‘जितना भी ट्राई करो बनी, लाइफ में कुछ न कुछ तो छूटेगा ही, तो जहां हैं वहीं का मज़ा लेते हैं.’ ‘ये जवानी है दीवानी’ फिल्म का ये डायलॉग अक्सर यंगस्टर्स की ज़ुबान पर रहता है. ये बताने के लिए, कि देखो, हर जगह तो नहीं पहुंचा जा सकता. इसलिए जहां हो, जैसे हो, वहीं इन्जॉय करो. लेकिन, ऐसा होता कहां है. हम इन्जॉय तो तब करेंगे न, जब अपने फोन से बाहर निकलेंगे. रील्स, शॉर्टर्स देखना बंद करेंगे. आजकल लोग घंटों बिता देते हैं इन्हीं इंस्टा रील्स और यूट्यूब शॉर्ट्स को देखते हुए. फिर धीरे-धीरे इनकी लत लग जाती है. व्यक्ति फोन में ही घुसा रहता है. रील्स न देखे तो उसे अधूरा-सा लगता है. फिर जब आपको लगता है कि अब बहुत ज़्यादा हो रहा है. तो आप इंस्टाग्राम डिलीट करने का कठोर फैसला लेते हैं. लेकिन, फिर थोड़ी देर बाद गूगल क्रोम पर जाकर इंस्टा खोल ही लेते हैं और रील्स देखने लगते हैं.
रील्स देखना इतना अच्छा क्यों लगता है? कैसे छोड़ें रील्स का एडिक्शन? सब जान लीजिए
कई बार हम रिलैक्स करना चाहते हैं, इसलिए रील्स देखना शुरू कर देते हैं. बोरियत मिटाने या कुछ हल्का-फुल्का देखने के लिए इन्हें देखने लगते हैं.

अब एक सवाल है. ऐसा क्या होता है इन रील्स में, जो लोग इनके आदी हो जाते हैं? आज की स्टोरी में इसी सवाल का जवाब तलाशेंगे.
लगातार रील्स देखने की लत क्यों लग जाती है?ये हमें बताया डॉक्टर दिनिका आनंद ने.

लगभग हम सभी को रील्स देखने की लत लग चुकी है. कई बार हम रिलैक्स करना चाहते हैं, इसलिए रील्स देखना शुरू कर देते हैं. बोरियत मिटाने या कुछ हल्का-फुल्का देखने के लिए इन्हें देखने लगते हैं. कुछ लोग खाना खाते समय ध्यान भटकाने के लिए भी रील्स देखते हैं. ये कंटेंट इस तरह से डिजाइन किया जाता है कि ये हमारे ध्यान को लगातार बांधे रखता है. इसलिए इस लत के लिए हमारी आदतें और कंटेंट दोनों ही ज़िम्मेदार हैं. आदतें जैसे बोरियत मिटाना, काम टालना या किसी असहज भावना से बचना.
लगातार रील्स देखने से क्या मानसिक असर पड़ता है?कई घंटों तक लगातार रील्स देखने से गहरा असर पड़ता है. जैसे रील्स देखते हुए लगातार बैठे रहने से जीवनशैली सुस्त हो जाती है. ये हमारे दिमाग और सोचने-समझने की क्षमता पर भी असर डालता है. जैसे ध्यान देने की क्षमता यानी अटेंशन स्पैन का कम हो जाना.
जब हम हर मिनट कई वीडियो देखते हैं, तो हमारा ध्यान बहुत जल्दी बंटने लगता है. हमारे फोकस करने की क्षमता कम हो जाती है. हम लंबे वक्त तक ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते. किसी भी चीज़ को गहराई से समझने की क्षमता प्रभावित होती है. प्रॉब्लम सॉल्विंग और रीज़निंग पर भी असर पड़ता है. लगातार रील्स देखने से इमोशंस और मूड पर असर पड़ता है. कुल मिलाकर, फोकस करने की क्षमता से लेकर इमोशंस तक असर पड़ता है.

कोई भी आदत तब बनती है, जब वो हमारे किसी मकसद को पूरा कर रही होती है. जैसे अगर हमें अपना काम बोरिंग लगता है या ऑफिस में डांट पड़ती है. तो, हमें ऑफिस का काम करने के बजाय रील्स देखने में ज़्यादा खुशी मिलती है. यानी रील्स ध्यान भटकाने का काम करती हैं. इन वीडियोज़ में कोई न कोई हुक (ध्यान खींचने का तरीका) भी होता है. जैसे आप एक मिनट की वीडियो देख रहे हैं, जिसमें कोई तैयार हो रहा है. कोई रील जो बता रही है ‘6 वजहें जिससे आपकी पीठ को नुकसान पहुंचा रहा है’. जब आप पूरे एक मिनट की वीडियो देखेंगे, तब पता चलेगा कि जानकारी कैप्शन में दी गई है. यानी वीडियोज़ में कहीं न कहीं कोई हुक ज़रूर होता है.
कई बार लोग जानकारी पाने के लिए भी रील्स देखते हैं. कंटेंट की वजह से हम इन वीडियोज़ को ज़्यादा देखते हैं. एल्गोरिदम सिस्टम भी हमारी दिलचस्पी के मुताबिक कंटेंट दिखाता है. जिससे ये वीडियोज़ देखने से खुद को रोक पाना मुश्किल हो जाता है.
खुद को ऐसा करने से कैसे रोकें?पहला, एक लक्ष्य निर्धारित करें. 'कल से सब बंद' कह देने से सब बंद नहीं होगा. छोटे-छोटे कदम उठाएं. ये भी देखें कि रील्स देखने में जो समय जा रहा था, उसे कहां इस्तेमाल करेंगे.
दूसरा, जो जानकारी या एंटरटेनमेंट आप रील्स से ले रहे थे, अब कहां से मिलेगा. जैसे अगर पेटिंग करते हैं और वॉटर कलर या आर्ट वीडियोज़ देखकर समय काटते थे. तो, अब बुकस्टोर में जाकर कोई किताब खरीदिए.
तीसरा, हो सके तो किसी दोस्त को साथ ले जाएं. इससे मुश्किल काम करना भी आसान हो जाता है.
देखिए, रील्स की लत छोड़ना मुश्किल ज़रूर है. लेकिन नामुमकिन नहीं. सबसे पहले तो इन सोशल मीडिया ऐप्स पर टाइम लिमिट लगाइए. जैसे आपने इस लिमिट को एक घंटे के लिए सेट किया. तो ऐप चलाने के एक घंटे बाद पॉप-अप आएगा कि अब आज के लिए ऐप बंद कर दीजिए. तब दिल को मज़बूत बनाइए और इसे बंद कर दीजिए. तुरंत खुद को दूसरे काम में बिज़ी कर लीजिए. पर अगर आपको लगता है कि रील्स देखने की लत से आपकी ज़िंदगी, काम और हेल्थ पर गहरा असर पड़ रहा है तो आप प्रोफेशनल मदद भी ले सकते हैं.
(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से जरूर पूछें. ‘दी लल्लनटॉप ’आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
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