भारत को 'डायबिटीज़ कैपिटल ऑफ़ द वर्ल्ड' कहा जाता है. दुनियाभर में डायबिटीज़ के सबसे ज़्यादा मरीज़ हिंदुस्तान में हैं. ICMR यानी इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के मुताबिक, साल 2023 तक, देश में 10 करोड़ से ज़्यादा लोगों को डायबिटीज़ थी.
डायबिटीज़ होने पर शरीर को क्या-क्या बीमारियां हो सकती हैं? डॉक्टर्स से समझ लीजिए
अगर किसी व्यक्ति को डायबिटीज़ है और वो इसे कंट्रोल में न रखे, तो उसे कई दूसरी बीमारियां भी हो सकती हैं. जैसे दिखना बंद हो सकता है. किडनी ख़राब हो सकती है. पैरों में घाव पड़ सकते हैं. डायबिटीज़ के मरीज़ों को हार्ट अटैक और स्ट्रोक की संभावना भी ज़्यादा होती है.

अब साल चल रहा है 2025. ये आंकड़े बढ़े हैं. कम नहीं हुए हैं. आप अपने आसपास ही देख लीजिए, कितने लोगों को डायबिटीज़ है और कितने ऐसे लोग भी होंगे, जिन्हें डायबिटीज़ तो है, पर उन्हें पता नहीं. क्यों? क्योंकि वो जांच नहीं करवाते. कुल मिलाकर डायबिटीज़ हमारे देश में एक बहुत ही आम समस्या बन गई है.
ऐसे में आज हम बात करेंगे डायबिटीज़ से होने वाली जटिलताओं और ख़तरों की. क्या होता है जब आपको डायबिटीज़ हो जाती है और आप उसे कंट्रोल नहीं करते. ऐसे में शरीर के अंदर क्या होता है. क्या समस्याएं आती हैं. इनसे कैसे बच सकते हैं. इन सारे सवालों के जवाब दिए देश के तीन बेहतरीन डॉक्टर्स ने.
पहले हैं डॉक्टर अभिषेक प्रकाश, एंडोक्राइनोलॉजिस्ट एंड डायबेटोलॉजिस्ट, द एंडो क्लीनिक और मंगलम प्लस मेडिसिटी, जयपुर से. दूसरे हैं डॉक्टर सुमित बोकाड़े, कंसल्टेंट एंडोक्राइनोलॉजिस्ट, डायबिटीज़ एंड मेटाबॉलिज़्म डिपार्टमेंट, सुयश हॉस्पिटल, रायपुर से. ये स्वस्थ प्लस क्लीनिक के फाउंडर और डायरेक्टर भी हैं. तीसरे हैं डॉक्टर विक्रम सिंह चौहान, कंसल्टिंग एंडोक्राइनोलॉजिस्ट, डॉ. चौहान'स क्लीनिक और जबलपुर हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर से.

डायबिटीज़ से होने वाली समस्याओं से बचाव क्यों ज़रूरी?
डायबिटीज़ के कारण कई जटिलताएं हो सकती हैं. जैसे आंखें ख़राब होना. किडनी ख़राब होना. दिल से जुड़ी दिक्कतें. कुछ मामलों में पैर काटने की नौबत भी आ सकती है. इन बीमारियों का इलाज महंगा और कठिन होता है. जैसे अगर किडनी खराब हो गई है, तो डायलिसिस कराना पड़ता है. इसका खर्च आर्थिक बोझ बन सकता है. पैर कटने की स्थिति में मरीज़ और उसके परिवार पर आर्थिक दबाव बढ़ जाता है. अगर शुरू में ही मरीज़ को इन जटिलताओं से बचा लिया जाए, तो आर्थिक बोझ कम होगा और सामाजिक परेशानियां भी घटेंगी. लिहाज़ा, डायबिटीज़ से होने वाली जटिलताओं से बचना बहुत ज़रूरी है.
डायबिटीज़ से होने वाली सबसे आम समस्याएं
- डायबिटीज़ से डायबिटिक रेटिनोपैथी हो सकती है. इसमें आंखों में तकलीफ होती है. कभी-कभी दिखना बंद भी हो सकता है.
- नसों में झुनझुनी या सुन्नपन महसूस हो सकता है.
- किडनी के काम करने की क्षमता कम हो जाती है.
- डायबिटीज़ के मरीज़ों में हार्ट अटैक और स्ट्रोक की संभावना बहुत ज़्यादा होती है.
- फुट अल्सर (पैर पर बने खुले घाव या छाले) से बचने के लिए पैरों के तलवों की नियमित जांच ज़रूरी है.
हाई ब्लड ग्लूकोज़ से ये समस्याएं क्यों होती हैं?
- अगर फास्टिंग ग्लूकोज़ 126 mg/dL से ऊपर हो तो डायबिटीज़ मानी जाती है.
- अगर पोस्ट-मील ग्लूकोज़ 200 mg/dL से ऊपर हो तो डायबिटीज़ मानी जाती है.
