आदतें. रोज़ की कौन-सी आदतें दिमाग को नुकसान पहुंचाती हैं? ये हमने पूछा डॉक्टर गौरव गुप्ता से.
पहली आदत, एक्सरसाइज़ न करना. डॉक्टर गौरव कहते हैं कि जब हम पर्याप्त फिज़िकल एक्टिविटी नहीं करते, तब दिमाग डैमेज होने लगता है. हमारी जो कॉग्निटिव पावर है, यानी सोचने-समझने की क्षमता, वो कम होने लगती है. जब हम एक्सरसाइज़ करते हैं, तब दिमाग के एक हिस्से, जिसे हिप्पोकैम्पस (hippocampus) कहते हैं, उसमें नए न्यूरॉन्स पैदा होते हैं. इस पूरे कार्यक्रम को न्यूरोजेनेसिस (Neurogenesis) कहते हैं. ये न्यूरॉन्स ही दिमाग के एक कोने से दूसरे कोने तक सिग्नल लेकर जाते हैं. वहीं हिप्पोकैम्पस नई चीज़ें सीखने और याद्दाश्त स्टोर करने का काम करता है. जब हम एक्सरसाइज़ नहीं करते, तो दिमाग के सीखने और याद रखने की क्षमता पर असर पड़ता है. नए न्यूरॉन्स बनने में दिक्कत आती है. इससे दिमाग की सोचने-समझने की क्षमता कम होने लगती है.
एक्सरसाइज़ न करने से स्ट्रेस और एंग्ज़ायटी भी बढ़ जाती है. जब हम एक्सरसाइज़ करते हैं, तब हमारे शरीर में फील गुड हॉर्मोन्स बनते हैं. यानी एंडोर्फिन, ऑक्सीटोसिन, सेरोटोनिन और डोपामाइन. इनसे हमारा स्ट्रेस कम होता है. हम रिलैक्स्ड महसूस करते हैं और मेंटल हेल्थ भी अच्छी रहती है.
दूसरी आदत, कुर्सी पर घंटों जमे रहना. हमारे दिमाग को सही से काम करने के लिए ऑक्सीज़न मिले हुए खून यानी फ्रेश खून की ज़रूरत होती है. लेकिन, लंबे समय तक बैठे रहने से दिमाग में खून का फ्लो कम हो जाता है. जिससे हमारे सोचने-समझने की शक्ति पर असर पड़ता है. हमारी याद्दाश्त कमज़ोर होने लगती है. हम लंबे समय तक ध्यान लगाकर काम भी नहीं कर पाते.
सिर्फ यही नहीं, जब दिमाग तक कम खून पहुंचता है, तब न्यूरोडिजेनरेटिव डिज़ीज़ (neurodegenerative diseases) होने का रिस्क भी बढ़ जाता है. न्यूरोडिजेनरेटिव डिज़ीज़ यानी हमारे सेंट्रल नर्वस सिस्टम से जुड़ी बीमारियां. जैसे अल्ज़ाइमर.
तीसरी आदत, स्ट्रेस लेना. डॉक्टर गौरव आगे कहते हैं कि लंबे समय से चल रहे स्ट्रेस से भी हमारा दिमाग डैमेज होता है. क्रोनिक स्ट्रेस से हमारे ब्रेन सेल्स खत्म होने लगते हैं और प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स सिकुड़ने लगता है. प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स (Prefrontal cortex) दिमाग का एक हिस्सा है. जो याद्दाश्त और नई चीज़ें सीखने के लिए भी ज़िम्मेदार है. ये हिस्सा हमारे दिमाग के बाकी हिस्सों से कनेक्शन बनाता है. और, हमारे विचारों, कामों और भावनाओं को कंट्रोल करता है.
लगातार स्ट्रेस में रहने से कोर्टिसोल हॉर्मोन का लेवल भी बढ़ जाता है. जिससे दिमाग के हिस्से हिप्पोकैम्पस को नुकसान पहुंचता है. ये वही हिस्सा है जो हमारे कुछ सीखने और याद्दाश्त स्टोर करने का भी काम करता है.
चौथी आदत, बहुत शुगर वाली चीज़ें खाना. शुगर वाली चीज़ें खाने से शरीर में इंफ्लेमेशन यानी सूजन होती है और ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस बढ़ जाता है. ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस तब होता है जब शरीर के फ्री रेडिकल्स और एंटीऑक्सीडेंट्स के बीच असंतुलन हो जाता है. इससे दिमाग के सेल्स को नुकसान पहुंचता है. और, फिर न्यूरोडिजेनरेटिव बीमारियां होने का रिस्क बढ़ जाता है.
ज़्यादा शुगर वाली चीज़ें खाने से इंसुलिन रेज़िस्टेंस भी हो सकता है. इंसुलिन रेज़िस्टेंस होने पर शरीर के सेल्स खाने को ठीक तरह ग्लूकोज़ में नहीं बदल पाते. जिससे दिमाग की मेटाबॉलिक फंक्शनिंग पर असर पड़ता है. यानी दिमाग के कामों के लिए ग्लूकोज़ का सही इस्तेमाल नहीं हो पाता. इसलिए, ज़रूरी है कि आप एक अच्छी डाइट लें और एक दिन में 3-4 चम्मच से ज़्यादा चीनी न खाएं.
साथ ही, रोज़ थोड़ी देर एक्सरसाइज़ करें. कुर्सी पर घंटों न जमे रहें. हर आधे घंटे में उठकर थोड़ा टहल आएं और अपना स्ट्रेस मैनेज करना सीखें ताकि दिमाग सही से काम करता रहे.
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