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वर्किंग डे पर कम नींद का रोना, वीकेंड पर जमकर सोना, ग़ालिब... दिल के लिए ये बहुत अच्छा है?

एक रिसर्च से पता चला है कि जो लोग वीक डेज़ में पूरी नींद नहीं ले पाते. फिर वीकेंड में जी-भर कर सोते हैं, उन्हें दिल की बीमारियां होने का खतरा 20 पर्सेंट तक कम होता है.

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वीकेंड पर जमकर सोइए, दिल की बीमारियों का रिस्क घटेगा (सांकेतिक तस्वीर)

हर रोज़ 7 से 8 घंटे की नींद लेना ज़रूरी है. ये हम सभी जानते हैं. लेकिन कभी काम, तो कभी पढ़ाई के प्रेशर के चलते बहुत सारे लोग ज़रूरत भर नींद नहीं ले पाते. खासकर वीक डेज़ में. ऐसे लोग वीकेंड में यानी सैटरडे-संडे. या हफ्ते के जिन दो दिन उनकी छुट्टी रहती है, उसमें नींद पूरी करने की कोशिश करते हैं.

अगर आप भी ऐसे लोगों में शामिल हैं, तो आपके लिए अच्छी खबर है. दरअसल एक रिसर्च से पता चला है कि जो लोग वीक डेज़ में पूरी नींद नहीं ले पाते, और फिर वीकेंड में जी-भर कर सोते हैं, उन्हें दिल की बीमारियां होने का खतरा 20 पर्सेंट तक कम होता है.

इस रिसर्च को यूरोपियन सोसायटी ऑफ कॉर्डियोलॉजी की हालिया मीटिंग में पेश किया गया था. स्टडी के लिए रिसर्चर्स ने यूके बायोबैंक प्रोजेक्ट का हिस्सा रहे 90 हज़ार से ज़्यादा लोगों का डेटा लिया. यूके बायोबैंक, एक तरह का डेटाबेस है. जिसमें यूके यानी यूनाइटेड किंगडम के 5 लाख से ज़्यादा लोगों के मेडिकल और लाइफस्टाइल रिकॉर्ड्स शामिल हैं.

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स्टडी में शामिल करीब 20 हज़ार लोगों को पर्याप्त नींद नहीं मिल पा रही थी (सांकेतिक तस्वीर)

चलिए, वापस आते हैं रिसर्च पर. इन लोगों को इनके सोने के आधार पर 4 ग्रुप्स में बांटा गया. देखा गया कि 19,816 लोग ऐसे थे जिन्हें पूरी नींद नहीं मिल पा रही थी. यानी वो 7 घंटे से कम सो रहे थे.

ऐसे लोगों का 14 साल बाद फॉलोअप लिया गया. उनमें दिल की बीमारियां होने का रिस्क कैलकुलेट किया गया. पता चला कि जो लोग वीकेंड पर बाकी दिनों से ज़्यादा सो रहे थे, उन्हें दिल की बीमारियां होने का खतरा 19 पर्सेंट कम था. वहीं, जो लोग वीक डेज़ में पर्याप्त नींद नहीं ले रहे थे. और, फिर वीकेंड में जमकर सो रहे थे. अपनी नींद के घंटे पूरे कर रहे थे. उन्हें दिल की बीमारियां होने का चांस 20 पर्सेंट तक कम था.

इस स्टडी के लीड ऑथर और चीन के नेशनल सेंटर फॉर कार्डियोवस्कुलर डिज़ीज़ में प्रोफेसर यानजुन सॉन्ग (Yanjun Song) कहते हैं कि पर्याप्त नींद नहीं लेना, दिल की बीमारियों के रिस्क से जुड़ा है. ये उनमें तो और भी गंभीर हो जाता है, जो वीकडेज़ पर अपनी नींद पूरी नहीं कर पा रहे हैं.

हालांकि इस स्टडी का अभी कोई पीयर रिव्यू नहीं किया गया है. पीयर रिव्यू यानी स्टडी की जांच अभी इस फील्ड के एक्सपर्ट्स ने नहीं की है.

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से जरूर पूछें. ‘दी लल्लनटॉप ’आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

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