- HbA1c, जो तीन महीने का औसत ब्लड ग्लूकोज़ बताता है, 6.5% से ज़्यादा हो तो डायबिटीज़ मानी जाती है.
लगातार हाई ग्लूकोज़ से खून पहुंचाने वाली नसों (आर्टरीज़) को नुकसान होता है. ये नसें शरीर के हर अंग में खून पहुंचाती हैं. इनमें नुकसान होने से विभिन्न अंगों में होने वाला खून का संचार बाधित होता है. फिर जब पर्याप्त खून नहीं पहुंचता, तो अंगों के काम करने की क्षमता घट जाती है.
डायबिटीज़ से बचने के लिए फास्टिंग और पोस्ट-प्रैंडियल ब्लड ग्लूकोज़ टेस्ट समय-समय पर कराना चाहिए. HbA1c टेस्ट हर 3 महीने में कराना चाहिए, ये तीन महीने का औसत ग्लूकोज़ बताता है. डायबिटीज़ से पैरों में जटिलताएं हो सकती हैं, इसलिए पैरों की नियमित जांच ज़रूरी है. आंखों की समस्याओं से बचने के लिए साल में एक बार जांच करानी चाहिए. दिल से जुड़ी दिक्कतें न हों, इसके लिए समय-समय पर ECG कराते रहें. जहां ज़रूरत हो, वहां TMT यानी ट्रेडमिल टेस्ट भी कराया जाता है.

बचाव के लिए लाइफस्टाइल में क्या बदलाव करें?
हर दिन कम से कम 30 मिनट और हफ्ते में 150 मिनट की फिज़िकल एक्टिविटी ज़रूरी है. एक्टिविटी ज़ोरदार होनी चाहिए, जिससे धड़कन तेज़ हो और पसीना आए. ये न करें कि 10 किमी चलें और उसमें 1-2 घंटे का समय लगे. कुल मिलाकर, फिज़िकल एक्टिविटी के दौरान पसीना आना चाहिए. अगर आप टहल रहे हैं और आपकी धड़कन तेज़ हो रही है, आपको पसीना आ रहा है. तब इसे असरदार फिज़िकल एक्टिविटी माना जाता है.
साथ ही, अपनी डाइट में सिंपल कार्बोहाइड्रेट की जगह कॉम्प्लेक्स कार्बोहाइड्रेट लें. जैसे मिलेट्स यानी मोटा अनाज. अपने खाने में ज़्यादा फाइबर शामिल करें. डायबिटीज़ कंट्रोल करने में डाइट और फिज़िकल एक्टिविटी दोनों की अहम भूमिका है. लेकिन, डाइट और फिज़िकल एक्टिविटी असरदार तरीके से अपनानी चाहिए.
कितने गैप पर चेकअप करवाना चाहिए?
डायबिटिक रेटिनोपैथी से बचने के लिए साल में एक बार आंखों की जांच कराएं. डॉक्टर की सलाह पर ब्लड शुगर टेस्ट करा सकते हैं. अगर टेस्ट में शुगर अनियंत्रित निकलती है, तो शुगर कंट्रोल करें.
किडनी के लिए यूरिन ACR टेस्ट करा सकते हैं. ये हर 6 महीने से 1 साल में कराएं. इसके अलावा, अगर किसी भी तरह की दिक्कत लगे, तुरंत डॉक्टर से मिलें.
डायबिटीज़ से होने वाली जटिलताएं ठीक हो सकती हैं?
अगर डायबिटीज़ से होने वाली जटिलताएं शुरू में ही पकड़ ली जाएं, तो कई सारी जटिलताओं को रिवर्स किया जा सकता है. अगर जटिलता एडवांस स्टेज में पहुंच गई है, तो शुगर कंट्रोल करने के बावजूद उसे पूरी तरह ठीक नहीं किया जा सकता है. लिहाज़ा, बचाव सबसे ज़रूरी है. शुरू से ही अपनी शुगर नियंत्रित रखें. ब्लड प्रेशर, वज़न और फिज़िकल एक्टिविटी का भी ध्यान रखें. अगर शुरुआत से ही सावधानी बरती जाए, तो जटिलताओं को आगे बढ़ने से रोका जा सकता है.
डायबिटीज़ के शुरुआती लक्षण पकड़ में नहीं आते, इसलिए डायबिटीज़ और हाई ब्लड प्रेशर को ‘साइलेंट किलर’ कहा जाता है. कई लोगों को लगता है कि उन्हें कोई समस्या नहीं है. मगर, जब तक आप जांच नहीं कराएंगे तब तक आपको दिक्कत का पता नहीं चलेगा. लिहाज़ा, नियमित जांच कराना ज़रूरी है, ताकि डायबिटीज़ का सही समय पर पता चले और उसे कंट्रोल किया जा सके.
दवाइयां जटिलताओं से कैसे बचाती हैं?
