6 महीने. ये वो उम्र होती है, जब बच्चा अलग-अलग आवाज़ें निकालने लगता है. जैसे- ऊ, आ. इसे बैबलिंग कहते हैं. फिर जब बच्चा 9 से 12 महीने का होता है. तो वो मा, पा, दा, ना बोलना शुरू करता है. फिर मम्मा, पापा, दादा, नाना बोलता है. जब बच्चा 12 से 18 महीने का हो जाता है. तो वो कम से कम 5 से 10 शब्दों का इस्तेमाल शुरू कर देता है. 2 साल की उम्र आते-आते, बच्चा दो-तीन शब्दों को जोड़कर छोटे-छोटे वाक्य बोलने लगता है. जैसे मम्मा आओ. दूध दो. वहीं 3 साल का बच्चा, सही से बातचीत करने लगता है.
छोटे बच्चे को बोलने में दिक्कत आ रही? ये वजहें हो सकती हैं, इलाज का तरीका भी जान लें
जब बच्चा 12 से 18 महीने का होता है, तो वो कम से कम 5 से 10 शब्दों का इस्तेमाल शुरू कर देता है. 2 साल की उम्र आते-आते, बच्चा दो-तीन शब्दों को जोड़कर छोटे-छोटे वाक्य बोलने लगता है.

मगर कई बार, एक उम्र आने के बाद भी बच्चे ठीक से नहीं बोल पाते. अब ऐसा क्यों होता है? और, इसका इलाज क्या है? ये हमने पूछा डॉक्टर हिमानी नरुला से.

डॉक्टर हिमानी कहती हैं कि अगर 12 महीने का होने के बावजूद बच्चा कोई बात नहीं कर रहा. नज़रें नहीं मिला रहा. नाम पुकारने पर कोई रिएक्शन नहीं दे रहा. या अगर 18 महीने का बच्चा एक भी मीनिंगफुल शब्द नहीं बोल रहा. या अगर वो 2 साल का हो गया है. और, फिर भी दो-तीन शब्दों को जोड़कर छोटे वाक्य नहीं बना पा रहा. या अगर वो तीन साल का हो चुका है. और, उसे बातचीत करने में दिक्कत आ रही है. तो ये सारे स्पीच डिले के लक्षण हैं. स्पीच डिले यानी बोलने में देरी होना.
स्पीच डिले के कारण
पहला कारण- बच्चा सुन नहीं पा रहा. अगर बच्चा सुनेगा नहीं, या बहुत कम सुनेगा. तो वो बोलेगा भी देर से. कई बार, सुनने की कमी की वजह से बच्चे देर से बोलना शुरू करते हैं.
दूसरा कारण- स्पीच और लैंग्वेज डिले. कुछ बच्चों में सिर्फ बोलने और भाषा सीखने में देरी होती है. ये बच्चे के ठीक से न बोलने का एक बहुत ही आम कारण है.

तीसरा कारण- ऑटिज़्म. ये एक डिवेलपमेंटल कंडिशन है. इसमें बच्चे के व्यवहार, उसके सीखने की क्षमता और दूसरों से बातचीत करने के तरीके पर असर पड़ता है. यानी इससे पीड़ित बच्चे को दूसरों से बातचीत करने में परेशानी होती है. वो आंख से आंख मिलाकर बात नहीं कर पाता. बार-बार एक ही बात दोहराता रहता है. या एक ही कम लगातार करता है.
चौथा कारण- GDD यानी ग्लोबल डिवेलपमेंट डिले. इसमें बच्चे का संपूर्ण विकास ही धीमा होता है. ऐसे बच्चे, न सिर्फ बोलने में, बल्कि चलने, समझने और सीखने में भी देरी दिखाते हैं.
पांचवा कारण- न्यूरोलॉजिकल कंडीशंस. यानी दिमाग, रीढ़ की हड्डी और नसों से जुड़ी दिक्कतें. जैसे सेरेब्रल पॉल्सी, मेनिन्जाइटिस और दूसरी क्रोनिक न्यूरोलॉजिकल समस्याएं. इनमें भी बच्चा देर से बोलना शुरू करता है.
छठवां कारण- घर का माहौल. अगर घर में बच्चे से कोई बात नहीं करता. उसके साथ खेलता नहीं. साथ में समय नहीं बिताता. तो ये भी स्पीच डिले की वजह हो सकता है. देखिए, बोलने के लिए बच्चे को प्रेरणा की ज़रूरत होती है. जब कोई उससे बात करेगा, तभी वो जवाब देगा या बात करेगा. लेकिन, जब कोई बात करने वाला ही नहीं होगा, तो वो बोलना शुरू नहीं कर पाएगा. नतीजा? उसे बोलने में देरी होगी.

स्पीच डिले का इलाज
स्पीच डिले को ठीक करने के लिए उसका सही कारण पता होना ज़रूरी है. इसलिए, सबसे पहले हियरिंग टेस्ट कराएं. ताकि पता चल सके कि बच्चे को सुनने में तो कोई दिक्कत नहीं आ रही. अगर आ रही हो, तो फिर उसका इलाज कराएं.
साथ ही, स्पीच थेरेपिस्ट की मदद लें. वो बच्चे को बोलना सिखाएंगे. कई बार बच्चे बहुत हाइपरएक्टिव होते हैं. वो एक जगह टिककर बैठ नहीं पाते. ध्यान नहीं दे पाते. ऐसे में ऑक्यूपेशनल थेरेपी या वन-ऑन-वन सेंसरी थेरेपी की जा सकती है. इसके ज़रिए बच्चे का ध्यान और बैठने का समय बढ़ाया जाता है. ताकि वो सीखने के लिए तैयार हो सके.
अगर बच्चा बहुत ज़्यादा आक्रामकता दिखाता है. किसी की बात पर ध्यान नहीं देता. तो उसे बिहेवियर थेरेपी दी जा सकती है. ये थेरेपी बच्चे के व्यवहार को सुधारने में मदद करती है. ताकि वो सीखने और बातचीत करने में सक्षम हो सके.
बच्चे की दिक्कत के हिसाब से उसे सही थेरेपी दी जा सकती है. लेकिन, इसके लिए ज़रूरी है कि आप एक्सपर्ट से मिलें.
एक चीज़ का और ध्यान रखें. घर पर बच्चे से बात ज़रूर करें. उसके साथ खेलें. उसे सिर्फ अपना फोन न पकड़ाएं. फोन देने से बच्चे को अल्फाबेट्स या नंबर तो याद हो सकते हैं. लेकिन, फिर उनमें बातचीत करने का गुण नहीं आ पाता.
(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से जरूर पूछें. ‘दी लल्लनटॉप ’आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
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