तारीख- 15 फरवरी. जगह- नई दिल्ली रेलवे स्टेशन. रात का समय था. घड़ी पर लगभग साढ़े 9 बज रहे थे. स्टेशन पर भीड़ बढ़ती ही जा रही थी. फिर एक वक्त ऐसा आया, जब स्टेशन पर भगदड़ मच गई. इस भगदड़ में 18 लोगों की जान चली गई. इनमें 5 लोगों का पोस्टमॉर्टम दिल्ली के डॉक्टर राम मनोहर लोहिया अस्पताल में हुआ. इनकी पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से पता चला है कि पांचों की मौत ट्रॉमैटिक एस्फिक्सिया (Traumatic Asphyxia) की वजह से हुई थी.
क्या है ट्रॉमैटिक एस्फिक्सिया, जिसकी वजह से भगदड़ में चली जाती है जान!
अगर किसी ट्रॉमा या चोट लगने की वजह से अचानक सांस एकदम रुक जाए, तो उसे ट्रॉमैटिक एस्फिक्सिया कहते हैं.

पिछले कई दिनों से देश की कुछ जगहों पर भगदड़ मचने की खबरें आ रही हैं. जिनमें कई लोगों की मौत भी हुई है. इसलिए, आज जानिए कि ट्रॉमैटिक एस्फिक्सिया क्या है. ये क्यों होता है. ट्रॉमैटिक एस्फिक्सिया होने पर शरीर में क्या होता है. अगर कभी दुर्भाग्य से कोई इस भगदड़ वाली स्थिति में फंस जाए. आपको लगे कि कोई व्यक्ति ट्रॉमैटिक एस्फिक्सिया का शिकार हो रहा है. तब आपको क्या करना है, ये भी समझिए.
ट्रॉमैटिक एस्फिक्सिया क्या होता है?
ये हमें बताया डॉक्टर कुलदीप कुमार ग्रोवर ने.

ट्रॉमैटिक मतलब कोई ट्रॉमा (चोट या दबाव) और एस्फिक्सिया मतलब सांस रुक जाना. ये एक मेडिकल इमरजेंसी है. जब सीने और पेट पर अचानक दबाव पड़ता है, तो सांस लेना मुश्किल हो जाता है. आमतौर पर, हम सांस लेते और छोड़ते हैं. लेकिन इस स्थिति में ये प्रक्रिया पूरी तरह रुक जाती है. अगर किसी ट्रॉमा या चोट लगने की वजह से अचानक सांस एकदम रुक जाए, तो उसे ट्रॉमैटिक एस्फिक्सिया कहते हैं.
ट्रॉमैटिक एस्फिक्सिया के कारण
अगर लैरिंक्स (बोलने वाला हिस्सा) बंद हो जाए और छाती पर दबाव पड़े, तो सांस लेना नामुमकिन हो जाता है. फेफड़े काम करना बंद कर देते हैं, जिससे सांस लेने की प्रक्रिया रुक जाती है. इस स्थिति में सीने और पेट में मौजूद खून, ब्लॉकेज की वजह से, सिर और गर्दन की तरफ तेज़ी से बहने लगता है. ऐसे में मरीज को सांस लेने में दिक्कत होती है. ये तब हो सकता है जब भगदड़ मच जाए. किसी का रोड एक्सीडेंट हो जाए. कोई भारी चीज़ अचानक सीने पर गिर जाए. इन वजहों से व्यक्ति सांस नहीं ले पाता और उसे ट्रॉमैटिक एस्फिक्सिया हो सकता है.
ट्रॉमैटिक एस्फिक्सिया होने पर शरीर में क्या होता है?
इसमें सीने और पेट में मौजूद खून शरीर में ऊपर की तरफ बहने लगता है. गले, गर्दन और दिमाग की नसों (वेन्स) में खून तेज़ी से भरने लगता है. आमतौर पर, ग्रैविटी की वजह से खून शरीर में नीचे की तरफ बहता है. लेकिन, ट्रॉमैटिक एस्फिक्सिया में ऊपर की ओर बहने लगता है. खून का ऊपर बहना असामान्य है. जब खून ऊपर की ओर बहेगा तो वो दिमाग में जाएगा. दिमाग में खून जाने से ब्रेन हेमरेज हो सकता है. आंखें लाल हो सकती हैं और चेहरा सूज सकता है. शरीर में मौजूद फ्लूइड चेहरे में इकट्ठा होने से चेहरा लाल हो जाता है. हाथ, नाक और पैरों में सूजन आ सकती है. व्यक्ति सांस नहीं ले पाता, जिससे जान जाने का खतरा बढ़ जाता है.
ट्रॉमैटिक एस्फिक्सिया से बचाव और इलाज
अगर ट्रॉमैटिक एस्फिक्सिया हो जाए, तो मरीज़ को तुरंत हॉस्पिटल ले जाना जरूरी है. ऑक्सीजन न मिलने पर मौत की संभावना होती है, क्योंकि सांस लिए बिना ज़िंदा नहीं रहा जा सकता. अगर मरीज़ सांस नहीं ले पा रहा है. उसका चेहरा और आंखें सूज गई हैं तो उसे तुरंत उस जगह से दूर करें. मरीज़ को उसके साइड के बल लिटा दें, ताकि सांस लेने में मदद मिले. तुरंत ऑक्सीजन दें और एंबुलेंस बुलाकर हॉस्पिटल ले जाएं.
प्राथमिक उपचार में ऑक्सीजन देना सबसे ज़रूरी है. अगर मरीज़ बेहोश नहीं है, तो उसकी रिकवरी संभव हो सकती है. अगर वो बेहोश है, तो उसे वेंटिलेटर सपोर्ट देना पड़ता है. फिर दो-चार दिन बाद खून का बहाव सामान्य होने लगता है. अगर सही समय पर इलाज मिले तो इसे ठीक किया जा सकता है. लेकिन, अगर इलाज में देरी होती है तो 80-90% मामलों में मौत तक हो सकती है.
देखिए, इस वक्त अगर आप किसी ऐसी जगह जा रहे हैं जहां बहुत भीड़ होने की संभावना है तो पूरी सावधानी बरतें. सतर्क रहें और अपना ध्यान रखें.
(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से जरूर पूछें. ‘दी लल्लनटॉप ’आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
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