अगर डायबिटीज़ की दवाइयां या इंसुलिन सही समय पर और सही तरीके से लें. साथ ही, ब्लड शुगर को कंट्रोल में रखें. जैसे फास्टिंग ग्लूकोज़ यानी खाली पेट शुगर 100-130 mg/dL के बीच हो. खाने के दो घंटे बाद की शुगर 140-180 mg/dL के बीच हो तो तीन महीने की औसत शुगर (HBA1c) 7% के आसपास होगी. रिसर्च और अनुभव बताता है कि इससे जटिलताओं का ख़तरा कई गुना कम हो जाता है. समय पर दवाई खाने से ब्लड ग्लूकोज़ नियंत्रण में रहता है. अगर ऐसा लंबे वक्त तक रहे, तो डायबिटीज़ से होने वाली जटिलताओं को रोका जा सकता है.

डायबिटीज़ के मरीज़ पैरों का ध्यान क्यों रखें?
डायबिटीज़ के मरीज़ों में पैर की नसें धीरे-धीरे कमज़ोर होने लगती हैं. पैर में घाव होने पर लोगों को लगता है कि वो एक-दो दिन में ठीक हो जाएगा. लेकिन अगर गंभीर न्यूरोपैथी है, तो घाव बहुत बढ़ सकता है. कई बार घाव इतना बढ़ जाता है कि पैर काटने की नौबत आ जाती है. लिहाज़ा, अगर किसी को डायबिटीज़ है, तो उसे रोज़ सोने से पहले अपना पैर जांचना चाहिए. साथ ही, पैर की साफ-सफाई भी ज़रूरी है. कई सारे डायबिटिक फुटवियर आते हैं, जिन्हें आप इस्तेमाल कर सकते हैं. अगर आपके शरीर में कहीं पर भी घाव है, तो डॉक्टर से सलाह ज़रूर लें. घाव को ठीक करने के लिए सही इलाज लें और उसकी देखभाल करें.
स्ट्रेस से डायबिटीज़ पर क्या असर पड़ता है?
लगातार तनाव नुकसानदेह है. इससे ब्लड शुगर लेवल बढ़ सकता है. शरीर को तनाव से निपटने के लिए ज़्यादा हॉर्मोन बनाने पड़ते हैं, जिससे ग्लूकोज़ लेवल बढ़ता है. इसके अलावा, तनाव से दिल पर असर पड़ता है. दिल की बीमारियों का ख़तरा भी बढ़ जाता है. इसलिए, तनाव से बचना बहुत ज़रूरी है. तनाव से निपटने के लिए योग, प्राणायाम, ध्यान और व्यायाम करें. स्टडीज़ से पता चलता है कि इन्हें करने से तनाव सुधरता है. जब तनाव कम होगा, तो ब्लड ग्लूकोज़ कंट्रोल में रहेगा और दिल की बीमारियों का ख़तरा भी कम होगा.
डायबिटीज़ से होने वाली जटिलताओं के लक्षण
डायबिटीज़ की जटिलताएं छोटी-छोटी नसों में होती हैं, जिसे माइक्रोवैस्कुलर जटिलताएं कहते हैं.
इसमें आंखों से जुड़ी दिक्कतें यानी डायबिटिक रेटिनोपैथी हो सकती है. इसमें मरीज़ को धुंधला दिख सकता है. आंखों के सामने मक्खी-मच्छर जैसे तैरते दिखते हैं. ऐसा लगता है जैसे आंखों की पावर कम हो रही है. मरीज़ को साफ दिखना बंद हो जाता है.
किडनी से जुड़ी जटिलताएं भी हो सकती हैं. पेशाब में प्रोटीन लीक हो सकता है. कई मरीज़ बताते हैं कि उनके पेशाब में झाग ज़्यादा बन रहा है. तब पेशाब से जुड़े टेस्ट, जैसे यूरिन माइक्रोएल्ब्यूमिन यूरिया टेस्ट, ACR टेस्ट, क्रिएटिनिन टेस्ट किए जाते हैं.
अगर पैरों से जुड़ी जटिलताएं हैं, यानी डायबिटिक न्यूरोपैथी तो मरीज़ को पैरों में जलन होती है. आग जैसी भड़कन होती है. चींटी काटने जैसी चुभन होती है. कई बार मरीज़ के पैर सुन्न पड़ जाते हैं. डायबिटीज़ से जुड़ी जटिलताएं होने पर मरीज़ को ये सारे लक्षण महसूस हो सकते हैं.
लक्षण महसूस होने पर क्या करना चाहिए?
अगर किसी तरह के लक्षण महसूस हों, तो सबसे पहले अपने डॉक्टर से मिलें. डॉक्टर आपको सही सलाह देंगे. डायबिटीज़ में बचाव सबसे ज़रूरी है. ब्लड शुगर कंट्रोल करने की कोशिश करें. डाइट, एक्सरसाइज़, स्ट्रेस मैनेजमेंट और अच्छी नींद का ध्यान रखें. किसी भी लक्षण को नज़रअंदाज़ न करें. तुरंत अपने डॉक्टर से मिलें क्योंकि बचाव इलाज से बेहतर है.
(यहां बताई गईं बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
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