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गालों से चर्बी हटाने वाली सर्जरी सेफ है या नहीं? डॉक्टर ने सबकुछ बता दिया है

जो लोग भरे हुए गाल नहीं चाहते, वो अपना बक्कल फैट निकलवाते हैं. वहीं जिनके गाल धंसे हुए होते हैं, वो बक्कल फैट डलवाते हैं.

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कई लोग बक्कल फैट रिमूवल कराते हैं

दुनिया में 800 करोड़ से ज़्यादा लोग हैं. सबके चेहरे अलग. नैन-नक़्श अलग. रूप-रंग अलग. लेकिन, एक चीज़ काफी कॉमन है. 'और बेहतर दिखने की चाह'. इस चाह को और ज़्यादा भुना रहा है सोशल मीडिया. जैसे आजकल चेहरे (Face Surgery) को पतला दिखाने की होड़ है. 

देखिए, वैसे तो वज़न घटने के साथ, चेहरे की चर्बी भी घटती है. ये नेचुरल है. पर कई लोग चेहरे को पतला दिखाने के लिए एक कॉस्मेटिक सर्जरी का सहारा लेते हैं. इस सर्जरी का नाम है, बक्कल फैट रिमूवल (Buccal Fat Removal). आप इसे कराना चाहें, या नहीं. ये आपकी पर्सनल चॉइस है. मगर इसके बारे में पूरी जानकारी होना ज़रूरी है ताकि आप एक सही फैसला ले सकें. 

चलिए फिर, जानते हैं कि बक्कल फैट रिमूवल क्या है. ये कैसे किया जाता है. और, बक्कल फैट रिमूवल के साइड इफेक्ट्स क्या हैं.

बक्कल फैट रिमूवल क्या है?

ये हमें बताया डॉक्टर महेश मंगल ने. 

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डॉ. महेश मंगल, चेयरपर्सन, कॉस्मेटिक माइक्रोसर्जरी, सर गंगाराम हॉस्पिटल, नई दिल्ली

बक्कल शब्द का मतलब गाल होता है. बक्कल फैट यानी गाल के अंदर मौजूद चर्बी इसे चबी चीक्स (भरे हुए गाल) भी कहते हैं. ये फैट आमतौर पर युवाओं में ज़्यादा होता है. कई लोगों को बक्कल फैट पसंद होता है, कइयों को नहीं.

हालांकि, ये एक व्यक्तिगत पसंद है. जो लोग भरे हुए गाल नहीं चाहते, वो अपना बक्कल फैट निकलवाते हैं. वहीं जिनके गाल धंसे हुए होते हैं, वो बक्कल फैट डलवाते हैं. बक्कल फैट डलवाना और उसे निकलवाना, दोनों ही प्रक्रियाएं की जा सकती हैं.

बक्कल फैट रिमूवल कैसे किया जाता है?

बक्कल फैट निकाला और डाला, दोनों ही किया जा सकता है. आमतौर पर बक्कल फैट निकालने की प्रक्रिया बहुत आसान है. इसे लोकल एनेस्थीसिया या जनरल एनेस्थीसिया में किया जाता है. लोकल एनेस्थीसिया यानी सिर्फ गाल सुन्न करना. जनरल एनेस्थीसिया यानी पूरा शरीर सुन्न करना. 

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मरीज़ की ज़रूरत के हिसाब से 30%, 50% या 80% फैट निकाला जाता है

इस प्रक्रिया में मुंह के अंदर एक छोटा-सा चीरा लगाया जाता है. फिर इस चीरे के ज़रिए बक्कल फैट तक पहुंचा जाता है. बक्कल फैट छोटे-छोटे ग्रेन्यूल्स (दाने) का बना होता है, जो एक जगह पर जमा होता है. जैसे ही चीरा लगाया जाता है, फैट अपने आप बाहर आने की कोशिश करता है. हालांकि पूरा बक्कल फैट नहीं निकाला जाता, वरना गाल एकदम धंसा हुआ लगेगा.

मरीज़ की ज़रूरत के हिसाब से 30%, 50% या 80% फैट निकाला जाता है. ये मरीज़ पर निर्भर करता है कि उसे कितना बक्कल फैट चाहिए. बक्कल फैट निकलाने के बाद चीरा बंद कर दिया जाता है. ये एक ओपीडी या डे केयर सर्जरी है. मरीज़ ऑपरेशन कराकर एक-दो घंटे बाद घर जा सकता है. 

बक्कल फैट रिमूवल के साइड इफेक्ट?

जब फैट निकाला जाता है, तो खून की कुछ नलियों से खून रिस सकता है. इस ब्लीडिंग को बंद करना ज़रूरी है. सर्जरी के दौरान ध्यान रखना पड़ता है कि गाल के अंदर ब्लीडिंग न हो. अगर ब्लीडिंग रोके बिना चीरा बंद कर दिया जाए तो वहां खून जमा हो सकता है. इससे मरीज़ को दिक्कत होगी और इन्फेक्शन होने का चांस होगा. लिहाज़ा, ये ध्यान रखना ज़रूरी है कि मरीज़ को इंफेक्शन न हो और गाल के अंदर कोई ब्लीडिंग न हो.

बक्कल फैट को पर्याप्त मात्रा में निकालना भी अहम है. मरीज़ तभी संतुष्ट होगा, जब उसकी ज़रूरत के हिसाब से फैट निकाला जाएगा. अगर ज़्यादा फैट निकाल दिया गया तो गाल धंसे हुए लग सकते हैं. वहीं अगर कम फैट निकाला गया तो मरीज़ संतुष्ट नहीं होगा. इसलिए, सर्जन के अनुभव के आधार पर सही मात्रा निकालना जरूरी है. कुल मिलाकर, ये प्रक्रिया सरल है और मरीज़ के लिए संतोषजनक भी होती है.

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से जरूर पूछें. ‘दी लल्लनटॉप' आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

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