हमारे आसपास कितना शोर है न! लोगों के बात करने की आवाज़ें हैं. कोई हंस रहा है. कोई चिल्ला रहा है. लगातार गाड़ियों के हॉर्न बज रहे हैं. और, आप और हम, हम लोग भी लगातार परेशान हो रहे हैं.
शोर को अनुसना करने के लिए नॉइस कैंसलिंग हेडफोन्स लगाते हैं, ये नुकसान भी जान लें
फोन से नॉइस कैंसलिंग हेडफोन्स कनेक्ट कर अपने कानों में लगाते हैं और बस सारी परेशानी दूर. अब बाहर की कोई आवाज़ नहीं आ रही. मगर जिस हेडफोन को आप अपना दोस्त समझ रहे हैं. वो तो छिपा हुआ दुश्मन है. आपके कान का. आपके पूरे शरीर का. कैसे? चलिए समझते हैं.

लेकिन, तभी आपको इस परेशानी का एक सॉल्यूशन नज़र आता है. ‘नॉइस कैंसलिंग हेडफोन्स’. आप अपने बैग की चेन खोलकर ये खास हेडफोन्स निकाल लेते हैं.
फिर इन्हें फोन से कनेक्ट कर अपने कानों में लगाते हैं और बस सारी परेशानी दूर. अब बाहर की कोई आवाज़ नहीं आ रही. ये हेडफोन्स होते ही ऐसे हैं. बाहर की नॉइस, पूरी तरह कैंसिल हो जाती है.
मगर जिस हेडफोन को आप अपना दोस्त समझ रहे हैं. वो तो छिपा हुआ दुश्मन है. आपके कान का. आपके पूरे शरीर का. कैसे? चलिए समझते हैं.
नॉइस कैंसलिंग हेडफोन्स क्या हैं? ये कैसे काम करते हैं?
ये हमें बताया डॉक्टर शीतल राडिया ने.

नॉइस कैंसलिंग हेडफोन्स आसपास के शोर को खत्म या कम कर देते हैं. ये एक्टिव नॉइस कैंसिलेशन (ANC) तकनीक पर काम करते हैं. इसमें तीन प्रमुख हिस्से होते हैं. पहला हिस्सा माइक्रोफोन है. हेडफोन्स में छोटे-छोटे माइक लगे होते हैं. ये बैकग्राउंड के शोर को पकड़ते हैं और उसकी पहचान करते हैं. दूसरा हिस्सा प्रोसेसर है. ये एंटी-नॉइस साउंड वेव्स पैदा करता है. एंटी-नॉइस साउंड वेव्स यानी शोर को खत्म करने वाली ध्वनि तरंगें. ये वेव्स आसपास के शोर को खत्म कर देती हैं. तीसरा हिस्सा स्पीकर है. स्पीकर में ऑडियो और एंटी-नॉइस साउंड वेव्स साथ-साथ चलते हैं. इससे आपको साफ और बिना रुकावट की ऑडियो सुनाई देती है, बिना किसी बाहरी शोर के.
क्या लंबे समय तक इनका इस्तेमाल सुनने की क्षमता पर असर डालता है?
आमतौर पर नॉइस कैंसलिंग हेडफोन्स सुरक्षित होते हैं. लेकिन, अगर इनका इस्तेमाल लंबे समय तक या बहुत तेज़ आवाज़ में किया जाए, तो सुनने की क्षमता कम हो सकती है. इसे ऑडिटरी फटीग कहा जाता है.

नॉइस कैंसलिंग हेडफोन्स के दूसरे नुकसान क्या हैं?
इनके इस्तेमाल से कई लोगों को कानों में दबाव महसूस होता है. दरअसल, एंटी-नॉइस साउंड वेव्स कानों में दबाव पैदा करती हैं, जिससे असहज महसूस हो सकता है. कुछ लोगों को चक्कर आ सकते हैं क्योंकि दिमाग को एंटी-नॉइस साउंड वेव्स से तालमेल बिठाना पड़ता है. कई लोग इस पर निर्भर होने लगते हैं, जिसे हियरिंग डिपेंडेंसी कहते हैं. अगर कोई लंबे समय तक इनका इस्तेमाल करता है, तो बाहरी माहौल के प्रति उसकी जागरूकता कम हो सकता है. यानी, वो अपने आसपास के माहौल से अनजान हो सकता है.
इनका इस्तेमाल करने वाले क्या सावधानी बरतें?
- नॉइस कैंसलिंग हेडफोन्स की आवाज़ का खास ध्यान रखें.
- आवाज़ बहुत ज़्यादा तेज़ न हो.
- 60/60 का नियम अपनाएं.
- 60% से कम आवाज़ पर ऑडियो सुनें.
- लगातार 60 मिनट से ज़्यादा इस्तेमाल न करें.
- अगर हेडफोन्स लंबे वक्त तक इस्तेमाल करना पड़े, तो हर एक घंटे बाद ब्रेक लें ताकि ऑडिटरी फटीग न हो.
- हेडफोन्स को साफ-सुथरा रखें.
- हर कुछ दिनों में इसे सैनिटाइज़ करते रहें.
- ईयर पैड्स और वेंट में कचरा जमा हो सकता है, जिससे इंफेक्शन हो सकता है.
- कभी भी रास्ते में चलते वक्त इसका इस्तेमाल न करें.
- इससे आसपास की आवाज़ें दब जाती हैं और एक्सीडेंट होने के चांस बढ़ जाते हैं.
- हेडफोन्स को सेफ केस में रखें, ताकि ये जल्दी खराब न हो.
अगर आप अपने आपको सेफ रखना चाहते हैं. तो कभी भी सड़क पर नॉइस कैंसलिंग हेडफोन्स लगाकर न चलें. अगर घर या ऑफिस में हैं, तो भी इन्हें लगातार कई घंटों तक न लगाएं. जो टिप्स डॉक्टर साहब ने दिए हैं, उन्हें फॉलो करें.
(यहां बताई गईं बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
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